भारत का विचार स्पष्ट है – वह अपनी नीति अपने अनुसार तय रहेगा, किसी के बहकावे में नहीं। इसका एक अन्य प्रमाण अभी हाल ही में देखने को मिला, जब भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पाश्चात्य जगत को स्पष्ट कर दिया कि भारत सभी प्रकार के संबंधों का स्वागत करती है, पर रूस के साथ संबंधों पर उनका दृष्टिकोण न बदला था और न बदलेगा।
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ब्लूमबर्ग को दिए साक्षात्कार के अनुसार,
“आपका एक ऐसा पड़ोसी है [पाकिस्तान], जो दूसरे पड़ोसी से हाथ मिलाता है [यानि चीन], और दोनों ही मेरे विरुद्ध हैं। रूस-यूक्रेन युद्द के परिप्रेक्ष्य में ईश्वर न करे परंतु यदि ऐसी ही गुटबाज़ी रही, तो भारत को भी अपनी रक्षा हेतु कुछ आवश्यक समाधान निकालने होंगे”।
यूरोपीय संघ एवं पाश्चात्य जगत से अपने संबंधों के परिप्रेक्ष्य में निर्मला आगे बोली, “भारत यूरोपीय संघ एवं मुक्त, उदार पश्चिमी जगत के साथ मित्रता के लिए इच्छुक है, परंतु एक दुर्बल राष्ट्र के रूप में बिल्कुल नहीं, जिसे सहायता के लिए हर समय अन्य देशों की ओर ताकना पड़े”। यहाँ पर अर्थ स्पष्ट था। अनेकों दबाव के बाद भी भारत न तो अपने कूटनीतिक रुख से विमुख होगा, और न ही भारत रूस संबंधों में किसी भी प्रकार का बदलाव आएगा। यह बयान ऐसे समय पर आया है, जब अमेरिका से लेकर लगभग सम्पूर्ण जगत भारत पर दबाव बनाया हुआ है कि किसी भी तरह वह उसे अपने इशारों पर नचवा सके और भारत को रूस के विरुद्ध बोलने पर विवश कर सके।
परंतु भारत ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली है। जब लाख दबाव के बाद भी भारत कूटनीतिक तौर पर नहीं झुका, तो अमेरिका ने पहले तो गीदड़ भभकियों से भारत को डराने का प्रयास किया, लेकिन यहाँ पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने न केवल मोर्चा संभाला, अपितु बाइडन प्रशासन को छठी का दूध भी याद दिलाया।
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अब स्थिति ऐसी हो चुकी है कि अमेरिका भारत को मनाने के लिए सेल्सगिरी पर उतर आया है। हम मज़ाक नहीं कर रहे हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका का मानना है कि भारत को रूस से अलग होना चाहिए, रूसी रक्षा उपकरणों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी चाहिए और इसके बजाय वाशिंगटन से अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करना चाहिए।
TFIPost के एक विश्लेषणात्मक लेख के अंश अनुसार
“एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए, पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा, “हम भारत सहित अन्य देशों के साथ अपने संबंधो को लेकर बहुत स्पष्ट हैं। हम उन्हें रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर नहीं देखना चाहते हैं। हम उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन रूस पर निर्भरता हतोत्साहित करने के अलावा कुछ नहीं हैं।” हालांकि, पेंटागन ने साथ-साथ यह भी कहा, “हम भारत के साथ रक्षा साझेदारी को भी महत्व देते हैं। और जैसा कि एक सप्ताह पहले प्रमाणित किया गया था, हम इसे आगे बढ़ाने के तरीकों को भी देख रहे हैं। यह जारी रहेगा क्योंकि यह मायने रखता है और यह महत्वपूर्ण है।”
ध्यान देने वाली बात है कि बीते गुरुवार को अमेरिकी विदेश विभाग के काउंसलर डेरेक चॉलेट ने कहा था कि बाइडन प्रशासन भारत के साथ काम करने के लिए बहुत उत्सुक है, क्योंकि यह अपनी रक्षा क्षमताओं और रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाता है। वहीं, राज्य के उप सचिव वेंडी शेरमेन ने कहा कि अमेरिका भारत के साथ रूसी हथियारों पर अपनी पारंपरिक निर्भरता को कम करने में मदद करने के लिए काम करेगा”।
ऐसे में निर्मला सीतारमण ने अपने बयान से दो बातें स्पष्ट की है – भारत रूस संबंध किसी गीदड़ भभकी के दबाव में नहीं टूटने वाली, और अमेरिका के प्रपंचों का अब भारत पर तनिक भी असर नहीं पड़ने वाला।
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