कुछ दिनों पूर्व भारत सरकार ने आर्कटिक नीति जारी करते हुए यह स्पष्ट किया था, कि भारत इस क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी निभाने वाला है। अब भारत सरकार ने लोकसभा में अपनी अंटार्कटिका की नीति से संबंधित एक बिल प्रस्तुत किया है। हालांकि यह नीति देर से आई है, क्योंकि भारत ने आर्कटिक समझौते पर 40 वर्ष पूर्व हस्ताक्षर किए थे। लेकिन देर से ही सही भारत ने अंटार्कटिका को लेकर एक स्पष्ट नीति अपना ली है।
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अब अंटार्कटिका में लागू होंगे भारतीय कानून
सरकार की ओर से केन्द्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने यह बिल प्रस्तुत किया। विधेयक भारत में अंटार्कटिका के संबंध में पहला घरेलू कानून है। हालांकि भारत पिछले 40 वर्षों से अंटार्कटिका में अभियान भेज रहा है, लेकिन इन अभियानों को अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा संचालित किया जाता था। अब इस विधेयक से ऐसे वैज्ञानिक अभियानों के साथ-साथ व्यक्तियों, कंपनियों और पर्यटकों के लिए अंटार्कटिका से संबंधित किसी अभियान के लिए नियमों की एक व्यापक सूची तैयार की गई है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि आने वाले वर्षों में अंटार्कटिका में गतिविधि बढ़ने की उम्मीद है, जिससे प्रोटोकॉल के घरेलू नियमों को लागू करना आवश्यक हो गया है। अंटार्कटिका के लिए नियम बनाने वाला भारत पहला देश नहीं है। इसके पूर्व अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेलारूस, बेल्जियम, कनाडा, चिली, कोलंबिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, पेरू, रूस, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, तुर्की, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका सहिय 27 देशों द्वारा पहले से ही अंटार्कटिका पर घरेलू कानून बनाए गए हैं। विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र को अंटार्कटिका तक विस्तारित करना है, भारतीय नागरिकों या विदेशी नागरिकों जो भारतीय अभियानों का हिस्सा हैं, उनपर अंटार्कटिका महाद्वीप पर अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता लागू होगी। इसमें पर्यावरण के विरुद्ध अपराध भी शामिल हैं, जो पहले नहीं थे।
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अब अंटार्कटिका जाने वालों को लेना होगा विशेष परमिट
बिल किसी भी अभियान या महाद्वीप की यात्रा करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के लिए एक विस्तृत परमिट प्रणाली पेश करता है। ये परमिट सरकार द्वारा गठित एक समिति द्वारा जारी किए जाएंगे। समिति में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव शामिल होंगे। इसमें रक्षा, विदेश मंत्रालय, वित्त, मत्स्य पालन, कानूनी मंत्रालय, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, जहाजरानी, पर्यटन, पर्यावरण, संचार और अंतरिक्ष मंत्रालयों के अधिकारी भी शामिल होंगे। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के सदस्य के साथ अंटार्कटिका के विशेषज्ञ शामिल होंगे। परमिट के लिए आवश्यक मानकों में यदि कमियां पाई जाती हैं, या कानून के उल्लंघन की गतिविधियों का पता चलता है, तो समिति द्वारा परमिट रद्द किया जा सकता है।
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बिल में मछली पकड़ने, पर्यटन तथा खनन की अनुमति की बात की गयी
अब तक भारत इस क्षेत्र में वाणिज्यिक मछली पकड़ने का कार्य नहीं करता है। हालांकि प्रत्येक देश के पास फिशिंग से संबंधित एक आवंटित कोटा है, यह बिल अब इस गतिविधि के लिए अनुमति प्रदान करता है। हालांकि, इस बिल में फिशिंग से संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार सख्त दिशानिर्देश मौजूद हैं। अब तक इस क्षेत्र में भारत द्वारा टूरिस्म का कार्य नहीं होता था, जिसका प्रावधान इस बिल में है। कई भारतीय विदेशों की ओर से अंटार्कटिका की यात्रा करते थे, उनके अब भारत से जाने की सुविधा होगी। ऐसा में टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।
विधेयक खनिज संसाधनों की ड्रिलिंग, ड्रेजिंग, उत्खनन या संग्रह पर रोक लगाता है। यहां तक कि खनिज पदार्थों की उपलब्धता से संबंधित अनुसंधान करने, खदानों की पहचानने के लिए कार्य करने पर भी प्रतिबंध लगाता है। ऐसा कोई भी कार्य केवल वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए स्वीकृत परमिट के साथ ही किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अंटार्कटिका के स्थानीय पौधों को नुकसान पहुंचाना, हेलीकॉप्टर या ऑपरेटिंग जहाजों, जो पक्षियों और सील को परेशान कर सकते हैं, उनका उपयोग करना वर्जित है।
इसके अलावा आग्नेय अस्त्र जैसे हैंडगन आदि का उपयोग, और किसी भी माध्यम से अंटार्कटिका के किसी भी जैविक सामग्री को नुकसान पहुंचाने या स्थानीय पक्षियों और जानवरों को मारना, घायल करना या किसी पक्षी या जानवर को पकड़ना सख्त वर्जित है। अंटार्कटिका समझौता 12 देशों, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, चिली, फ्रांसीसी गणराज्य, जापान, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका संघ, यूएसएसआर, UK और US के बीच, 1959 में हुआ था जिसके अंतर्गत निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किए गए।
अंटार्कटिका का विसैन्यीकरण करना, इसे शांतिपूर्ण अनुसंधान गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाने वाले क्षेत्र के रूप में स्थापित करना, क्षेत्रीय संप्रभुता के संबंध में किसी भी विवाद को दूर करना, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सुनिश्चित होता है। भारत ने 1983 में इसपर हस्ताक्षर किया।