आसनसोल और कोलकाता में हुए उपचुनाव में तृणमूल जीत चुकी है। भाजपा की हार हुई। पर, उपचुनाव के नतीजों में बीजेपी से ज्यादा टीएमसी को झटका लगा है। भाजपा दो बार से जीत रही आसनसोल लोकसभा सीट तृणमूल कांग्रेस से हार गई, वहीं टीएमसी ने दक्षिण कोलकाता की बालीगंज विधानसभा सीट बरकरार रखी। तृणमूल के टिकट पर आसनसोल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले दिग्गज अभिनेता से राजनेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा से सीट छीन ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो वर्ष 2014 और 2019 में इस सीट से भाजपा उम्मीदवार के रूप में सांसद चुने गए थे। ध्यान देने वाली बात है कि प.बंगाल में वर्ष 2011 में सत्ता में आने के बाद से तृणमूल कांग्रेस अब तक इस सीट को जीतने में नाकाम रही थी। आसनसोल से सिन्हा को 56 फीसदी से ज्यादा वोट मिले, जबकि भाजपा उम्मीदवार के रूप में अग्निमित्र पॉल को 30 प्रतिशत से अधिक मत मिले।
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जीत के बावजूद गिरा TMC का ग्राफ
लेकिन, इस चुनाव में ऐसे तीन राजनीतिक परिवर्तन हुए जो तृणमूल के लिए राजनीतिक चिंता का सबब हैं। पहला, टीएमसी ने इस बार मुस्लिम मतदाताओं के वोटों में तेज गिरावट देखी। दूसरा, तृणमूल के उम्मीदवार से तृणमूल कैडर इस बार नाखुश दिखे और तीसरा यह की वामपंथ के लिए लोगों ने पुनः मतदान किया। नवंबर 2021 में अनुभवी राजनेता सुब्रत मुखर्जी की मृत्यु के बाद बालीगंज विधानसभा क्षेत्र से टीएमसी ने बाबुल सुप्रियो को अपना उम्मीदवार बनाया। उपचुनाव में बाबुल को लगभग 50 प्रतिशत वोट (51,199) मिले। यह 2021 के विधानसभा चुनाव में मुखर्जी के 70 फीसदी वोटों से करीब 20 फीसदी कम है। माकपा उम्मीदवार और अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की भतीजी सायरा शाह हलीम को इस सीट से लगभग 30 प्रतिशत वोट (30,971) मिले। आपको बता दें कि वर्ष 2021 में लेफ्ट करीब 6 फीसदी वोट के साथ तीसरे नंबर पर था।
बाबुल सुप्रियो को टीएमसी द्वारा उम्मीदवार के रूप में उतारा जाना उसकी द्विचित प्रवृति की राजनीतिक मानसिकता का प्रदर्शक है। यह दर्शाता है कि टीएमसी के लिए सत्ता ही एकमात्र सिद्धान्त है। अगर सत्ता मिलती है तो उसे भाजपा के भूतपूर्व सांसद को भी टिकिट देने से गुरेज नहीं है। हालांकि, यह बात उसके मुस्लिम मतदाताओं को पसंद नहीं आई शायद इसीलिए, टीएमसी को मिले मत में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। बिल्कुल स्पष्ट है कि मुसलमानों ने खुलकर बाबुल सुप्रियो के पक्ष में वोट नहीं किया। ये वही बाबुल सुप्रियो हैं, जिन्होंने वर्ष 2018 में रामनवमी के जुलूस के बाद सांप्रदायिक हिंसा और आसनसोल में अपने खिलाफ नारे लगाने वाले लोगों की चमड़ी उधेड़ देने की बात की थी। उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का भी समर्थन किया। साथ ही उन्होंने CAA और बंगाल में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के कार्यान्वयन की भी सहमति दी थी।
संगठनात्मक समस्याओं का शिकार है TMC
हालांकि, एक उप-चुनाव एक दीर्घकालिक प्रवृत्ति की राजनीतिक भविष्यवाणी करने में विफल रहता है, पर यह टीएमसी जैसे राजनीतिक संगठनों के लिए सबक हैं। गौरतलब है कि विभाजनकारी राजनीति समावेशिता का विकल्प नहीं है और मुसलमानों ने तृणमूल के उम्मीदवार की पसंद के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा दिया है। कोलकाता में भाजपा को दूसरे स्थान से हटाकर वामपंथियों ने तृणमूल का मुकाबला करने की क्षमता दिखाई है। बंगाल संदेश दे रहा है कि यहां ऐसी राजनीति अवांछित है। राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी ने डेक्कन हेराल्ड को बताया है कि पार्टी अपनी संगठनात्मक समस्याओं का भी शिकार है। कोलकाता उपचुनाव दर्शाता है कि ममता से मुस्लिम मतदाताओं का विश्वास गिर रहा है। वामपंथियों के वोटों में वृद्धि इसी बात का एक संकेत है। वैसे भी ममता बनर्जी सत्ता के लिए अपने मुस्लिम तुष्टीकरण के एजेंडे को भी त्याग सकती हैं, यह भादु शेख और मुस्लिम छात्र नेता की हत्या और उसके साथ हुए अन्याय से साफ-साफ झलकता है!
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