अमेरिका द्वारा भारत-रूस के संबंध को तोड़ने की आखिरी कोशिश भी हुई नाकाम

इस गहरे संबंध को पचा नहीं पा रहा है अमेरिका !

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Source- TFIPOST.in

आज भारत वैश्विक स्तर पर एक ऐसा मजबूत देश बन चुका है जिसे हर देश अपने पाले में लाना चाहता है। रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में ही पश्चिम देशों को यह पता चल गया था कि भारत अपने सबसे करीबी और विश्वसनीय मित्र रूस के खिलाफ नहीं जाने वाला और हुआ भी ऐसा ही। भारत ने विश्व पटल पर UN में बार-बार रूस के खिलाफ वोट करने से इंकार कर दिया और दोनों देशों को शांति से मामला सुलझाने की बात कहता रहा है।

रूस का बार-बार साथ देने के बाद अमेरिका भारत को लगातार आर्थिक प्रतिबन्ध की धमकिया दे रहा है हालाँकि अमेरिका की अभी तक एक नहीं चली है। भारत ने अमेरिका को हर बार इस मुद्दे पर लताड़ा है। लेकिन अमेरिका फिर से भारत को समझाने के प्रयास में जूट गया है। दरअसल रूस के खिलाफ अपने प्रतिबंधों के साथ भारत को अपने पाले में लाने के लिए वाशिंगटन ने भारत की तेल खरीद और प्रतिबंधों को रोकने के लिए रुपये-रूबल भुगतान तंत्र का उपयोग करने की योजना पर चर्चा करने के लिए एक और वरिष्ठ अधिकारी को भेजा है।

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अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता के अनुसार

मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधिकारियों के साथ-साथ दिल्ली में वित्त मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठक से पहले आतंकवादी वित्तपोषण और वित्तीय अपराध के लिए अमेरिकी सहायक सचिव एलिजाबेथ रोजेनबर्ग बुधवार को भारत पहुंची।

एलिजाबेथ रोज़ेनबर्ग जून में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के आगामी पूर्ण सत्र पर भी चर्चा करेंगी, जहां पाकिस्तान की ग्रे लिस्टिंग की समीक्षा की जाएगी और रूस के खिलाफ संभावित उपायों पर चर्चा की जा सकती है। अमेरिकी सहायक सचिव एलिजाबेथ रोज़ेनबर्ग की यात्रा दुनिया भर के भागीदारों और सहयोगियों को अमेरिकी प्रतिबंधों और निर्यात नियंत्रणों के कार्यान्वयन के बारे में अधिकारियों और उद्योग के साथ बात करने के लिए व्यापक जो बाइडन प्रशासन के प्रयास का हिस्सा है। यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टोक्यो में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से क्वाड शिखर सम्मेलन के इतर मुलाकात के एक दिन बाद हुई है, जहां दोनों नेताओं ने कई समझौतों की घोषणा की थी।

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विश्व में भारत वन मैन आर्मी बनकर उभरा है

हालाँकि, नई दिल्ली और वाशिंगटन में यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों पर गहरा मतभेद बना हुआ है, क्योंकि भारत ने अपने किसी भी बयान में मास्को की आलोचना करने या उसका नाम लेने से इनकार कर दिया है, रूसी सेंट्रल बैंक और आरबीआई के अधिकारियों के बीच कम से कम दो दौर की बातचीत हुई है। यू.एस. और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के कारण दोनों देशों (भारत-रूस ) के बीच व्यापार बढ़ा है और रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से तेल की खरीद में वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिफाइनर ने युद्ध के पहले दो महीनों में 40 मिलियन बैरल रूसी तेल के ऑर्डर दिए हैं, जो पूरे 2021 के आंकड़े से दोगुने से भी ज्यादा है। इस सम्मलेन में भारतीय अधिकारियों ने यह भी समझाया है कि रुपया-रूबल तंत्र वर्षों से अस्तित्व में है, और इसे कभी भी नष्ट नहीं किया गया है। वहीं इस साल मार्च में, अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह ने इसी तरह के एक मिशन पर दिल्ली का दौरा किया था, और उस समय कहा था कि जो देश अमेरिका के प्रतिबन्ध की अवहेलना करता है तो उस देश को भी प्रतिबन्ध का सामना करना पड़ेगा। आज भारत वन मैन आर्मी हो चुका है जिसे हर देश अपने साथ रखना चाहता है और अमेरिका भी इसी फिराक में लगा हैं और भारत पहले भी कह चुका है कि वो अपना फैसला खुद लेना जानता है और वो हर वैश्विक मोर्चे पर सक्षम है। अमेरिका भी समझ चुका है की यह मोदी का नया भारत है इससे पन्गा लेना बेहद ही हानि का सौदा हो सकता है।

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