क्रिकेट हमेशा से गेंद और बल्ले के बीच का प्रतिस्पर्धी का खेल रहा है। समय के साथ यह खेल बड़े पैमाने पर विकसित हुआ और नियम परिवर्तन अधिक सामान्य हो गए हैं। 1970 के दशक से 1990 के उत्तरार्ध तक का समय तेज गेंदबाजों के लिए स्वर्ण युग था जहां बल्लेबाज हमेशा गेंदबाजों के डर और दुविधा में लिपटे रहते थे। 1970 के दशक में डेनिस लिली, माइकल होल्डिंग, जेफ थॉमसन, जोएल गार्नर और मैल्कम मार्शल जैसे बल्लेबाजों ने अपनी गति, उछाल और जिप से बल्लेबाजों को आतंकित किया। उस दौर में एक बल्लेबाज होने के नाते अगर आपको इन गेंदबाजों के खिलाफ रन बनाना हुआ, तो आपके पास निश्चित रूप से बल्लेबाज़ के पास कुछ असली दक्षता और प्रतिभा का होना अनिवार्य था।
इस दौरान क्रिकेट का खेल बराबरी का रहा। उत्साह में कोई कमी नहीं थी। रन धीमी गति से आते थे पर जो आते थे वो वास्तविक “क्रिकेट बुक” शॉट होते थे जिसका श्रेय अक्सर तेज गेंदबाजों और बल्लेबाजों दोनों को जाता था जो उस समय अपने खेल में शीर्ष पर थे। क्षेत्ररक्षण प्रतिबंधया गेंदबाजों के सीमित ओवर जैसी कोई चीज नहीं थी।
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दशक में कुछ अनुकरणीय तेज गेंदबाज
एकदिवसीय मैच में 250 से अधिक के स्कोर सम्माननीय माना जाता था। होल्डिंग, लिली, गार्नर के कैलिबर के गेंदबाजों को हमेशा केवल असाधारण बल्लेबाजी के बल पर ही खेला जा सकता था। लिली, होल्डिंग, थॉम्पसन, गार्नर, मार्शल जैसे डरावनी तेज गेंदबाजों की एक नई नस्ल ने 1980 के दशक में तेज़ गेंदबाजी के सौंदर्य को और बढ़ाया। कर्टनी वॉल्श, एलन डोनाल्ड और कर्टली एम्ब्रोस की भयावह गति और उछाल ने 80 के दशक के अंत में प्रवेश किया और बल्लेबाजों को डराना जारी रखा।
यह वह समय भी था जब अब तक के सबसे महान तेज गेंदबाजों में से एक वसीम अकरम ने बल्लेबाजों को अपनी स्विंग गेंदबाजी से नचाना शुरू कर दिया था। 1990 के दशक में कुछ अनुकरणीय तेज गेंदबाजी का बोलबाला था, जिसमें एम्ब्रोस, वॉल्श, अकरम सबसे आगे थे। आज के युग में भी महान तेज गेंदबाजों की कोई कमी नहीं रही है, लेकिन वे अपने पूर्ववर्तियों की तरह प्रभावी और डरावने नहीं रहे हैं। साथ ही, क्रिकेट के नियमों में बदलाव से भी तेज गेंदबाजी की परंपरा खत्म हुई है। फील्ड प्रतिबंध (पावरप्ले), बाउंसरों की सीमा, बड़े बल्ले, बल्लेबाजी के अनुकूल पिचें, छोटी बाउंड्री, बल्लेबाज के पक्ष में जाने वाली अम्पायरिंग कॉल के परिणामस्वरूप तेज़ गेंदबाजों को नुकसान उठाना पड़ा है।
ग्लेन मैक्ग्राथ, ब्रेट ली और डेल स्टेन जैसे खिलाड़ी अपने चरम पर घातक रहे हैं, लेकिन उन्होंने 70 और 80 के दशक के तेज गेंदबाजों की तरह डर पैदा नहीं किया। जेम्स एंडरसन लगातार बेहतर होते जा रहे हैं और टेस्ट में सक्रिय गेंदबाजों में अग्रणी विकेट लेने वाले एक उत्कृष्ट स्विंग गेंदबाज हैं, लेकिन वह भी 70 के दशक की श्रेणी में नहीं हैं। यहां तक कि शोएब अख्तर की प्रभावशीलता भी उनके बाद के वर्षों में कम हो गई। ऐसा नहीं है कि तेज गेंदबाज अब घातक नहीं रहे, लेकिन अब के तेज गेंदबाज बल्लेबाजों के ऊपर वह आभा मंडल नहीं रखता जैसा पुराने दिनों में होता था।
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बल्लेबाजों का बढ़ता दबदबा
क्रिकेट छोटा होता गया। इसके व्यवसायीकरण से खिलाड़ियों की व्यस्तता बढ़ती गयी। दर्शकों के मनोरंजन के लिए क्रिकेट पिच नहीं बल्कि गेंदबाजों के क़बरगाह बनने लगे। भारत के परिप्रेक्ष्य में ऐसे पिच आम हो गयी। नियम में बदलाव ने बल्लेबाजों को अपनी मर्जी से रन बनाने के लिए प्रेरित किया है। दोहरा शतक जो केवल टेस्ट का पर्याय था, अब एकदिवसीय मैचों में एक उपलब्धि है। 300 सौ से अधिक का स्कोर बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है और यहां तक कि 400 से अधिक के स्कोर का भी पीछा किया गया है। गेंदबाज चोटिल होते गए और गति भी कम होती गयी। 150 की रफ्तार से गेंद डालने के बजाय बल्लेबाजों से बचाने के लिए वो नकल बॉल, धीमी गति की गेंद, ऑफ कटर डालने लगे।
मौजूदा दौर में बल्लेबाजों का खेल पर दबदबा है और नियम भी उनके पक्ष में काम करते हैं। उच्च स्कोरिंग खेल एक आदर्श बन गए हैं और गेंदबाजों को भारी नुकसान हुआ है। ऐसा नहीं है कि गेंदबाज अप्रभावी हो गए हैं, लेकिन बस इतना ही कम खतरनाक हो गया है।
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आईपीएल में ऐसे दृश्य आम हो गए हैं जब डेथ ओवर में बल्लेबाजों से बचाने के लिए गेंदबाज विकेट पर गेंदबाजी करने के बजाय वाइड बॉल फेंकते दिख जाएंगे। इसी कारण मुनाफ, ज़हीर, नेहरा और अगरकर जैसे गेंदबाजों का कैरियर खत्म हो गया। पर, फिर भी उमरान मालिक, आवेश खान, मावि और नगरकोटि जैसे युवा तेज़ गेंदबाज उम्मीद जगाते हैं बस जरूरत है तो पिच और नियम को कुछ परिवर्तित करने की।
जैसे-जैसे खेल का विकास जारी है, नए नियम गेंदबाजों के लिए अपना अधिकार थोपना कठिन बना रहे हैं और बल्लेबाजों के लिए नियमों का अपने पक्ष में उपयोग करना और लड़ाई पर हावी होना आसान बना रहे हैं।