एक अध्ययन ने कर दिया खुलासा, बुर्का नहीं पहनने वाली मुस्लिम छात्राओं की जीवन शैली बेहतर होने की है संभावना

बेरोजगार लिबरलों की सोच पर लगी गहरी चोट!

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21वीं शताब्दी में भी धार्मिक रीति रिवाज़ के नाम पर लोगों के मन में एक कुंठा का भाव बना हुआ है। अगर आज के परिदृश्य की बात करें तो कट्टरपंथियों और विशेषकर इस्लामवादियों के द्वारा शरिया के नाम पर महिलाओं पर कई तरह के अनैतिक कानून थोपे गए हैं। जिससे समाज में महिला सशक्तिकरण को भी चोट पहुंच रहा है। फ्रांस में डेली मेल ऑनलाइन पत्रिका द्वारा छापे गए एक लेख ने मुस्लिम महिलाओं की जीवनशैली बेहतर होने के पीछे एक बेहद ही चीर परिचित कारण बताया है। जिस पर चर्चा करना तो बनता है। दरअसल, फ्रांस में डेली मेल ऑनलाइन पत्रिका द्वारा छापे लेख में यह बताया गया है कि बिना बुर्क़ा अथवा हिजाब वाली मुस्लिम महिलाओं की जीवनशैली बेहतर होती है। ये तो लेख में लिख दिया गया लेकिन यही बात भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में उठाया जाता है तो उसे ‘फासीवादियों’ का देश कहा जाता है।

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आपको बता दें कि बुर्का और हिजाब मुस्लिम महिलाओं पर थोपा गया है। कोई भी मुस्लिम लड़की हिजाब या बुर्का पहनने और सिर से पैर तक खुद को ढकने की इच्छा के साथ पैदा नहीं होती है। मुस्लिम लड़कियों से कहा जाता है कि वे खुद को लंबे काले कपड़े के टुकड़ों में बांध लें। उन्हें दुनिया से खुद को छिपाने के लिए मजबूर किया जाता है। इन दिनों मुस्लिम समाज द्वारा हिजाब और बुर्का को ‘सशक्तिकरण’ और ‘आजादी’ का प्रतीक कहा जा रहा है और इन सब में उनका साथ बेरोजगार लिबरल भी देते आए हैं।

परदे वाले कपड़ों का एक महिला पर क्या प्रभाव पड़ता है? वे उसके मानसिक स्थिति को कैसे प्रभावित करते हैं? क्या वे उसके विकास में बाधा डालते हैं? क्या ऐसा हो सकता है कि हिजाब और बुर्का वास्तव में मुस्लिम महिलाओं के समाज में सफल नहीं होने का परिणाम है?

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क्या कहता है फ्रांसीसी अध्ययन?

आइये इसपर एक फ्रांसीसी अध्ययन द्वारा बुर्का और हिजाब के परिणामों को लेकर प्रकाश डालते है-

फ्रांस में एक अध्ययन हुआ जिसमें 1971-74 के बीच पैदा हुई मुस्लिम महिलाओं (और इस तरह 1994 के सर्कुलर से पहले स्कूल पूरा करने) की तुलना 1987-90 के बीच पैदा हुई महिलाओं से की गई, जिसमें पाया गया कि कानून के कुछ सकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।
निष्कर्षों से पता चला है कि 1971-74 समूह के अपने गैर मुस्लिम साथियों की तुलना में हाई स्कूल से स्नातक होने की संभावना लगभग 13 प्रतिशत थी।

वहीं 1987-90 के मुसलमानों के समूह के लिए – जो किसी न किसी रूप में घूंघट प्रतिबंध के साथ स्कूल में भाग लेते थे – अंतर केवल सात प्रतिशत तक कम हो गया।

आपको बता दें कि 1994 में, फ्रांस ने एक कानून पेश किया जिसने स्कूल परिसर से पर्दा हटा दिया।

इसी तरह, स्कूल परिसर से घूंघट पर प्रतिबंध का उन छात्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा, जिन्हें घूंघट पहनने के लिए मजबूर किया गया था और इसके कारण स्कूल में कलंक और भेदभाव से पीड़ित छात्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा। अध्ययन के सह-लेखक प्रोफेसर एरिक मौरिन के अनुसार, यह प्रदर्शित किया गया था कि 1994 में घूंघट पर प्रतिबंध के बाद मुस्लिम महिलाओं के समूह में ‘शिक्षा प्राप्ति में उल्लेखनीय वृद्धि’ हुई थी, जिन्होंने मिडिल स्कूल में भाग लिया था।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अध्ययन में यह भी पाया गया कि मुस्लिम महिलाओं को पर्दा प्रथा से मुक्ति से सामाजिक एकीकरण में सुधार हुआ। पर्दा प्रथा छोड़ने के बाद मुस्लिम महिलाओं ने फ्रांसीसी समाज के साथ अधिक एकीकरण देखा।

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बुर्का पर प्रतिबंध ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं

आज जब विश्व पटल पर बुर्का प्रथा से जोड़कर महिलाओं की आजादी की बात होने लगी है तो वहीं भारत में इस मुद्दे को धार्मिक रंग देकर मामले को द्वेषपूर्ण बना दिया जाता है। ज्ञात हो कि कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब और बुर्का को गैरकानूनी घोषित करने से मुस्लिम समुदाय काफी हद तक परेशान हैं। एक भारतीय राज्य द्वारा बुर्का पर प्रतिबंध ने अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं।

हालांकि, यदि फ्रांसीसी अध्ययन को ध्यान में रखा जाए, तो भारत भारतीय मुसलमानों, विशेषकर महिलाओं के जीवन में शांति लाने की दिशा में रचनात्मक कदम उठा रहा है। मुस्लिम महिलाओं के जीवन से पर्दा हटाने से वे अकादमिक और सामाजिक रूप से बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं।

क्या इस्लामवादी यही रोकना चाहते हैं? क्या वे चाहते हैं कि मुस्लिम महिलाओं को सफल न होने दिया जाए? क्या वे अपने ही समुदाय की महिलाओं को अपने आधिपत्य के लिए चुनौती देने वाले के रूप में देखते हैं? एक मुस्लिम महिला को क्या पहनना चाहिए और किस चीज से परहेज करना चाहिए, इस पर इस्लामवादी मौलवी क्यों फैसला करेंगे?

यदि आज विश्व पटल में मुस्लिम महिलाएं पर्दा प्रथा को छोड़ कर सामाजिक और आर्थिक मामलों की तरफ बढ़ेंगी तो वो सभी क्षेत्रों में फलने-फूलने लगेंगी जिससे उनका समाज में भागीदारी के अधिक अवसर प्राप्त हो सकेंगे। मुस्लिम महिलाओं को ज्ञान और विज्ञान को चुनना चाहिए जिससे देश का जनकल्याण हो सके।

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