हर कोई असली प्रतिभा की सराहना करना पसंद करता है। इसलिए जब भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की बात आती है, तो उनके प्रशंसकों की बाढ़ सी आ जाती है। भारत समेत दुनिया के तमाम राजनेता जयशंकर की कार्यशैली की जमकर तारीफ कर चुके हैं और अब इस सूची में नवीनतम नाम रूसी विदेश मंत्री का जुड़ गया हैं। आजकल हर कोई डॉ. एस. जयशंकर के मजाकिया जवाबों, वाकपटुता और विद्वतापूर्ण दृष्टिकोण का प्रशंसक प्रतीत होता है। अब उनके नवीनतम फैन है- रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव।
दरअसल, इंडिया टुडे के साथ एक विशेष साक्षात्कार में लावरोव ने कहा कि जयशंकर एक अनुभवी राजनयिक और अपने देश के सच्चे देशभक्त हैं। जब रूसी विदेश मंत्री से इस कथन के पीछे का आधार पूछा गया तब उन्होने जयशंकर के उस वक्तव्य को उद्धित किया जो उन्होंने अमेरिका के परिप्रेक्ष्य में दिया था। जयशंकर ने कहा था- “हम अपने देश के लिए निर्णय इस आधार पर लेंगे कि भारत के सुरक्षा के लिए क्या आवश्यक है? भारत को अपने विकास के लिए जो चाहिए, उसके आधार पर हम अपने देश के लिए निर्णय लेंगे।“ रूसी विदेश मंत्री ने कहा की बहुत सारे देश के पास अमेरिकी दबाव के बावजूद इस प्रकार से अपनी स्वतंत्र विदेश नीति संचालित करने का न तो सामर्थ्य है और न ही साहस।
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जयशंकर की कुशल कूटनीति को देखते हुए लावरोव ने भारत की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा- ‘भारत हमारा बहुत पुराना दोस्त है। हमने बहुत पहले अपने रिश्ते को ‘रणनीतिक साझेदारी’ कहा था। फिर करीब 20 साल पहले भारत ने कहा था कि हम इसे ‘विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ क्यों नहीं कहते? और बाद में, भारत ने कहा कि चलो इसे ‘विशेष रूप से विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ कहते हैं। यह किसी भी द्विपक्षीय संबंध का अनूठा और अतुलनीय विवरण है।”
प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के बारे में बात करते हुए लावरोव ने कहा, ” हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ की अवधारणा का समर्थन किया। हमने स्थानीय उत्पादन के साथ साधारण व्यापार को प्रतिस्थापित करना शुरू कर दिया, भारत के लिए आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन को उनके क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया।” उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि भारत को रक्षा क्षेत्र में हर संभव सहयोग मिलेगा। रूसी विदेश मंत्री ने कहा, “रक्षा क्षेत्र में हम भारत को कोई भी हथियार प्रदान कर सकते हैं और रक्षा सहयोग के संदर्भ में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण भारत के किसी भी बाहरी साझेदार के लिए बिल्कुल अभूतपूर्व है।”
जयशंकर की कुशल कूटनीति की कायल हुई दुनिया
लावरोव की टिप्पणी दर्शाती है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर एक बार फिर अपनी कुशल कूटनीति से भारत को दुनिया में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद करने में कामयाब रहे हैं। हाल के दिनों में, जयशंकर ने भारत को बार-बार वैश्विक मंच पर खुद को स्थापित करने में मदद की है। उनकी कुशल कूटनीति के तीन बड़े उदाहरण हमने देखे-
- पश्चिम को यह बताना कि रूस से रियायती तेल खरीदने के लिए भारत से तुलना नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यूरोप खुद रूसी ऊर्जा का एक बड़ा खरीदार बना हुआ है।
- बाइडन प्रशासन को यह बताना कि भारत अपने आंतरिक मुद्दों के बारे में किसी भी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा, और अगर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भारत में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में बात कर सकते हैं तो भारत भी अमेरिकी मानवाधिकारों के बारे में अपनी चिंताओं के बारे में बात कर सकता है।
- बाइडन प्रशासन को बताना कि CAATSA संयुक्त राज्य अमेरिका का आंतरिक मुद्दा है और इसे सुलझाना उनपर निर्भर है। इसलिए, रूसी हथियारों की खरीद पर अमेरिकी धमकी को भारत बर्दाश्त नहीं करेगा और अगर अमेरिका को भारत के साथ अपने विशेष संबंध जारी रखना है, तो उसे आवश्यक समायोजन करना होगा।
डॉ. एस. जयशंकर की हालिया उपलब्धियों की सूची में चौथी उपलब्धि भी जुड़ चुकी है। जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, भारत को हथियार, पुर्जे और अन्य सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ति जारी रखने की क्षमता के बारे में रूस को बहुत संदेह था। अगर भारत की तीनों सैन्य सेवाएं कई रूसी उपकरणों, हथियारों और आयुधों का संचालन जारी रखती हैं, तो कम से कम आने वाले एक दशक के लिए निर्बाध रूसी सैन्य आपूर्ति की आवश्यकता होगी।
इसलिए, ऐसा लग रहा था रूस-यूक्रेन युद्ध भारत की रक्षा तैयारियों को प्रभावित कर सकता था। हालांकि, सर्गेई लावरोव ने जिस तरह जयशंकर की तारीफ की है, उससे लगता है कि भारतीय कूटनीति मास्को को भरोसे में लेने में कामयाब रही है। और फिर, रूसी विदेश मंत्री ने भी कहा है कि हम भारत को कुछ भी प्रदान कर सकते हैं। इसलिए, भारत के लिए अमेरिकी दबाव का जो एक बड़ा मुद्दा उठा था, उसका समाधान उसके विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के अलावा किसी और ने नहीं किया है।
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