ज्ञानवापी के बाद शाही ईदगाह मस्जिद के पीछे का सच सामने आने का समय आ गया है

सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं !

mathura mamla

Source- TFIPOST.in

जिस तरह सच्चाई छुप नहीं सकती छुपाने से, इसी प्रकार धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो आज कल के घटनाक्रमों पर एकदम सटीक बैठ रहा है। अनादिकाल से स्थापित मंदिरों को ध्वस्त कर विवादित ढांचे खड़े करने वालों की इन दिनों शामत आ गई है। ज्ञानवापी मस्जिद से सर्वे के दौरान निकले उसके भीतर शिवलिंग के साक्ष्यों ने यह सिद्ध कर दिया कि सबकुछ ठीक न ही कभी ठीक था और न ही है। हिन्दू धर्म और उसके अनुयायियों के आराध्यों को जिस प्रकार क्षति पहुँचाने का कृत्य एक वर्ग विशेष द्वारा अब तक किया गया अब वो सबके सामने आ रहा है और सभी को अंततः कठघरे में खड़ा पाया जा रहा है। ऐसे जिहादी तत्वों पर ज्ञानवापी के बाद देश के कई अन्य ढांचों पर निगाह सीधी होने लगी है और अबकी बार नंबर है मथुरा की ईदगाह मस्जिद का।

दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद मामले में अदालत द्वारा अनिवार्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर एक उग्र विवाद के बीच, यूपी के मथुरा में एक समान घटना सामने आ रही है, जहां एक स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कृष्ण जन्मभूमि के बगल में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद के वीडियो सर्वेक्षण के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण की तरह, याचिकाकर्ता ने “मस्जिद परिसर में हिंदू कलाकृतियों और प्राचीन धार्मिक शिलालेखों के अस्तित्व” का निर्धारण करने के लिए ईदगाह परिसर के अंदर वीडियोग्राफी की निगरानी के लिए एक सर्वेक्षण आयुक्त नियुक्त करने के लिए कहा है ताकि कोई विवाद या छेड़खानी न होने पाए।

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मामलों को जल्दी निपटाने का निर्देश

ज्ञात हो कि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ द्वारा पिछले सप्ताह स्थानीय मथुरा अदालत को श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद से संबंधित सभी मामलों को चार महीने के भीतर निपटाने का निर्देश देने के एक दिन बाद, एक वकील आयुक्त से सर्वेक्षण की निगरानी करने की मांग वाली याचिका, ज्ञानवापी मस्जिद की तर्ज पर दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता नारायणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष यादव ने एक मीडिया समूह को बताया कि, “मैंने मथुरा की अदालत से, एक अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति करने और शाही ईदगाह का तुरंत वीडियो सर्वेक्षण कराने का अनुरोध किया, क्योंकि मस्जिद के अंदर अभी भी हिंदू धर्म के अवशेष हैं। ये महत्वपूर्ण तथ्य हैं और विपक्ष इन्हें हटा या मिटा सकता है।”

शाही ईदगाह मस्जिद और श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर अब तक मथुरा कोर्ट में कुल नौ मामले दर्ज हो चुके हैं।  कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 1 जुलाई की तारीख तय की है। याचिकाकर्ताओं में से एक रंजना अग्निहोत्री ने श्री कृष्ण जन्मभूमि की भूमि पर बनी मस्जिद को हटाने की मांग की थी। अपनी याचिका में उसने दावा किया है कि मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के आदेश पर 1669-70 में श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन पर हुआ था।

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न्यायालय द्वारा सर्वे

यह कोई संयोगवश हुई घटनायें नहीं हैं, यही उन सभी षडयंत्रों के ताबूत में उस अंतिम कील की तरह है जो न्यायालय द्वारा सर्वे के माध्यम से ठोंकी जा रही है। ऐसा नहीं है कि यह सभी बातें एक दूसरे से जुडी नहीं है, अवश्य जुडी हैं क्योंकि मुगलों ने अपने कुकर्मों को मंदिरों को तोड़कर और मस्जिदों को निर्मित कर ढकने की कोशिश की थी। लेकिन बुद्धिहीन से और क्या ही उम्मीद की जा सकती है, मुगलों की अकल तो थी ही घुटनों में तो जैसे हो सका वैसे मंदिर तो कब्ज़ा लिए पर उनके अवशेषों को ठिकाने नहीं लगा पाए।

बस फिर क्या था, “होइ वही जो राम रची राखा” किसे पता था कि सर्वे भवन्तु सुखिनः का अर्थ एक दिन सर्वे से सब खुश होंगे और सबकुछ साफ हो जाएगा। अब समय आ गया है कि अपनी संस्कृति और वंशजों को एक जगह समाहित कर उनको पूजना पुनः प्रारंभ किया जाए नहीं तो एक दिन फिर ऐसा आएगा जब फिर से यह सब विलुप्त हो जाएगा।

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