मूर्तियों को संरक्षण की जरूरत है, हटाने की नहीं

मूर्तियों की चिंता सता रही है पर मंदिरों का उद्धार कब होगा?

सौजन्य ऑप इँडिया

इस्लाम अपने मूल स्वरूप में एक मूर्तिभंजक मजहब है। मक्का विजय के बाद मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद ने वहां स्थित सभी मूर्तियों को तुड़वा दिया था। इस्लाम के उदय के पूर्व अरबों के देवता हुबाल थे। 630 ईस्वी में मक्का विजय के बाद सबसे पहले मोहम्मद ने उनकी मूर्ति तुड़वाई और साथ में अन्य सभी मूर्तियां भी तोड़ दी गईं। अरब के इतिहास में इस्लाम पूर्व सभ्यता के इस महानतम देवता की जानकारी तक प्राप्त नहीं होती। वह कौन लोग थे जो इस देवता को पूजते थे, उनकी मान्यताएं क्या थीं, उनकी कहानियां क्या थीं, उनकी पूजा पद्धति क्या थी, सब कुछ मिटाया जा चुका है।

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अब आइए भारत की तरफ गौर करते हैं

भारत के पर्यटनस्थलों में शुमार दिल्ली स्थित कुतुब मीनार परिसर से भगवान गणेश की दो मूर्तियां हटाई जा सकती हैं. राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) ने गणेश भगवान की इन दोनों मूर्तियों को सम्मानजनक स्थल पर रखवाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को चिट्ठी लिखी है. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, एनएमए ने भारत के प्रसिद्ध पर्यटनस्थल कुतुब मीनार परिसर में इन दोनों मूर्तियों के रखे होने पर आपत्ति भी जाहिर की है.

गणेश भगवान की यह मूर्तियां कुतुब मीनार से हटाई जाए इसके पूर्व में यह जानना आवश्यक है कि जिस स्थान पर कुतुबमीनार बना है वह स्थान कभी हिंदू और जैन लोगों का प्रमुख धार्मिक स्थल था। ज्ञात तथ्य के अनुसार यहां 27 हिंदू और जैन मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर गुलाम वंश के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा कुवत उल इस्लाम मस्जिद बनाई गई थी। इसी के बगल में कुतुब मीनार आज खड़ा है।

यह विवादित विषय है कि कुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था अथवा नहीं। ऐबक के समकालीन इतिहासकारों द्वारा इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया है। साथ ही ऐबक केवल 4 वर्ष तक शासन कर सका था। उसके शासन का केंद्र भी लाहौर था ऐसे में वह दिल्ली में इतनी बड़ी इमारत का निर्माण क्यों करवाएगा। यदि वह ऐसा करवाता है तो समकालीन इतिहासकारों द्वारा इसका उल्लेख क्यों नहीं किया गया। ऐसे कई प्रशनों के संबंध में चर्चा नहीं की गई है। हालांकि वर्तमान इतिहासकारों द्वारा कहा यही जाता है कि क़ुतुब मीनार ऐबक ने बनवाया है। लेकिन इस तथ्य को कोई झुठला नहीं सकता कि वहां 27 मंदिरों को तोड़ा गया था क्योंकि हिंदू देवताओं की मूर्तियां वहां आज भी मिलती हैं।

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कुतुबमीनार सम्मानजनक स्थल नहीं

गणेश भगवान की मूर्तियों के लिए कुतुबमीनार सम्मानजनक स्थल नहीं है, यह तस्वीर को अलग नजरिए से देखने का तरीका है। मूर्ति वहीं स्थापित है जहां उसे स्थापित किया गया था, वास्तव में उस पर बनाए गए मंदिर का विध्वंस किया गया था और विध्वंस कार्यों की इस नीचता तथा उनके द्वारा भारत के मस्तिष्क पर लगाए गए गुलामी के कलंक को मिटाने का प्रयास किसी ने नहीं किया। क़ुतुब मीनार को बिना जानकारी राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया।

भारत एकमात्र ऐसा देश है जो विदेशी आक्रांताओं, जिन्होंने हमारे धर्म स्थलों को तोड़ा, हमारे धर्मग्रंथों को जलाया, हमारे पूर्वजों का रक्त बहाकर महिलाओं का बलात्कार किया, उन्हें नग्न अवस्था में चौराहे पर खड़ा करले बेच दिया, हम ऐसे आक्रांताओं द्वारा हमारी पराजय के प्रतीक स्वरूप बनाए गए स्थलों को सहेज कर रख रहे हैं। उन स्थलों पर हमारी प्राचीन सभ्यता के अंतिम निशान बचे हैं, जो यह प्रमाण हैं कि कभी यहां सनातन धर्म की ध्वजा लहराती थी, हम उन्हें भी मिटाना चाहते हैं।

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अरब के कबीलों की मूर्तियों का क्या हुआ

अरब के कबीलों की मूर्तियां तो मुहम्मद ने तोड़ी, हमारी मूर्तियों का अपमान तो हम स्वयं कर रहे हैं। कुतुबमीनार को लेकर पुनः विमर्श शुरू हुआ है। हिंदुत्ववादी संगठन इस परिसर और इमारत की पुरातात्विक जांच करवाने की मांग कर रहे हैं। यह वास्तव में था क्या, ध्रुव स्तम्भ या मौलाना के के लिए बनाई गई कोई इमारत? एमएनए को जांच की मांग उठने के बाद अचानक वर्षों से रखी मूर्ति के अपमान की चिंता हो उठी है। इतने वर्षों वह मूर्ति वहीं पड़े पड़े धूल खाती रही तब यह चिंता गायब थी। भग्नावशेष में पड़ी मूर्ति भगवान का अपमान है, उनके मन्दिर भंग करना अपमान नहीं है? उस अपमान को कब धोया जाएगा? या मूर्ति हटाकर भारत इतिहास में हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार के दस्तावेज को भी जला दिया जाएगा, उसके सबूत मिटा दिए जाएंगे?

 

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