हम तो चले परदेस हम परदेसी हो गए छूटा अपना देश हम परदेसी हो गए, अब यह वो कथन हैं जो इस समय नवजोत सिंह सिद्धू की यथास्थिति पर एकदम सटीक बैठता है। जहाँ एक ओर उनके भाई-मित्र-सखा इमरान खान की गद्दी उनके हाथों से छूट गई है तो वहीं यहाँ सिद्धू के हाथ बड़ी मुश्किल से आई पंजाब कांग्रेस कमेटी की कमान भी छीन गई है। ऐसे में अब सिद्धू अब भारत में ही नहीं, पाकिस्तान में भी पराये हो गए हैं क्योंकि भारत की राष्ट्रीय पार्टियों का चक्कर लगा चुके सिद्धू अब अपने राजनीतिक पतन की ओर बढ़ गए हैं तो वहीं जिन्हें गले मिला भाई-भाई कहा था उस इमरान खान के हाथों से भी सत्ता चली गई है। अब दोनों ही राजनीतिक रूप से बेरोज़गार हैं और दोनों भाई चल मेरे भाई सुन रहे हैं, ऐसे में जिए तो जियें कैसे वाली हालत में पहुँच चुके सिद्धू का कोई ठिकाना बचा नहीं है जहाँ वो अपने दुःख और पीड़ा का रोना रो सकें।
दो शत्रु देशों के दो पुराने क्रिकेट खिलाडी जो एक दूसरे के खेल के मैदान में दुश्मन हुआ करते थे, दोनों ऐसी हार हारे हैं कि इमरान और सिद्धू के हाथ कुछ बचा ही नहीं है। दोनों ही नेताओं के लिए शनिवार बड़ा भरी पड़ा, इमरान खान अपने विरुद्ध प्रस्तावित हुए अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं कर पाए तो वहीं सिद्धू को कांग्रेस पार्टी के आलाकमान ने ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। एक दोस्त का संवैधानिक पद हाथ से गया तो दूसरे का राजनीतिक पद-प्रतिष्ठा। इमरान खान अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं रहे तो वहीँ नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नहीं रह सके। जहाँ एक बार फिरसे पाकिस्तान का प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका तो वहीं पंजाब कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष 8 महीने के भीतर बदला जाना उसी कमी किस तस्दीक कर रहा है जो दोनों ओर महसूस की गई। क्रिकेटर से नेता बने दोनों मित्र इमरान खान और नवजोत सिंह सिद्धू राजनीतिक समर में खरे नहीं उतर पाए।
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बता दें, इमरान को बड़ा भाई कहने वाले सिद्धू का पाकिस्तान प्रेम इमरान के इसी कार्यकाल में देखने को मिला था। पाकिस्तान की जमीन पर सिद्धू जे जाकर बार-बार अपनी मित्रता के कसीदे भी पढ़े हैं और ज्ञान भी बांटा है। कुल सात पारियों में इमरान खान ने दो बार नवजोत सिंह सिद्धू को आउट किया जबकि एक बार कैच आउट किया है। क्रिकेट के मैदान पर चली ये दुश्मनी जब राजनीति की पिच पर आई, तो दोस्ती में परिवर्तित हो गई। भारत-पाक में कई बार तनाव के बावजूद दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा जो सिद्धू के विरुद्ध हो गया। आज भी एक भारतीय होने के नाते जनता सिद्धू को भर-भरकर कोसती है, सिद्धू पर यहाँ तक भी आरोप लगते हैं कि वो इमरान खान से मित्रता निभाने के चक्कर में एक भारतीय होने का मूल ही भूल जाते हैं।
पंजाब विधानसभा चुनाव के बाद नवजाेत सिद्धू सहित 5 राज्यों के अध्यक्षों से हाईकमान ने इस्तीफा मांग लिया था। पिछले एक महीने से इस पर रस्साकस्सी का दौर जारी था। कुछ दिन पहले चंडीगढ़ में महंगाई के खिलाफ धरने में सिद्धू की अन्य नेताओं के साथ झड़प से भी हाईकमान नाराज था। इसके चलते ही उसे फिर से प्रधान नहीं बनाया गया।और लगे हाथ इस बार इमरान खान का पद भी हलाल हो गया ऐसे में दोनों राजनीतिक रूप से बेरोज़गार मित्र अपनी जमीन तलाश रहे हैं जो फ़िलहाल मिलती नज़र नहीं आ रही है।
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