प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार देश में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए निरंतर कड़े और बड़े कदम उठा रही है. केंद्र सरकार ने इसी क्रम में अब चीनी के निर्यात को नियंत्रित किया है. सरकार ने चीनी के निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं. यह प्रतिबंध 1 जून से प्रभावी होगे. सरकार के इस कदम का मुख्य उद्देश्य चीनी की उपलब्धता भारतीय बाजार में बनाए रखना और दामों पर नियंत्रण रखना है.
विदेश व्यापार महानिदेशालय (Directorate General of Foreign Trade) की तरफ से जारी अधिसूचना में जानकारी दी गई है कि ‘सभी प्रकार की चीनी (raw, refined and white sugar) के निर्यात को 1 जून, 2022 से प्रतिबंधित श्रेणी में रखा जाता है.’ इसके साथ ही एक बयान में केंद्र सरकार ने कहा कि हमने 1 जून से चीनी के निर्यात को नियंत्रित करने का निर्णय लिया है. इसके पीछे का मुख्य कारण घरेलू उपलब्धता और मूल्यों में स्थिरता बनाए रखना है. सरकार ने चीनी निर्यात को 100 लाख टन तक सीमित करने का फैसला किया है.
रोक की जरूरत क्यों पड़ी?
भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है. वहीं अगर बात करें निर्यात की तो ब्राजील के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक देश भी है. ऐसे में आइए, हम समझते हैं कि सरकार को चीनी निर्यात पर रोक लगाने की जरूरत क्यों पड़ी?
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रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाई चेन प्रभावित हुई, जिसके कारण पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों को लेकर समस्याएं सामने आ रही हैं. ऐसे में भारत से चीनी का निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर होने लगा. आइए, पिछले वर्षों के चीनी निर्यात पर एक नज़र डालते हैं.
शुगर सीज़न | चीनी का निर्यात |
2017-18 | 6.2 LMT |
2018-19 | 38 LMT |
2019-20 | 59.60 LMT |
चीनी का निर्यात
वहीं, शुगर सीज़न 2020-21 में 60 LMT चीनी निर्यात का लक्ष्य था लेकिन करीब-करीब 70 LMT चीनी निर्यात हो चुकी है. ऐसे में सरकार के लिए यह बहुत जरूरी हो गया था कि चीनी के निर्यात को रोका जाए, जिससे कि भारत में चीनी की उपलब्धता बनी रहे और मूल्यों पर भी नियंत्रण रखा जा सके.
इथेनॉल उत्पादन के लिए जरूरी
इसके साथ ही चीनी निर्यात पर रोक लगाने के पीछे एक कारण सरकार का इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना भी है. तेल-आयातक देश तेल खरीद के लिए भारी कीमत चुका रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध की वज़ह से मुद्रास्फीति (Inflation) आम लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही है. ऐसे में भारत और ब्राजील जैसे तेल-आयातक देश वैकल्पिक ईंधन पर काम कर रहे हैं. यह देश मिश्रित इथेनॉल बनाने के लिए अतिरिक्त गन्ने को पेट्रोल के साथ मिला रहे हैं. इससे किसी भी देश को दोतरफा फायदा होता है. एक तरफ प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है वहीं दूसरी तरफ आयात का खर्चा भी कम होता है.
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शुगर सीजन 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में लगभग 3.37 लाख टन, 9.26 लाख टन और 22 लाख टन चीनी को इथेनॉल में बदला गया. 2025 तक सरकार का लक्ष्य 60 लाख टन अतिरिक्त चीनी इथेनॉल में डाइवर्ट किए जाने का लक्ष्य है.
चीनी निर्यात को नियंत्रित करना मुद्रास्फीति (Inflation) को नियंत्रण करने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है. कुछ दिन पहले ही सरकार ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए, घरेलू मांग की पूर्ति के लिए, खाद्य सुरक्षा को देखते हुए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है.
3 राज्यों में 80 फीसदी उत्पादन
भारत से सबसे ज्यादा चीनी का निर्यात इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, मलेशिया और अफ्रीकी देशों में होता है. देश में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक चीनी के सबसे बड़े उत्पादक राज्य हैं. इन तीन राज्यों में देश की कुल चीनी का 80 फीसदी उत्पादन होता है.
आर्थिक स्थितियों को देखते हुए, वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए, देश की खाद्य सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने चीनी निर्यात को नियंत्रित करने का जो फैसला किया है वो सही वक्त पर उठाया गया सही कदम है.
जब दुनिया में हाहाकार मचा है. युद्ध हो रहा है. ऐसे वक्त में देश में पेट्रोल-डीजल का सस्ता होना, गेहूं के निर्यात पर बैन लगना और अब चीनी के निर्यात को नियंत्रित करना. ये सभी फैसले दिखाते हैं कि जब आप देशहित में काम करना चाहते हैं- देश के लोगों के लिए काम करना चाहते हैं- तो वक्त से पहले सही फैसले किए जाते हैं- जो मोदी ने करके दिखाया है. जो लोग कहते थे कि मोदी को अर्थव्यवस्था की समझ नहीं है- हाल ही में लिए गए फैसले उनके मुंह पर करारा तमाचा हैं. इन फैसलों से एक बात और साफ है कि शेर को कभी भी भेड़ियों से सलाह लेने की जरूरत नहीं होती.
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