भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब एक और श्रीलंका बनने की ओर अग्रसर है

पंजाब को डुबा के ही मानेंगे केजरीवाल और मान!

केजरीवाल और मान

सौजन्य गूगल

जब भी भारतीय राजनीति के हानिकारक और विनाशकारी बिंदुओं को लिखा जाएगा, उसमें मुफ्तखोरी और फ्री-फ्री और फ्री बांटने वाली योजनाओं और उसके प्रणेताओं को अवश्य उल्लेखित किया जाएगा। जिस तरह ऋण में डूबे श्रीलंका की हालत आज दोयमदर्ज़े की हो गई है उससे मुफ्तखोरी के बहकावे में आकर सरकार बनाने वाली जनता को सीख लेनी चाहिए वरना जिस तरह आज श्रीलंका के हालात तंग हैं शीघ्र ही वही हालात दिल्ली और पंजाब जैसे उन राज्यों के भी हो जाएंगे जहां आम आदमी पार्टी मुफ्तखोरी का शिगूफा लेकर सरकार बना ले गई और अंत में अब याचना करते हुए केंद्र सरकार के पास आ गई कि मालिक आप दो न, आप दो न।

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इससे बड़ा तिरियाचरित्र क्या होगा?

जी हां, पंजाब चुनाव से पूर्व गुणा-गणित सिखाने वाले यही अरविंद केजरीवाल थे जो कह रहे थे कि हमारे पास अभी इतना बजट है जिसका उपयोग पंजाब के लिए किया जाएगा यदि सरकार आती है तो, वहीं बाद में सरकार बनने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान पीएम मोदी से करने लगे याचना। मान ने राज्य सरकार के लिए पीएम मोदी से दो साल के लिए एक लाख करोड़ (हर साल 50 हजार करोड़) रुपये की मांग की और कहा था कि कम से कम पंजाब को केंद्र से लगातार दो साल मदद मिल जाए, इसके बाद पंजाब खुद अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा। मतलब चुनाव से पहले हवा-हवाई ढोल बजाया जा रहा था जो तब फट गया जब भगवंत मान मुख्यमंत्री बनने के बाद पीएम मोदी से पहली मुलाकात में फंड के लिए घिघियाने लगे। एक तरफ तो आप को केंद्र से पैसा मांगना है, दूसरी ओर उस राजस्व को मुफ़्तख़ोरी वाले वातावरण के तहत अपने अनुकूल उपयोग में भी लाना है इससे बड़ा तिरियाचरित्र किसका ही होगा।

जनता के लिए फंड केंद्र सरकार हर राज्य सरकार को देती है, इसमें अपनी पार्टी और विपरीत पार्टी वाला कांसेप्ट नहीं चलता लेकिन केंद्र सरकार को भी पागल कुत्ते ने नहीं काटा है कि एक पार्टी विशेष के चुनावी वादे और ढकोसले पूरे करने के लिए वो बजट को आंख बंद करके ऐसे ही आवंटित कर दे ताकि मुफ्तखोरी वाले एजेंडे की पूर्ति हो जाए और बाद में रवैया ऐसा हो कि जो विपदा आए उससे राज्य सरकार का क्या सरोकार, केंद्र खुद भुगतेगा। फिलहाल तो ऐसा होने से रहा क्योंकि श्रीलंका ने एक बड़ा उदाहरण दे दिया है कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा देकर न ही कोई देश चला है और न ही चल पाएगा।

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जिन राज्यों पर ऋण है उनमें पंजाब सबसे आगे है

बताते चलें, भारत में जिन राज्यों पर ऋण है उनमें पंजाब सबसे आगे है, जिसका ऋण उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 47 प्रतिशत से अधिक है। जो पिछले वित्त वर्ष में 1.85 प्रतिशत अनुबंधित था। 2.83 लाख करोड़ रुपए बकाया देनदारी के साथ इसका वार्षिक ब्याज का बोझ 20 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक है। ऐसे में जैसे पूर्वनिर्धारित ढकोसले के अनुसार यदि आम आदमी पार्टी पंजाब में 300 यूनिट बिजली फ्री देती है तो उससे राज्य के खजाने पर करीब 5000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जिससे राज्य में आर्थिक व्यवस्था के चरमराने की संभावना पैदा हो सकती है। आलिशान गाड़ियां और बेवजह के सरकारी खर्चे लगातार राज्य का बोझ बढ़ाते ही चले गए।

दरअसल, पंजाब के हर घर को 1 जुलाई से मासिक 300 यूनिट मुफ्त बिजली मिलेगी, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शनिवार को घोषणा की कि उनकी सरकार ने कार्यालय में एक महीना पूरा कर लिया है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के परिवारों को छोड़कर यदि दो महीने में बिजली की खपत 600 यूनिट से अधिक हो जाती है, तो उपभोक्ता को पूरे बिजली के उपयोग के लिए भुगतान करना होगा। अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों और स्वतंत्रता सेनानियों को वर्तमान में हर महीने 200 यूनिट मुफ्त मिल रही है, अब उन्हें हर महीने 300 यूनिट बिजली मिलेगी। लेकिन अगर उनकी बिजली की खपत दो महीने में 600 यूनिट से अधिक हो जाती है, तो उनसे सिर्फ 600 यूनिट से अधिक के लिए शुल्क लिया जाएगा।”

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अर्थशास्त्री क्या मानते हैं?

अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि कुछ राज्य सरकारों द्वारा मुफ्त और सब्सिडी देने की नीतियां लंबे समय में विनाश का कारण बन सकती हैं। भारत में कई राज्य श्रीलंका जैसी ही गलती कर रहे हैं जो अर्थव्यवस्था की कीमत पर सत्ताधारी दलों के वोट बैंक को मजबूत कर सकती है। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य अर्थशास्त्री के पंत के अनुसार, “मुफ्त सुविधाएं सरकार के हाथ में उपकरण हैं। अगर सरकारें बहुत अधिक मुफ्त देती हैं, तो वे सीधे राज्यों के राजकोषीय घाटे को प्रतिबिंबित करेंगे। यह अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।”

ऐसे में यदि एक ओर कटोरा लेकर मुंह फाड़कर सीधा केंद्र सरकार से एक लाख करोड़ मांग लेने के साथ ही उसका उपयोग राज्य की आधारभूत संरचना को सुधारने में न लगाते हुए फ्री पुरुष केजरीवाल की भांति उस राजस्व की बर्बादी की जाती है तो इससे बड़ा धोखा और छलावा क्या ही होगा जो अन्तोत्गत्वा राज्य को भिखारी बनाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करेगा। एक समय पर पंजाब जितना कुशल राज्य और कोई नहीं था पर सत्ता लोभी दलों ने राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए सारी सीमाएं लांघ दीं। ऐसे में ऋण में डूबा पंजाब कैसे श्रीलंका नहीं बनेगा?

ऐसे नेतृत्व जहां छल और लोभ की राजनीति के अतिरिक्त कुछ नहीं है उससे कैसे यह उम्मीद कर ली जाए कि वो राज्य की बेहतरी के लिए काम कर रहा है, जबकि राज्य सरकार के अब तक के निर्णयों में से एक हर घर को 1 जुलाई से मासिक 300 यूनिट मुफ्त बिजली मिलेगी जैसे निर्णय पंजाब को गर्त में ले जाने के अलावा और कुछ नहीं हैं।

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