जब समय ख़राब चल रहा हो तो कुछ अच्छा होने की कितनी भी उम्मीद कर ली जाए, कर्मकाण्ड हो ही जाता है। ऐसा ही हाल चुनाव में दूसरी बार हारने के बाद समाजवादी पार्टी और विशेषकर उसके मुखिया अखिलेश यादव का हो गया है। पहले से ही चाचा शिवपाल यादव को दरकिनार करने के बाद चाचा की नाराज़गी झेल रहे अखिलेश को अब उनके मुस्लिम और वयोवृद्ध नेता भी उन्हें षड्यंत्रकारी बता रहे हैं। विधानसभा चुनाव में हार का असर सपा खेमे में साफ़ दिख रहा है। पार्टी के दो अहम नेता खुद पार्टी के कट्टर आलोचक गए हैं। चुनाव में भूचाल वाले नतीजे आने के बाद हमेशा गठबंधन सहयोगियों को कभी समाजवादी पार्टी ने तो कभी अन्य दलों ने धोखा ही दिया है। वर्ष 2017 में, कांग्रेस और सपा ने नाता तोड़ लिया फिर 2019 के आम चुनाव में, बुआ मायावती भी सपा नेताओं के रवैये और वोट ट्रांसफर में विफलता के कारण साइडलाइन हो गई थी और साथ छोड़ दिया। अब उनकी पार्टी के ही वरिष्ठ नेता एक-एक कर अखिलेश यादव के जख्मों पर नमक रगड़ने का काम किया है।
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अखिलेश की लंका लगाएंगे उनके अपने करीबी
दरअसल, समाजवादी पार्टी के नेता और संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने अपनी ही पार्टी सपा के खिलाफ जोरदार हमला बोला है। एमएलसी चुनाव के लिए मतदान के दौरान सांसद मीडियाकर्मियों से बातचीत कर रहे थे। एक सवाल के बदले में उन्होंने अपनी पार्टी सुप्रीमो पर ही तीखा प्रहार कर दिया। उन्होंने कहा, “अखिलेश यादव द्वारा लगाये गये प्रशासन द्वारा प्रधानों को धमकाने का आरोप सही है, तो यह गलत हो रहा है लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो उन्हें इस तरह का दुष्प्रचार नहीं करना चाहिए। उसके बाद पार्टी पर भी हमला करते हुए बर्क ने कहा कि भाजपा छोड़ो, सपा पार्टी खुद मुस्लिम मुद्दों और उनके अधिकारों की परवाह नहीं कर रही है।” ध्यान देने वाली बात है कि इससे पहले 2017 में विवादास्पद सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के पोते को समाजवादी पार्टी ने टिकट नहीं दिया था, जिसके बाद वो ऑल इंडिया मजलिस ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) में शामिल हो गए थे।
इन्हीं के पूरक हैं अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव। ये दोनों चाचा-भतीजे एक दूसरे को जरा भी पसंद नहीं करते हैं और इनकी प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर है। वर्ष 2017 में, चाचा शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी में ठगा हुआ महसूस किया और समाजवादी पार्टी छोड़ दी तथा अपना राजनीतिक मोर्चा बना लिया जो 2019 के आम चुनाव में सपा की हार का एक बड़ा कारण साबित हुआ। अब यह अखिलेश की कुंठा कहें या षड्यंत्र कि इस बार विधानसभा चुनावों में बड़ी मान-मनव्वल के बाद शिवपाल यादव सपा के साथ तो आ गए पर अखिलेश यादव ने उनसे अपना पुराना हिसाब बराबर कर लिया। अखिलेश ने न केवल शिवपाल को सपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया, बल्कि शिवपाल की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) को एक भी सीट नहीं दी। यह अखिलेश के बदले की भावना को ही प्रदर्शित कर रहा था कि शिवपाल ने कुल 100 सीटें मांगी थी और उन्हें 10 भी नहीं मिली थी।
सपा अब रसातल की ओर बढ़ चली है
ऐसे में अपनी अंतरात्मा को शांत करने के बाद अखिलेश यादव हाल ही में संपन्न चुनाव में अपने चाचा के साथ गठबंधन करने में कामयाब तो रहे, लेकिन राजनीतिक संबंध इस बार भी लंबे समय तक नहीं चल सके। क्योंकि चुनावी नतीजे के बाद अखिलेश यादव ने एक बार भी शिवपाल के साथ बैठकर न तो चर्चा की और न ही विधायक दल की बैठक में आमंत्रित किया, जो शिवपाल को खटक गया और अब ऐसी खबरे हैं कि शीघ्र ही शिवपाल यादव कोई बड़ा निर्णय भी ले सकते हैं। ऐसे में यह तो तय है कि यादवों के गुट को अब शिवपाल यादव तोड़ेंगे और रही बची कसर मुस्लिम वोट डाइवर्ट करने का काम सांसद शफीकुर्रहमान बर्क पूरा कर देंगे, जिस हिसाब से उनके हालिया सपा विरोधी बयान हैं।
गौरतलब है कि कांग्रेस के भीतर अंदरूनी कलह, तुष्टीकरण की राजनीति, मुस्लिम पार्टी बनने की धारणा और जमीनी मुद्दों से अलग होने के कारण उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है और पार्टी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद पाने में भी दो बार विफल रही है। समाजवादी पार्टी द्वारा वही बातें दोहराई जा रही हैं और पार्टी सुप्रीमो इस दुर्दशा पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिससे पार्टी अब रसातल की ओर बढ़ चली है। वहीं, यूपी में उनके हाथों से मुस्लिम-यादव वोटबैंक का फिसलना इस बात को दर्शाता है कि अखिलेश यादव अपने पिता की विरासत को पूरी तरह से नहीं संभाल सकते हैं!
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