भारत पर दबाव डालने की मूल प्रवृत्ति को अमेरिका ने कभी भी त्यागना उचित नहीं समझा क्योंकि उसकी हीन दृष्टि सदैव भारत को दबाने की सोच के साथ ही जीती आई है। वहीं वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तो सारी ताकत लगा यह तय करना चाहा था कि भारत किसी भी तरह उसके चंगुल में फंस जाए। यही कारण है कि हालिया रूस-यूक्रेन विवाद में सबसे बड़ा मध्यस्थ बनने की जुगत में अमेरिका ने कई बार भारत पर दबाव बनाया पर भारत तो भारत ठहरा और वो भी पीएम मोदी के नेतृत्व वाला, ऐसे में झुकने का तो कोई सवाल ही नहीं था।
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पूरी तरह सक्षम है भारत
भारत ने रूस-यूक्रेन विवाद में अपने तटस्थ रुख से ये दिखा दिया कि भारत आज एक नेतृत्वकर्ता के रूप में निर्णय लेने के लिए पूरी तरह सक्षम है और उसे अपने देश के आम जनों के लिए जो हितकर लगेगा उसी दिशा में वो कदम बढ़ाएगा। दरअसल, इसी बीच हाल ही में जब भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका में शासन से मुलाकात सुनिश्चित की तो अमेरिकी प्रशासन ने अपने सभी भारी-भरकम और बड़े चेहरों को रूस-यूक्रेन विवाद के दौरान भारत पर दबाव बनाने के लिए उतार दिया लेकिन यह पासा उसी पर उल्टा पड़ गया।
बीते सोमवार को राजनाथ सिंह और एस.जयशंकर की मुलाकात के दौरान भारत को डराने के लिए अमेरिका ने अपने सभी दिग्गजों को मैदान में उतार दिया। इस 2+2 बैठक में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने भाग लिया, हालांकि बाइडेन भी इसमें शामिल हुए। 2+2 बैठक से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वर्चुअल मीटिंग की, उन्होंने अमेरिका में भारत के दो मंत्रियों से भी मुलाकात की। सत्य तो यह है कि यह स्पष्ट रूप से रूस-यूक्रेन विवाद के दौरान अमेरिका की ओर से ताकत का प्रदर्शन था जिसका जोर वो भारत में आज़माना चाह रहा था।
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अमेरिका ने भारत को डराने के लिए क्या क्या किया?
जब से रूस यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, अमेरिका भारत को डराने की कोशिश कर रहा है। वह भारत को यूएस-नाटो लाइन पर खड़ा करने के लिए हर तरह की धमकियां देता रहा है। हालांकि, भारत अडिग बना रहा और यह कहता रहा है कि वह इस संबंध में अपने हितों का पालन करेगा। इसलिए, जब भारत और अमेरिका ने दोनों पक्षों के विदेश और रक्षा मंत्रियों को शामिल करते हुए 2+2 वार्ता की, तो अमेरिका ने भारत को डराने के लिए अपने सभी दिग्गजों को मैदान में उतारा। हालांकि, भारत ने एक बात स्पष्ट कर दी कि वह अमेरिका या अतीत की किसी अन्य महाशक्ति के सामने नहीं झुकेगा क्योंकि उसका भी औचित्य उतना ही है जितना अन्य किसी विकसित देश का, आज जब कई देश पूर्ण रूप से दूसरों पर आश्रित हैं तो वहीं भारत आत्मनिर्भर वाले अपने मंत्र के साथ आगे बढ़ रहा है।
इस वार्ता की शुरुआत ही अमेरिका की झमाझम धमकियों से मोदी-बाइडेन आभासी शिखर सम्मेलन के साथ ही शुरू हुई थी। राष्ट्रपति बाइडेन ने रूसी तेल खरीदने के विरुद्ध अपने स्वर उष्मित और बुलंद किये। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा, “राष्ट्रपति… ने बताया कि हम यहां उनके यानी भारत के तेल आयात के साधनों में विविधता लाने में मदद करने के लिए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात पहले से ही महत्वपूर्ण हैं, रूस से प्राप्त होने वाले आयात से बहुत बड़ा है।”
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अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने क्या कहा?
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बाइडन की टिप्पणी को प्रतिध्वनित किया। उन्होंने कहा, “जब तेल खरीद, प्रतिबंधों, वगैरह की बात आती है, तो मैं सिर्फ यह उल्लेख करता हूं कि ऊर्जा खरीद के लिए नक्काशी है। बेशक, हम देशों को रूस से अतिरिक्त ऊर्जा आपूर्ति नहीं खरीदने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। हर देश अलग-अलग जगह स्थित हैं, उनकी अलग-अलग ज़रूरतें हैं लेकिन हम सहयोगियों और साझेदारों की ओर देख रहे हैं कि वे रूसी ऊर्जा की अपनी ख़रीद न बढ़ाएं।” और फिर, अन्य प्रकार के खतरों के बारे में ब्लिंकन ने कहा, “हम भारत में कुछ हालिया घटनाक्रमों की निगरानी कर रहे हैं, जिनमें कुछ सरकार, पुलिस और जेल अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन में वृद्धि शामिल है। और हां, CATSAA भी था।” ब्लिंकन ने कहा कि, “अमेरिका ने अभी तक संभावित CATSAA प्रतिबंधों या भारत द्वारा रूसी S-400 वायु रक्षा प्रणाली की खरीद पर छूट पर निर्णय नहीं लिया है।” वह मूल रूप से सुझाव या यूं कहें कि धमकी दे रहा था कि, “हमने आपको मंजूरी नहीं दी है, लेकिन अगर चीजें हमारे कथन के अनुसार नहीं होती हैं तो हम कर सकते हैं।”
हालांकि, इतने दबावों के बाद भी भारत अडिग रहा। सबसे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस-यूक्रेन संकट पर कोई स्पष्टीकरण दिए बिना आभासी शिखर सम्मेलन के दौरान अपनी नीति के बारे में बताया। और फिर, भारत के मंत्रियों ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि नई दिल्ली, अमेरिका के अनुरूप अपना रुख नहीं बदलेगी। जयशंकर ने कहा, “यदि आप रूस से ऊर्जा खरीद देख रहे हैं, तो मेरा सुझाव है कि आपका ध्यान यूरोप पर केंद्रित होना चाहिए। हम कुछ ऊर्जा खरीदते हैं जो हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है, लेकिन मुझे आंकड़ों को देखकर संदेह है, संभवत: भारत की प्रति माह की कुल खरीदारी, यूरोप द्वारा हर हफ्ते की जा रही तेल खरीद से काम ही है।” जेन साकी ने भी कहा, “भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका से 10 प्रतिशत आयात करता है। यह किसी भी प्रतिबंध या किसी तरह की अवहेलना या किसी भी चीज़ का उल्लंघन नहीं है।”
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एस. जयशंकर विदेशी मामलों के जानकारों को धूल चटा देते हैं
फिर क्या था, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के तेवर शुरुआत से ही अमेरिका को पता हैं, वो किस प्रकार शांत रहते हुए बड़े-बड़े विदेशी मामलों के जानकारों को धूल चटा देते हैं यह रूस-यूक्रेन विवाद के दौरान सबने देखा था और सोमवार को हुई वार्ता में बाइडन प्रशासन के अधिकारी वास्तव में डर गए। अमेरिकी प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा, “हम भारत को यह नहीं बता रहे हैं कि उसे क्या करना है।”
सत्य तो यही है कि, जिस बर्ताव के साथ अमेरिकी प्रशासन ने बात शुरू की थी उसके बिलकुल विपरीत उसकी भाषा तब हो गई जब वार्ता की समाप्ति हुई। यह पीएम मोदी के नेतृत्व और अपने निर्णयों के प्रति दृढ इच्छा एवं संकल्पशक्ति थी इसलिए अमेरिका अपनी पूरी ताकत से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करता रह गया लेकिन यह भारत है जिसने अमेरिकी दिग्गजों को डरा दिया।