पत्थरबाजों पर मामा का बुलडोजर चलते ही विधवा विलाप करने पर मजबूर हुए वामपंथी पत्रकार

वामपंथियों की तो अभी और जलने वाली है!

बुलडोजेर

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पत्थरबाजों, कट्टरपंथियों और घर के भेदियों पर जब भी एक्शन लिए गए हैं एक वर्ग हमेशा ऐसा रहा है जिसने विधवा विलाप के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। बीते सोमवार को खरगोन शहर में रामनवमी जुलूस के दौरान हुई हिंसा के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा एक्शन मोड़ पर आ गए। इसके बाद तथाकथित लिबरलों और वामपंथी पत्रकारों ने रुदन शुरू कर दिया कि कैसे मुसलमानों के घर की कुर्की कर दी और क्यों उनके घर जमींदोज़ कर दिए।

यह सब एक ही एजेंडे की आड़ में किया जा रहा है कि मुसलमानों पर सरकार का ये अत्याचार असहनीय है बल्कि सत्यता तो यह है कि यह निजी संपत्ति मात्र मुसलमानों की ही नहीं अपितु उन सभी दोषी हिन्दुओं की भी हो रही है जिनके ऊपर आरोप तय हो चुके थे। बावजूद इसके कुछ चंद पत्तलकारों ने झूठे एजेंडे को परोसना शुरू कर दिया।

यह राम नवमी समारोह भारत में हर हिंदू के लिए अच्छा नहीं रहा। मध्य प्रदेश का खरगोन शहर में भी पथराव से अलग नहीं था। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, विभिन्न स्थानों पर रामनवमी के जुलूसों पर पत्थरों से बमबारी की गई। कथित तौर पर, 10 घरों में आग लगा दी गई और दर्जनों लोग घायल हो गए, जिनमें खरगाँव के एसपी सिद्धार्थ चौधरी भी शामिल हैं। बाद में, राज्य पुलिस ने शहर में कर्फ्यू लगा दिया।

अगले ही दिन, शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने शहर में विवादास्पद भूमि पर कब्जा करने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया। खरगोन प्रशासन ने जमीन पर बने अवैध ढांचों और निर्माणों को गिराने की तैयारी कर ली है। सरकार ने शहर के 5 मोहल्लों में बुलडोजर चलाकर 16 घरों और 29 दुकानों को ध्वस्त कर दिया। इन 45 में से 22 संरचनाएं उस क्षेत्र के बहुत करीब स्थित थीं जहां भारी पथराव की सूचना मिली थी।

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अब जब इतना सब हो गया तो रुदन की बारी आई जिसमें एजेंडे मूल तत्व था मुसलामनों के साथ दोयम दर्ज़े का व्यव्हार।

एक पत्रकार सबा नकवी ने दावा किया कि यह मुसलमानों पर हमला था न कि सामान्य सरकारी कार्रवाई।

 

एक स्वघोषित स्वतंत्र पत्रकार साक्षी जोशी, जिन्होंने अतीत में बीबीसी जैसे संगठनों के साथ काम किया है, ने पूछा कि क्या न्यायपालिका ने अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं।

 

एक अन्य उदारवादी पत्रकार बरखा दत्त ने दावा किया कि बुलडोजर की कार्रवाई विचित्र थी। इस तरह भारतीय न्यायालयों को भी ध्वस्त किया जा सकता है।

 

द वायर की पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने कानूनी कार्रवाई को ‘क़ानून और व्यवस्था का पतन’ बताया। जब उन्होंने उन कानूनों के बारे में सवाल किया जिनके तहत विध्वंस को अधिकृत किया गया है, तो वह भारतीय राजनीति से अनभिज्ञ लग रही थीं।

 

जाहिर है कि एजेंडे को चलाने की होड़ और पैसा कमाने की भूख में उदारवादियों ने ट्वीट करने से पहले एक बुनियादी तथ्य की जांच तक नहीं की। अगर खरगोन प्रशासन ने केवल मुस्लिम स्वामित्व वाली संपत्ति को ध्वस्त कर दिया होता, तो अब तक ये शांतिदूत चुपचाप रहकर बुलडोज़र की अठखेलियां नहीं देख रहे होते। तालाब चौक इलाके में सरकार ने 12 दुकानों को गिरा दिया था, उनमें से 8 मुसलमानों के स्वामित्व में थे और 4 अन्य हिंदुओं के थे।

खरगोन के अनुविभागीय दंडाधिकारी मिलिंद धोडके ने बताया, ‘अब तक जो भी दुकानें और मकान गिराए गए हैं, वे अतिक्रमण की गई जमीन पर बने अवैध ढांचे हैं। इन इलाकों से पथराव की खबरें आईं जिसके बाद कार्रवाई की गई। यहां तक ​​कि किसी भी प्रकार की आधिकारिक पुष्टि की तलाश किए बिना उदारवादियों ने अपने हेराल्ड में षड्यंत्र के सिद्धांतों को चित्रित करना जारी रखा। यह उच्च कोटि का बेहूदा मज़ाक है।

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