4 साल की बच्ची के बलात्कारी के प्रति SC के ‘मानवीय’ रूख का पड़ने वाला है नकारात्मक प्रभाव

बलात्कारी के प्रति सौम्य कैसे हो सकता है सुप्रीम कोर्ट?

Supreme Court

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जिस दिन किताबी ज्ञान, कानून से बढ़कर हो गया उस दिन कानून की किताबें नहीं दर्शनशास्त्र की चार लाइनें ही कानून पढ़ाने के लिए उपयोग की जाएंगी। ऐसा ही किताबी ज्ञान हाल ही में एक फैसले पर आया, जहां 4 वर्षीय बच्ची के रेप आरोपी की सजा को मात्र इसलिए बदल दिया गया क्योंकि एक कथन है “जैसे हर संत का एक अतीत होता है वैसे ही हर पापी का एक भविष्य होता है।” चूंकि सर्वोच्च न्यायलय की एक बेंच ने ऐसा किया है तो बिल्कुल सही ही किया होगा। लेकिन सवाल यह है कि 4 साल की बच्ची के बलात्कारी के प्रति सुप्रीम कोर्ट के ऐसे ‘मानवीय’ रुख से समाज में कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है।

निस्संदेह, न्यायलय और उसमें भी सर्वोच्च न्यायलय देश के हर नागरिक के लिए पूजनीय स्थल है, क्योंकि वो सबके हितों की रक्षा तब करता है जब सारा जग उसके विरुद्ध खड़ा होता है। कई बार जल्दीबाज़ी में लिए हुए निर्णयों को तत्काल सुधारना मुश्किल होता है, इसलिए कोर्ट की कड़ी में निचले से उच्चतम सभी कोर्टों को जिस तरह भागीकृत किया गया है वो फैसलों में हुई त्रुटि का सुधार करने का काम करते हैं। इसी क्रम में इस बार एक ऐसा केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जिसका निर्णय मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ले लिया था, लेकिन SC ने उसके फैसले को फांसी से 20 साल की सजा में परिवर्तित कर दिया। इसके बाद से न्यायलय के निर्णय, उसकी विश्वसनीयता और कटिबद्धता पर प्रश्न उठने लगे हैं कि कैसे एक बच्ची के जीवन के आगे उस आरोपी के भविष्य की चिंता की गई, जिसने 4 साल की एक बच्ची को अपनी गन्दी करतूत का निशाना बनाया था। मामला मध्यप्रदेश के सेओनी जिले के एक गांव का है।

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जानें क्या है पूरा मामला?

यह सर्वविदित है कि, हमारे देश का कानून इतना लचीला है कि आरोपित के गुनाह सिद्ध और उसकी पुष्टि होने के बाद भी आरोपी बचने के लिए अनन्य दांव-पेंच लगा लेता है और अन्तोत्गत्वा उसे  मिलता है कानूनी संरक्षण और पीड़ित को मिलता है न्याय नहीं अन्याय! दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रेप और हत्या के दोषी मो. फिरोज की प्रति दरियादिली दिखाते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा 2014 में जबलपुर में पारित निर्णय की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि ‘हर पापी का एक भविष्य होता है।’

बुधवार को न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने चार साल की बच्ची से दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने वाले शख्स को सुनाए गए मृत्यु दंड की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है। हत्या के मामले में दोषी को सुनाए गए मृत्युदंड को उम्र कैद में और दुष्कर्म के मामले में 20 साल के कारावास में बदल दिया गया।

पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अपराधी को सुनाई गई अधिकतम सजा उसके विकृत मानस को दुरुस्त करने के लिए हमेशा निर्णायक कारक नहीं हो सकती। 19 अप्रैल को दिए गए इस फैसले में पीठ ने यह भी कहा कि जेल से रिहा होने पर उसे सामाजिक रूप से उपयोगी व्यक्ति बनने के लिए अवसर दिया जाना चाहिए। सजा में बदलाव का यह फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक ऑस्कर वाइल्ड की एक पंक्ति का भी उल्लेख किया कि ‘एक संत और एक पापी के बीच केवल यही अंतर होता है कि हर संत का एक इतिहास होता है और हर पापी का एक भविष्य।’

कानून क्या पूरा समाज ही सुधार का पक्षधर है पर यह मामले की गंभीरता पर निर्भर करता है कि किस मामले में सुधार की गुंजाईश होती है और किसमें नहीं। अब जब रेप के आरोपी को बस इसलिए मौत की सजा बदलकर 20 साल का कारावास दे दिया जाए क्योंकि ऑस्कर वाइल्ड कुछ लिखकर गए हैं, तो ऐसा करते हैं कि कानून और धाराएं छोड़ इन्हीं के Novel और उपन्यास पढ़ लेते हैं! जिस व्यक्ति ने 4 वर्ष की बच्ची के प्रति कोई नरमी या इंसानियत नहीं दिखाई और जिसके कारण पहले तो उस 4 वर्षीय बच्ची को इतनी पीड़ा सहनी पड़ी और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई। लेकिन जब सजा की बात आई तो न ही न्यायलय को रेप की धाराएं याद आई और न ही हत्या की, इस मामले में उन्हें याद आया सिर्फ और सिर्फ मानवीय पक्ष।

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SC के इस फैसले का होगा नकारात्मक प्रभाव

बता दें, उक्त मामला वर्ष 2013 में सामने आया था जब दो आरोपी मोहम्मद फिरोज खान और राकेश चौधरी एक दिन के लिए उक्त अज्ञात व्यक्ति को आवास उपलब्ध कराने के लिए एक घर गए थे। पीड़िता की मां के इनकार करने पर राकेश चौधरी वहां से चला गया जबकि फिरोज खान ने मौके का फायदा उठाकर घर के आंगन में खेल रही 4 साल की बच्ची को अगवा कर लिया। पीड़ित परिवार ने स्थानीय थाने में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी। अगले दिन, लड़की एमपी के घनसौर में खेत में बेहोश पड़ी मिली। पीड़िता की अप्रैल 2013 में इलाज के दौरान नागपुर में मौत हो गई थी, जबकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बच्ची के साथ बलात्कार की घटना की पुष्टि हुई थी। दोनों आरोपियों को बिहार के भागलपुर के हुसैनाबाद से गिरफ्तार किया गया था और उन पर ट्रायल कोर्ट में मुकदमा चलाया गया था। राकेश चौधरी को पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से उन्हें बरी कर दिया गया, जबकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मो. फिरोज को मौत की सजा सुनाई थी।

बड़ी विडंबना यह है कि देश में निर्भया जैसे भयावह मंजर के बाद भी आज तक रेप से जुड़े कानूनों पर फांसी की सजा नहीं दी गई, जबकि कितनी बार इसका आश्वासन दिया गया। इस बार भी सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने सारे दायरे इतने चौड़े कर दिए कि ‘आइए, मोहम्मद फ़िरोज़ मियां, जी लीजिये अपनी रही बची ज़िन्दगी अब आराम से!’ अंततः, 4 साल की बच्ची के बलात्कारी के प्रति सुप्रीम कोर्ट के ‘मानवीय’ रुख का नकारात्मक प्रभाव सब निचली अदालतों पर भी पड़ने वाला है, क्योंकि यह सभी सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का ही तो अनुसरण करती हैं।

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