बिहार में आज भारतीय जनता पार्टी बाबू वीर कुंवर सिंह का विजयोत्सव जश्न मना रही है, जिन्होंने बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोहियों का नेतृत्व किया था। केंद्र के आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाजपा स्वयंसेवकों के सबसे बड़े दल का नेतृत्व किया। शनिवार को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए बिहार के आरा शहर में सामूहिक रूप से 75,000 भारतीय झंडे लहराया गया।
आपको बतादें कि आरा में राजपूत मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा है, और वीर कुंवर सिंह को 1857 के युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ वीरता के कार्य के लिए इस क्षेत्र में एक नायक माना जाता है। पहले बिहार सरकार अंग्रेजी शासकों पर कुंवर सिंह की जीत का जश्न मनाती थी, लेकिन इस बार बीजेपी राजपूत नेता की जयंती को भव्य आयोजन बनाने जा रही है।
और पढ़ें: तेजस्वी के ‘भूमिहार कार्ड’ से स्पष्ट हुआ कि बिहार में नहीं चल पा रहा है राजद का M+Y फॉर्मूला
राजपूत गौरव का परिचय
आपको बतादें कि बाबू कुंवर सिंह का जन्म नवंबर 1777 में बिहार राज्य में शाहाबाद (अब भोजपुर) जिले के जगदीशपुर में राजा शहाबजादा सिंह और रानी पंचरतन देवी के घर हुआ था। वह उज्जैन / उज्जैनी (सभी परमार राजपूतों के प्रमुख वंश) राजपूत समुदाय से संबंधित हैं, उज्जैन को परमार राजपूतों का मुखिया माना जाता है क्योंकि वे सीधे महान राजा भोज और उज्जैन (मध्य प्रदेश) के महान राजा विक्रमादित्य के वंशज हैं। ज्ञात हो कि बाबू वीर कुंवर सिंह ने हाथ में तलवार पकड़ी थी, तब वह 80 वर्ष के थे। राजपूत गौरव का परिचय देते हुए वीर कुंवर सिंह सभी देशवासियों को युद्ध के सामने बलिदान के लिए तैयार कर रहे थे।
सन 1985 में वीर कुंवर ने जगदीशपुर में अंग्रेजों का झंडा हटाकर अपना झंडा लहराया था। बताया जाता है कि बलिया के पास शिवपुरी में वो अपनी सेना के साथ गंगा नदी पार कर थे कि अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया और गोलीबारी कर दी। जानकार बताते हैं कि, इस दौरान उनके हाथ पर गोली लग गई थी और गोली का जहर उनके शरीर में फैल रहा था। कुंवर नहीं चाहते थे कि वो जिंदा या मुर्दा हालत में अंग्रेजों के हाथ लगे जिस कारण उन्होंने तलवार से अपनी बांह काट दी थी। जैसा कि अपेक्षित था, युद्ध शुरू हुआ, और बाबू वीर कुंवर सिंह ने सटीकता और प्रभावशीलता के साथ आरा से सेना का नेतृत्व किया और कई बार ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों को हराया। 23 अप्रैल 1858 को कुंवर सिंह अंग्रेजों से लड़कर अपने महल पहुंचे थे। इस दौरान उन्हें काफी चोटें आयी थी। उनका घाव इतना गहरा था कि उन्हें बचाया नहीं जा सका और 26 अप्रैल 1858 को उनकी मौत हो गई। वहीं, 23 अप्रैल को पूरे बिहार में कुंवर सिंह विजयोत्सव दिवस मनाया जाता है।
और पढ़ें: बिहार विधान परिषद चुनाव के मायने : भाजपा तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं
पुरोधा का सम्मान
अब आपको बाबू वीर कुंवर सिंह के जश्न का राजनीतिक मायने बताते हैं। यह तो सभी को पता है कि भाजपा हिन्दुओं और हिन्दुओं के पुरोधा के सम्मान देने में हमेशा तत्पर रहते हैं। महाराष्ट्र में शिवाजी हो या गुजरात में सरदार पटेल की भव्य मूर्ति का लोकार्पण या आज वीर कुंवर सिंह का शौर्य गाथा भाजपा देश में हिन्दू संस्कृति को बढ़ाने का नेतृत्व कर रही है। नितीश कुमार की घटती लोकप्रियता और बिहार में भाजपा का बढ़ता जनाधार इस बात की तरफ इशारा कर रहा है की भाजपा आने वाले समय में इतिहास के महापुरुषों को उनके जाती-बंधन तोड़ कर पूरे राज्य में एक हिन्दू- एक बिंदु के राजनीतिक समीकरण को साधने में जुट गई है। बिहार देश का तीसरा बड़ा राज्य है और हिंदी पट्टी का एक प्रमुख राज्य है जहां पर जीत का परचम लहरा कर भारतीय जनता पार्टी फिर से 2024 लोकसभा चुनाव जीतना चाहेगी।
यही नहीं अमित शाह जिस तरह से वीर कुंवर सिंह को लेकर विपक्षी पार्टी पर आज हमला बोल रहे है उससे यह साफ़ हो गया है की वीर कुंवर सिंह की वीरता को देशव्यापी बनाने जा रहे है उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा है की वीर कुंवर सिंह जैसा महान पुरुष की वीरता को कांग्रेस ने कभी देश के दूसरे हिस्सों तक पहुंचने नहीं दिया और अब यही वह समय है जब उनके कारनामे बिहार और भोजपुर क्षेत्र से बहुत आगे तक पहुंच गए होंगे और यह भी उतना ही सच है कि बाबू वीर कुंवर सिंह जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों को कभी उनका हक नहीं मिला पर अब अमित शाह ने आज उनके शौर्य को देशव्यापी बना दिया है जिसका बाबू वीर कुंवर सिंह असली हकदार हैं।
और पढ़ें: बंगाल की राह पर चलता बिहार, राज्य में मोबाइल सेवाएं हो सकती हैं ठप्प