प्रशांत किशोर कौन हैं? लोगों को लगता है वो चुनावी रणनीतिकार है। पर, यह लोगों का भ्रम है। उन्होने बड़ी चतुराई से इस भ्रम को फैलाया है। पर, हम आपके आँखों से पट्टी हटाते हुए आज आपको बताएँगे की आखिर प्रशांत किशोर हैं क्या? प्रशांत किशोर एक अवसरवादी दलाल हैं। अब हम उन्हे अवसरवादी दलाल क्यों कह रहें है इसके अपने कारण है। पहले आपको इसके उदाहरण से अवगत करा देते हैं।
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PK ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए बहुत हाथ-पाँव मारे। कांग्रेस को 2024 में सीट डबल करने की स्कीम भी समझाई। खूब प्रपंच किए। अपनी महत्वाकांक्षाओं को साधने के लिए कई चक्रव्युह रचे पर कुछ काम नहीं आया। कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर घोषणा कर दी है कि प्रशांत किशोर पार्टी के लिए काम नहीं करेंगे और उन्होंने 2024 के आम चुनावों के लिए अधिकार प्राप्त कार्य समूह का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। सोनिया गांधी द्वारा समूह गठन के निर्णय के एक दिन बाद यह घोषणा की गई।
एक ट्वीट में कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने बताया-“प्रशांत किशोर के साथ एक प्रस्तुति और चर्चा के बाद, कांग्रेस अध्यक्ष ने एक अधिकार प्राप्त कार्य समूह 2024 का गठन किया है और उन्हें परिभाषित जिम्मेदारी के साथ समूह के हिस्से के रूप में पार्टी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। पर, उसने मना कर दिया। हम पार्टी को दिए गए उनके प्रयासों और सुझावों की सराहना करते हैं।”
आपको बता दें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा 21 अप्रैल को गठित यह आठ सदस्यीय समूह ही कांग्रेस का चुनावी अभियान संचालित करेगी इसे एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप 2024 के नाम से जाना जाएगा। इस समूह ने 2024 चुनाव के संदर्भ में सोनिया को रिपोर्ट सौंप दी है और उस पर चर्चा भी हो चुकी है। हालांकि, कांग्रेस ने इसके सदस्यों का नाम उजागर नहीं किया है। ‘
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PK कांग्रेस में शामिल होने के इच्छुक थे
PK कथित तौर पर कांग्रेस में शामिल होने के इच्छुक थे और उन्होंने पार्टी को प्रेजेंटेशन भी दिया था। पर, अंतिम चरण में वास्तव में क्या गलत हुआ? प्रशांत किशोर ने सोनिया गांधी के प्रस्ताव को क्यों ठुकराया ? इसका उत्तर इसके विवरण में है की प्रशांत किशोर हारते हुए घोड़े पर पैसे नहीं लगाते क्योंकि अगर उन्होने लगाया तो उनके द्वारा बनाया हुआ चुनावी रणनीति का भ्रमजाल टूट जाएगा। आप समझिए, जनता और नेता के बीच एक ट्रैंज़ैक्शन होता है- मत का और प्रशांत किशोर इसी के दलाल हैं। उनका कहना है की पार्टियां हमें जनता के मतों का ठेकेदार समझे और चुनाव के समय हमें कांट्रैक्ट और पैसे दे।
हम इन पैसों का उपयोग करके जनता को मूर्ख बनाएँगे और आपको चुनाव जीता देंगे। पर, इसमें भी एक लोचा है। वो पैसों का उपयोग कर कोई चुनावी रणनीति नहीं बनाते पर वो उसी दल से जुडते हैं जो जीत सकती है। इस तरह आप उन्हे धूर्त राजनीतिक पण्डित या फिर अवसरवादी दलाल भी कह सकते हैं। भाजपा से वो तभी जुड़े जब भाजपा मोदी लहर के शीर्ष पर थी। बंगाल में ममता, पंजाब में काँग्रेस और बिहार में नितीश से भी वो उनके राजनीतिक उत्कृष्टता के दौर में ही मिले और उनके जीत का श्रेय अपने सर पर बांध लिया। इन सभी विजयों के बदले में प्रशांत ने हर दल से सर्वोच्च राजनीतिक स्थान माना जिसे नकारते हुए सभी दलों ने उन्हे दुत्कार दिया इसीलिए पीके सभी दलों से अपमानित करके निकाले जा चुके हैं। अब पीके को लगा की anti-incumbency की वजह से भाजपा की सीट घटेंगी और कांग्रेस की बढ़ेंगी ।
इसीलिए वो कांग्रेस से जुड़े ताकि कांग्रेस की आगामी लोकसभा में बढ़ी सीटों का श्रेय ले सके। इसके लिए उन्होने कांग्रेस में एक बड़ा राजनीतिक पद मांगा और इसके लिए खूब गिड़गिड़ाए। कांग्रेस का कहना है कि प्रशांत किशोर व्यापक अधिकार चाहते थे और चुनाव प्रबंधन में खुली छूट चाहते थे, लेकिन पार्टी चाहती थी कि कांग्रेसी नेताओं का एक समूह 2024 के आम चुनावों की देखरेख करे। कथित तौर पर कई कांग्रेस नेताओं की राय थी कि किसी भी सलाहकार को पूरे शो को चलाने की शक्ति नहीं मिलनी चाहिए। कांग्रेस को अपनी प्रस्तुति में, PK ने उल्लेख किया था कि कांग्रेस को अपने सोशल मीडिया और संचार विभाग सहित संगठनात्मक ढांचे में बदलाव से गुजरना होगा।
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कांग्रेस में आपसी सहमति नहीं बनी
सोमवार को सोनिया गांधी के साथ बैठक के दौरान आठ सदस्यीय समूह के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने इस मुद्दे पर चर्चा की और चिंता जताई और समझा जाता है कि उन्होंने नेतृत्व से कहा कि उसे किशोर से स्पष्टीकरण मांगना चाहिए। प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होने के इच्छुक थे और उन्होंने बिना किसी उम्मीद के ऐसा करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन TRS का चुनावी ठेका लेने के बाद, वरिष्ठ नेताओं ने उनकी प्रतिबद्धता पर संदेह व्यक्त किया क्योंकि उनके पास पहले से ही पश्चिम बंगाल और बिहार में पार्टी के प्रतिद्वंद्वियों के साथ समझौता कर लिया है। सूत्रों ने कहा कि कुछ नेताओं ने कहा है कि अगर कांग्रेस उन्हे चुनावी कमान सौंपती है तो हितों का टकराव होगा। कुल मिलाकर सारांश यह है की कांग्रेस से दुत्कारे जाने के बाद उनका हाल खिसियानी बिल्ली का हो गया है और अब वो कह रहें हैं की अंगूर खट्टे हैं।