‘रालिव, गालिव और चालिव’, आज भी कश्मीरी मस्जिदों की यही सच्चाई है

रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई!

source- tfipost

हाल ही में आई फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने बताया है कि कैसे कश्मीर के हिंदुओं के समक्ष 1990 के दौर में तीन है विकल्प शेष छोड़े गए थे। रलीव, गलिव या सलिव, अपना धर्म बदलो, मारे जाओ या भाग जाओ। कश्मीर से पलायन की कहानी सभी जानते हैं, लेकिन 30 वर्ष बाद आज भी कश्मीर में जिहादी मानसिकता के लोग निवास कर रहे हैं।

8 अप्रैल 2022 को श्रीनगर की जामा मस्जिद कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा देश विरोधी नारे लगाए गए हैं। वहां एकत्र हुए लोगों द्वारा जुमे की नमाज अदा की गई और उसके बाद खुलेआम भारत विरोधी नारेबाजी की गई। रमजान के महीने के कारण मस्जिद में उपस्थिति अतिथि और बड़ी संख्या में लोगों ने आतंकवादी जाकिर मूसा के लिए नारेबाजी करने के बाद भारत से आजादी के नारे लगाए

 

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जिहादी मानसिकता नहीं बदल सकती

नारेबाजी के बाद की फिल्में जम्मू कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थरबाजी की। कुछ ही देर में सुरक्षाबलों ने भीड़ को नियंत्रित कर लिया है। किंतु यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि कश्मीर में जिहादी मानसिकता के लोग पुनः सक्रिय हो रहे हैं। इससे पहले पिछले महीने सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह ने स्वीकार किया था कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद पथराव की घटनाएं कम हुई हैं. उन्होंने कहा था, “अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, पथराव की घटनाएं लगभग शून्य हैं।” ऐसे में धारा 370 हटने के बाद यह सम्भवतः पहली ऐसी घटना है जो सुरक्षा एजेंसियों और देश के लिए चिंता का विषय है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मस्जिद मिस वाइस उमर फ़ारुख़ नामके अलगाववादी नेता के नियंत्रण में मानी जाती है। इस मस्जिद में 1990 के दौर में भी हिंदू विरोधी तथा देश विरोधी नारे लगाए गए थे। ऐसे में कश्मीरी कट्टरपंथी सांकेतिक रूप से यह संदेश देना चाहते थे कि कश्मीर में पुनः 1990 का दौर वापस आने वाला है।

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कट्टरपंथी मुसलमान भूल गए अब है मोदी सरकार

पिछले कुछ महीनों में सुरक्षा एजेंसियों, संघ के स्वयंसेवकों, भाजपा के नेताओं, कश्मीरी हिंदुओं और बाहर से आए श्रमिकों पर हमले हुए हैं। 19 मार्च को 2022 को CRPF के कैम्प पर हमला किया गया है।

कश्मीर के कट्टरपंथी मुसलमान यह भूल गए हैं कि भारत में अब मोदी सरकार का राज है। यह सत्य है कि आतंकवाद की थोड़ी बहुत घटनाएं सामने आई है किंतु यह भी सत्य है कि पिछले 3 महीने में 45 आतंकियों को मारा जा चुका है। इसके अतिरिक्त सीआरपीएफ को बेसकैंप बनाने के लिए स्थान आवंटित किए गए हैं। साथ ही आम कश्मीरी में आतंकवाद के प्रति रुझान न बढ़े इसके लिए सेना लगातार प्रयासरत है। कुछ दिन पूर्व चिनार कोर की ओर से स्थानीय मुसलमानों के साथ मिलकर इफ्तार का आयोजन किया गया था। इसके अतिरिक्त सेना द्वारा कश्मीर के युवाओं को आतंकवाद से दूर रखने के लिए पर्सनालिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया जा रहा है।

श्रीनगर की मस्जिद में हुई नारेबाजी कश्मीर में आतंकवाद को पुनर्जीवित करने का खोखला प्रयास है। जल्द ही सेना और सुरक्षा एजेंसियों की कार्यवाही द्वारा ऐसे तत्वों को नियंत्रित कर लिया जाएगा। हालांकि श्रीनगर की नारेबाजी यह भी बताती है कि कट्टरपंथी इस्लामिक शक्तियों को ढील देने पर वह तुरंत अपने वास्तविक रूप में सामने आती हैं। यह लोग इसी इंतजार में है कि देश में कोई कमजोर सरकार आए और यह पुनः कश्मीर को भारत से काटने की योजना पर कार्य करने लगे।

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