चटगांव पोर्ट का एक्सेस देकर भारत और बांग्लादेश ने किया ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ का सर्वनाश

भारत ने कर ली है चीन की लंका लगाने की तैयारी

PM Sheikh Hasina

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किसी ने ठीक ही कहा है, जब जागो तभी सवेरा। एक ओर चीन अपने ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति के अंतर्गत एक के बाद एक कई देशों को बर्बाद करने पर तुला हुआ है, जिसके तहत श्रीलंका पहले ही विनाश के मार्ग पर अग्रसर है, वहीं नेपाल अब भी उसी दिशा पर आगे बढ़ता जा रहा है। परंतु एक देश ऐसा भी है, जिसने न केवल सही समय पर अपनी राह बदली अपितु भारत से हाथ मिलाकर चीन के कुटिल नीतियों को चकनाचूर कर दिया।

भारत और बांग्लादेश ने मिलकर कर दिया कमाल

दरअसल, भारत और बांग्लादेश ने मिलकर एक ही दांव में चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति का सर्वनाश कर दिया है। हाल ही में एक महत्वपूर्ण, कूटनीतिक विजय में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद ने चटगांव बंदरगाह के इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भारत को दिया है। इस विषय पर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में गुरुवार (28 अप्रैल 2022) को उनसे ढाका में मुलाकात की। उन्होंने बांग्लादेशी पीएम को इस साल के अंत तक भारत आने का न्योता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिया।

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ये प्रस्ताव बांग्लादेश ने भारत को ऐसे समय में दिया है, जब चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए भारत के पड़ोसी देशों में अपनी घुसपैठ बढ़ाने की कोशिश में है। अब चीन की यह योजना पूर्णतया असफल सिद्ध हुई है परंतु वह अपनी योजना पर हार मानने को तैयार नहीं है और ऐसे में उसकी कुदृष्टि बांग्लादेश के बंदरगाहों पर भी थी। ऐसे में प्रधानमंत्री शेख हसीना का प्रस्ताव उसके लिए किसी बड़े झटके से काम नहीं।

लेकिन इससे भारत को किस प्रकार का लाभ होगा? इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम और त्रिपुरा को फायदा होगा। बैठक के दौरान प्रधानमंत्री हसीना ने कहा कि दोनों देशों को कनेक्टिविटी को और बढ़ाना होगा। उनके प्रेस सचिव एहसानुल करीम ने बताया कि पीएम शेख हसीना ने जयशंकर से कहा कि आपसी लाभ के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे में बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी चटगांव बंदरगाह का उपयोग करने से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को विशेष रूप से फायदा होगा।

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शेख हसीना ने और क्या बात की

परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। शेख हसीना ने बांग्लादेश और भारत के बीच सीमा पार मार्गों को फिर से शुरू करने की बात की है, जिन्हे 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान बंद कर दिया गया था। उस समय बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था और उसे पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। करीम ने कहा कि प्रधानमंत्री हसीना की जयशंकर के साथ आधे घंटे से अधिक चली बैठक के दौरान कई द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई।

लेकिन भारत बांग्लादेश की इस संधि से चीन के ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति को किस प्रकार से नुकसान होगा? चीन के कर्ज के मायाजाल में फँसकर किस प्रकार श्रीलंका बर्बाद हुआ है यह किसी से नहीं छुपा है। नेपाल भी अब वित्तीय संकट के मकड़जाल में फंस रहा है, और पाकिस्तान को भी CPEC रद्द करने पर विचार करना पड़ रहा है। ऐसे में अब बांग्लादेश के पास दो विकल्प है- या तो चीन की जी हुज़ूरी कर अपना विनाश करे, या फिर भारत का साथ देकर विकास के पथ पर आगे बढ़े। भारत का हाथ थामकर बांग्लादेश ने चीन को दुलत्ती ही मार दी है।

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