बुलडोजर कार्रवाई से राहत की मांग करने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा झटका

उपद्रवियों पर कार्रवाई रुकेगी नहीं!

SC Bulldozer

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रुदाली राग गाने वाले और बुलडोज़र के खौफ में विधवा विलाप करने वालों को सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार पुनः धोबीपछाड़ दे दिया है। बुलडोज़र ने जिस तेजी से धड़ाधड़ उपद्रवियों की संपत्ति और अवैध निर्माणों पर धावा बोला है, अब उससे बचने के लिए लिबरल गैंग अदालतों से गुजरते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया, जहां से उसे पुनः दुत्कार कर भगा दिया गया है। पिछले दिनों रामनवमी के अवसर पर देश के कई राज्यों में निकले शोभायात्रा पर विशेष समुदाय द्वारा जमकर पथराव किया गया, कई जगहों पर हिंसा देखने को मिली, जिसके बाद जमकर बवाल मचा। प्रदेश सरकारों ने ऐसे उपद्रवियों की जमकर खबर ली और उनकी अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर भी चलाए गए, जिसके बाद से ही लिबरल गैंग विलाप कर रहा है।

दरअसल, अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें रामनवमी और हनुमान जयंती के दौरान राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात में हुई झड़पों की जांच कराने हेतु निर्देश देने की मांग की गई थी। जनहित याचिका में मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर प्रदेश में ‘बुलडोजर न्याय’ की मनमानी कार्रवाई की जांच के लिए एक समान समिति गठित करने का निर्देश देने की बात भी कही गई थी। हालांकि, इस याचिका को न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने खारिज कर दिया, जिसमें वकील से कहा गया कि वह ऐसी राहत की मांग न करें जो अदालत द्वारा नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति राव ने कहा, “आप चाहते हैं कि जांच की अध्यक्षता पूर्व सीजेआई करें? क्या कोई खाली बैठा है? ऐसी राहत की मांग मत करो जो इस अदालत द्वारा नहीं दी जा सकती।” यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रामनवमी और हनुमान जयंती समारोह के दौरान कुछ राज्यों में हाल के धार्मिक संघर्षों की जांच के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच पैनल की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। तिवारी ने अपनी याचिका में रामनवमी के दौरान राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात में हुई झड़पों की जांच कराने का निर्देश देने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि स्थिति चिंताजनक है और आरोप हैं कि एकतरफा जांच चल रही है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाई पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है और लोकतंत्र और कानून के शासन की धारणा में फिट नहीं बैठती है।

हालांकि, अदालत इस बात पर खिन्न नज़र आई क्योंकि जिस कार्रवाई पर उनका कोई अधिकार नहीं और जो सरकारी काम और प्रक्रिया का हिस्सा हो उस पर एक एजेंडा आधारित याचिका के आधार पर कैसे कोई सवाल उठाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर याचिका को त्वरित फटकार लगाते हुए जो सुनाया है, उससे लिबरल गुट की जड़ें हिल गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे तत्वों द्वारा बुलडोजर से राहत की मांग करने वालों को करारा झटका दिया है जो कई दिनों तक दर्द के साथ इसका एहसास करता ही रहेगा!

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