जब जरूरत होगी तब हम हस्तक्षेप करेंगे, न कि जब आप हुक्म देंगे- पश्चिम को भारत का स्पष्ट संदेश

भारत का अमेरिका को दो टूक जवाब!

बुचा

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कुछ दिन पूर्व यूक्रेन की राजधानी कीव के बाहरी इलाकों और गलियों को लाशों से पटा दिखाया गया। इन सभी क्षेत्रों में बुचा इलाके में किए गए मानवीय नरसंहार, नृशंसता और बर्बरता के जघन्य कृत्यों ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। पूरे विश्व में हाहाकार मच गया। दुनियाभर के देश अमेरिका की अगुवाई में स्वतंत्र जांच की मांग करने लगे।

भले ही अमेरिका ने ईरान, इराक, कोरिया, अफगानिस्तान, सीरिया और दुनिया के हर एक देश में बर्बरता, नृशंसता और क्रूरता के नए आयाम लिखे हो, पर, बुचा की गलियों में गिरे शव उसे रूस पर दबाव बनाने के अवसर के रूप में दिखाई दिए।

झटपट संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई गई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संयुक्त राज्य अमेरिका के स्थाई सचिव और प्रतिनिधि एंटोनी जे ब्लिंकन ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से इस संदर्भ में बात की। 1 सप्ताह के दौरान भारत यूएस के बीच यह दूसरा 2+2 डायलॉग था। बुचा के गलियों में मानवीय क्रूरता के भयावह कृत्यों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीवीएस तिरुमूर्ति ने बिना रूस का नाम लिए हुए एकमत से इस प्रकार के हत्याओं की भर्त्सना की और वैश्विक समुदाय से स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग भी की। रूस यूक्रेन के बीच के विवाद को देखते हुए कूटनीतिक रूप से रूस के प्रति यह नई दिल्ली का सबसे सख्त और कठोर रवैया था।

इसके साथ साथ तिरुमूर्ति ने मानवीय सहायता के अपनी प्रतिबद्धताओं को भी दोहराया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष यह स्पष्ट किया कि भारत किसी भी प्रकार के वैसी जवाबी कार्रवाई का समर्थन नहीं करता जिससे शांति के भंग होने की संभावना हो और इंसानी जान माल के साथ-साथ वैश्विक सुरक्षा के लिए भी एक संकट बन सके।

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उन्होंने वैश्विक समुदाय से गोलबंदी न करने की अपील करते हुए इस मसले पर सकारात्मक रवैया अपनाने के लिए जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत मजबूर नागरिकों के लिए सुरक्षित रास्ता के साथ-साथ जरूरी सामान और चिकित्सीय सुविधा मुहैया कराता रहेगा। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने एक ओर को जहां बुचा के हत्याओं को जनसंहार बताया तो वही संयुक्त राज्य अमेरिका के सेक्रेटरी ने इसे युद्ध अपराध घोषित किया।

ब्रिटेन के विदेश सचिव लिज ट्रुस ने इसे निर्दोष नागरिकों पर बर्बरता की एक ऐसी घटना बताया जिसे यूरोप में आज तक नहीं देखा है तो वहीं जर्मनी के विदेश मंत्री ऐनालेना ने ट्वीट के माध्यम से चित्रों को साझा करते हुए इसे असहनीय बताया और रसिया को दंड भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा।

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भारत का स्वतंत्र रुख

परंतु, इसी बीच भारत में भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बुलाई गई आपात बैठक में बुचा हत्याओं की भर्त्सना करते हुए साफ-साफ स्पष्ट कर दिया कि वह रूस यूक्रेन मुद्दे को वैश्विक राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देगा, भारत एक गुट निरपेक्ष राष्ट्र था, है और रहेगा।

भारत की स्वतंत्र और निष्पक्ष विदेश नीति को नियंत्रित करने का ख्वाब देखने वालों के मुंह पर एक करारा तमाचा जड़ते हुए भारत ने पश्चिम को अपने गिरेबान में झांकने की नसीहत दी, आज के राजनीतिक परिवेश में इस पूरे वैश्विक भूगोल में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जो अमेरिका और ब्रिटेन के गलत विस्तारवादी और उपनिवेशवाद कृतियों का दंश ना झेल रहा हो।

अमेरिका द्वारा किए गए नरसंहार से पूरा विश्व त्रस्त पड़ा है, ईरान, इराक, सीरिया, कोरिया, अफगानिस्तान, मैक्सिको, क्यूबा और पता नहीं कहां-कहां मानवीय मूल्यों को तार-तार किया गया है, अगर सभी मामलों में अमेरिका को युद्ध अपराधी ठहराते हुए उसके कृत्यों का दस्तावेजीकरण किया जाए तो पन्ने कम पड़ेंगे।

अमेरिका को यह समझना चाहिए क्योंकि भारत यह समझ रहा है और इसीलिए वह बुचा में हुए हत्याओं की भर्त्सना तो कर रहा है लेकिन इसे वैश्विक राजनीति का अखाड़ा बनाने से भी बचा रहा है क्योंकि इससे स्थिति और बिगड़ेगी, भारत ने साफ साफ शब्दों में स्पष्ट कर दिया है कि वह मामले की गंभीरता और यथास्थिति को संज्ञान में लेते हुए अपना विदेश नीति निर्धारित करेगा ना की अमेरिका के निर्देशों का पालन करते हुए मामले को और भी जटिल बनाएगा।

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