ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भारत दौरे के एक दिन बाद, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हिंदू समाचार पत्र के बिजनेस संपादकीय में ‘दिस इज इंडियाज मोमेंट ऑफ रेकनिंग’ शीर्षक नाम से एक ओपिनियन पीस लेख लिखा। पूर्व भारतीय पीएम अभी भी नहीं चाहते हैं कि भारत स्पष्ट रूप से अमेरिका या रूस का पक्ष ले। इसके साथ-साथ वो यह भी चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार अमेरिकी डॉलर की ताकत को वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में स्वीकार करे। आपको बता दें कि मनमोहन सिंह उस वार्ता का हिस्सा थे जब भारत ने रूस के साथ रुपया-रूबल व्यापार का विकल्प चुना था। इसी तरह की योजना पर मोदी प्रशासन द्वारा पिछले सप्ताह तक विचार किया जा रहा था, पर वाणिज्य मंत्रालय ने ऐसे किसी भी संभावना से इंकार कर दिया।
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मोदी सरकार को समर्थन के बजाय चेतावनी दे रहे हैं सिंह
मनमोहन सिंह ने लिखा, “वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में डॉलर को जबरन और जल्दबाजी में समाप्त करना घातक सिद्ध होगा। इसे तेजी से द्विपक्षीय स्थानीय मुद्रा व्यवस्था के साथ बदलना वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए लंबे समय में अधिक हानिकारक साबित हो सकता है।“
ध्यान देने वाली बात है कि भारत यूक्रेन में हिंसा को समाप्त करने की मांग कर रहा है, लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों के दबाव के बावजूद रूस की निंदा नहीं की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उल्टे पश्चिमी देशों से पूछा है कि भारत को सस्ते दाम पर तेल क्यों नहीं खरीदना चाहिए, जबकि जयशंकर ने तो पश्चिमी देशों को आईना दिखाते हुए यह तक कह दिया है कि भारत रूस से जितना तेल 2 महीने में खरीदता है उतना यूरोप दो घण्टे में खरीदता है।
पर, मनमोहन सिंह ने “सस्ते तेल और वस्तुओं” के प्रलोभन के खिलाफ चेतावनी देते हुए लिखा, “लंबे समय में, भारत पश्चिमी ब्लॉक बाजारों तक पहुंच से लाभ प्राप्त करने के लिए खड़ा है। पर, रूस से तेल खरीदने का उसका यह लालच पश्चिमी बाज़ारों में उसकी पहुंच में अवरोध साबित होगा। अब भी, वाशिंगटन डी.सी. भारत द्वारा अपना पक्ष लेने की अनिच्छा और रूस के समर्थन से काफी परेशान है।” यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, अमेरिका और भारत के अधिकारियों ने एक दूसरे के क्षेत्र में “मानवाधिकार के मुद्दों” पर चिंता व्यक्त करते हुए, सार्वजनिक मंचों से बार-बार आरोप प्रत्यारोप का आदान-प्रदान किया।
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कांग्रेस की डरपोक विदेश नीति से अभी भी बाहर नहीं निकले हैं सिंह
युद्ध छिड़ने के बाद से, जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा से लेकर यूके के पीएम बोरिस जॉनसन समेत कई विदेशी गणमान्य व्यक्तियों का एक लंबा समूह भारत यात्रा पर आया है। आबादी के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता के तौर पर पीएम नरेंद्र मोदी के हर रुख पर करीब से नजर रखी जा रही है। पश्चिम चाहता है कि भारत रूस और चीन जैसे निरंकुश राष्ट्रों की निंदा करे। जॉनसन ने लंदन से प्रस्थान करने से पहले इसी बात पर प्रकाश डाला। हालांकि, मनमोहन सिंह ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दुनिया की आधी से अधिक आबादी उन देशों में रहती है, जिन्होंने रूस की निंदा नहीं की है, लेकिन वे विश्व अर्थव्यवस्था का केवल एक चौथाई हिस्सा हैं। वे ज्यादातर उत्पादक हैं जबकि पश्चिमी देश आज के बड़े उपभोक्ता हैं जो भारत जैसे उभरते देश के लिए बाज़ार बन सकते हैं।
मनमोहन सिंह अभी भी विदेश नीति पर कांग्रेस के पुराने और डरपोक रुख का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका यह लेख इसी बात को प्रतिबिंबित करता है लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि ये आज का नया भारत है। इसके तेवर बादल चुके हैं और यह फ्रंटफुट पर खेलता है। ऊपर से मोदी सरकार का मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत बनाने की कवायद इसे किसी भी दबाव से मुक्त रखेगी। उल्टे भारत ने पश्चिमी देशों को यह एहसास दिला दिया है कि वो दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है और उससे दुश्मनी मोल लेना सभी देशों के लिए भारी पड़ सकता है। यह लेख मनमोहन सिंह के निजी विचार को प्रदर्शित करते हैं और उन्हें इस डरपोक कूटनीति के खेल से बाहर निकलना चाहिए।
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