जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा है। इतना बड़ा की दिल्ली का रास्ता यूपी से ही होकर जाता है और अगर न भी जाए तो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री निर्विवाद रूप से देश का सबसे प्रभावशाली क्षत्रप होता है। मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी सपा का भी भारतीय राजनीति में कुछ ऐसा ही रसूख था। पर, एक दिन उनका लड़का जैसे-तैसे इंजीनियर की पढ़ाई पूरी कर घर आया। बेरोजगार था पर एक रसूखदार बाप की औलाद था अतः गद्दी पर बैठने की जिद करने लगा। पुत्रमोह में ‘अब्बाजान’ ने उसकी ताजपोशी कर दी और पुत्र ने पिता और पार्टी के सारे रसूख को सूखा दिया! एम-वाई फैक्टर, अखिलेश और शिवपाल का पारिवारिक संग्राम, अपर्णा का गृह त्याग, आज़म का पूर्णकालिक वनवास, मुस्लिम तुष्टीकरण का चरमोत्कर्ष और सैद्धांतिक विरोधाभास से लेकर प्रशासनिक और राजनीतिक अक्षमता को प्रदर्शित करने वाले वो सारे कार्य किए जो सपा का अस्तित्व निश्चित रूप से मिटा देंगी। इसकी शुरुआत हो चुकी है। अब सपा के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरा आजम खान ने मोर्चा खोलने की शुरुआत की है।
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अखिलेश के खिलाफ उतरे आजम खान के मीडिया प्रभारी
आजम खान वर्तमान में जेल में बंद हैं। उनकी गिरफ्तारी के बाद सपा ने जो हताशा दिखाई उसे वो भूले नहीं हैं। आजम खान ने 2022 का विधानसभा चुनाव सीतापुर जेल में सलाखों के पीछे से लड़ा और 10वीं बार रामपुर सीट से जीत दर्ज की। हाल ही में, आजम खान के मीडिया प्रभारी फसहात खान ने रामपुर में सपा कार्यालय में कहा कि सीएम योगी सही थे। अखिलेश नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर हों। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा, “आजम खान के संकेत पर मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान किया। पर, अखिलेश यादव ने मुसलमानों का पक्ष नहीं लिया और पार्टी के भीतर मुसलमानों को महत्व नहीं दिया। अब अखिलेश यादव को लगता है कि हमारे कपड़ों से बदबू आ रही है।” आज़म की उदासीनता और मुस्लिम समाज के लोगो के भाजपा से जुडने के कारण मुस्लिम निसंदेह ही सपा से बिछड़ते जा रहे हैं।
शिवपाल भी जाने वाले हैं!
ध्यान देने वाली बात है कि मुलायम सिंह यादव द्वारा स्थापित समाजवादी पार्टी में M-Y फैक्टर खूब फला-फूला। यहां M का मतलब दो चीजों से है यानी मुस्लिम और मसल पावर। यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव के पास बाहुबल था जिसने पार्टी को अंदर से मजबूत किया। लेकिन समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी शिवपाल सिंह यादव के बीच समीकरण अब अच्छे नहीं लगते। शिवपाल सिंह यादव ने वर्ष 2018 में भतीजे अखिलेश के साथ लंबे समय से चली आ रही खींचतान के बाद अपनी पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाई थी। हालांकि, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए उन्होंने सपा से हाथ मिला लिया पर पार्टी को फिर भी हार मिली। नतीजे आने के बाद झगड़ा शुरू हो गया, एक तरफ सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शिवपाल सिंह यादव को पार्टी की बैठक से बाहर कर दिया गया तो दूसरी ओर, शिवपाल ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, जिससे शिवपाल सिंह यादव के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई।
M का प्रयोग मुसलमानों के लिए भी किया जाता है। यादव समुदाय के अलावा मुस्लिम समाजवादी पार्टी के मुख्य मतदाता रहे हैं। मुस्लिम वोट बैंक को बरकरार रखने वाले बड़े नेता आजम खान जैसे थे। चुनाव के बाद के विश्लेषण ने साबित कर दिया कि 2022 के चुनावों में भी मुसलमानों ने बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी को वोट दिया था। लेकिन एक के बाद एक समाजवादी पार्टी के बड़े-बड़े मुस्लिम नेता पार्टी और आलाकमान पर मुसलमानों के लिए काम नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं। आजम खान के मीडिया प्रभारी से पहले, सपा नेता शफीकुर्रहमान बर्क ने भी पार्टी पर यही आरोप लगाया था।
गौरतलब है कि राज्य में समाजवादी पार्टी के विस्तार में मदद करने वाले शिवपाल सिंह यादव को इस तरह अपमानित किया गया है कि अब सपा से बाहर निकलने के रास्ते ढूंढ़ रहे हैं। साथ ही आजम खान और उनके साथ के नेताओं के पार्टी छोड़ने से सपा अपने मूल मुस्लिम वोट खो सकती है। अपने बड़े चेहरों को एक साथ रखने में नाकाम रहने से समाजवादी पार्टी फूटने की राह पर है। यह कहा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी डूबती कांग्रेस के पदचिन्हों को ट्रेस कर रही है और यह जल्द ही कांग्रेस 2.0 बन सकती है।
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