सोनिया गांधी नामक एक राजनैतिक अवशेष का करुण क्रंदन तो सुनिए

कांग्रेस की लुटिया डुबो कर अब ज्ञान देने में लगी हैं सोनिया!

सोनिया गांधी

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चुनाव जीत नहीं पा रहे तो देश खतरे में है, असहिष्णुता बढ़ रही है देश खतरे में है, परिवार के बाहर अध्यक्ष चुन नहीं पा रहे देश खतरे में है, राज्यों में बनी बनाई सरकार टूट जाती हैं पर देश खतरे में है। एक बार भी यह नहीं सोच पाए कि देश नहीं गांधियों के राज में कांग्रेस खतरे में है। मूलतः इटली की पैदावार सोनिया गाँधी नामक एक राजनैतिक अवशेष ने एक बार फिर करुण क्रंदन करते हुए कह दिया है कि वर्तमान मोदी सरकार देश को नफरत की ओर धकेल रही है जो घातक है। अब उन्हें कौन बताए कि जो कांग्रेस के परिवारवादी पुरखों ने किया हुआ है उसी का फल आज भी देश काट रहा है, यह कोई अपवाद नहीं कटुसत्य है। ऐसे में सरकार को गरियाने से बेहतर है अपने लाड़साहब को सच्चाई से अवगत कराएं कि कैसे 7 दशकों की कांग्रेस सरकार ने देश को बदहाल और परिवार को मालामाल किया। बेचारे राहुल बाबा तो इस सत्य से परिचित ही नहीं हैं कि पिछले रिकॉर्ड कितने भयावह हैं शायद तभी एक अबोध बालक की तरह हर बार भाषण देने तो आ जाते हैं पर गुस्से में थोड़ा इधर-उधर निकल जाते हैं।

दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित अपने लेख के माध्यम से उन्होंने आरोप लगाया है कि नफरत, कट्टरता और असहिष्णुता देश को अपनी चपेट में ले रही है और अगर इन्हें रोका नहीं गया तो यह समाज को नुकसान पहुंचाएगा। लेख में, सोनिया ने लोगों से इसे आगे नहीं बढ़ने देने का आह्वान किया और उनसे “घृणा की इस प्रचंड आग और सूनामी” को रोकने का आग्रह किया, जो “पिछली पीढ़ियों द्वारा इतनी मेहनत से सींची गई वरना अब ये सब घटनाक्रम उन सभी चीजों को नष्ट कर देंगे।”

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सोनिया गांधी के प्रकाशित अपने लेख

गाँधी ने आगे लिखा कि, “घृणा, कट्टरता, असहिष्णुता और असत्य का एक सर्वनाश आज हमारे देश को घेर रहा है। अगर हम इसे अभी नहीं रोकते हैं, यह हमारे समाज को नुकसान पहुंचाएगा। हम एक व्यक्ति के रूप में खड़े नहीं हो सकते हैं और न ही यह देख सकते हैं कि फर्जी राष्ट्रवाद की वेदी पर शांति और बहुलवाद की कैसे बलि दी जा रही है।” गाँधी ने लिखा, “आइए हम इस प्रचंड आग पर काबू पाएं, नफरत की यह सुनामी जो पिछली पीढ़ियों द्वारा इतनी मेहनत से बनाई गई है, को धराशायी कर दिया गया है।” उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ का हवाला देते हुए कहा कि इसके छंद अब “सभी अधिक प्रासंगिक और उच्च प्रतिध्वनि” हैं।

इतने भारी भरकम शब्दों को लिखकर ही दिया गया होगा वरना इतनी तटस्थ शब्दावली मैडम सोनिया के बस की बात नहीं। खैर, इन बातों में जितना भाजपा सरकार और मोदी विरोध है उससे कई अधिक पीड़ा यह है कि हम क्यों नहीं हैं शासन में? ऐसा क्या कर्म कर लिए जो दो बार से प्रचंड सूखे और सरकार से वनवास भोग रही है कांग्रेस पार्टी। आत्म-मंथन और विकट चिंतन से कोसों दूर कांग्रेस पार्टी और उसके आलाकमान को भाजपा और मोदी सरकार में लाखों क्या असंख्य कमियां मिल जाती हैं पर जब बात खुद पर आती है तो गाँधी जी के उस बंदर की तरह आँख मूँद लेते हैं जो बुरा न देखो का प्रतीक होता है।

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लेख से सिद्ध होता है

अब इन्हें कौन बताये कि गाँधी जी के उस बंदर जिसने दोनों हाथों से आंखें बंद कर रखी हैं का आशय यह था कि जो बुरा नहीं देखता। इसका अर्थ यह नहीं था कि अपनी कमियों को ही नज़रअंदाज़ कर देना। सोनिया गांधी के इस लेख से यह तो सिद्ध हो गया कि, उन्हें न ही अपने पार्टी के वर्तमान हालातों से कुछ फर्क पड़ता और न ही उन्हें उससे कोई सीख लेनी है। जन्मों में एक बार ऐसा लेख प्रकशित करवाकर सोनिया गांधी अपने विपक्षी होने के काम को पूर्ण कर लेती हैं शेष भंटाधार करने का ठेका उनके सुपुत्र कलयुगी युवा राहुल गांधी लेकर बैठे हैं जो वर्ष 2014 से इस काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। परिणामस्वरूप आज वो भाजपा के स्टार प्रचारक यूँही नहीं कहलाते हैं, बड़े परिश्रम का फल है ये और कुछ नहीं।

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