भाजपा को वोट नहीं देना केरल के ईसाइयों को उनके विनाश के पास ले जाएगा

केरल के ईसाइयों को लेने होंगे कड़े निर्णय

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केरल में कभी भगवा नहीं लहराया है और ऐसा स्वतंत्रता के बाद से है। एक ऐसा राज्य जिसे जीतना शायद विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के लिए भी एक कल्पना मात्र है लेकिन पीएम मोदी की सरकार में कई कल्पनाएं सत्य सिद्ध हुई हैं। राम मंदिर, अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण, लाल चौक पर तिरंगा, अप्रत्यक्ष वस्तु और सेवा कर आदि चीजें मात्र राष्ट्र स्वप्न ही तो थीं और इन्हीं असंभव सी चीजों में सम्मिलित था भाजपा का कश्मीर, असम, नागालैंड, मणिपुर और दुबारा यूपी जीतने के साथ साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में सरकार बनाना। दोनों काम हुए और भाजपा का जनाधार विस्तार भी हुआ और सरकार भी बनी। पर दक्षिण में मामला कुछ पेचीदा है विशेषकर केरल में। शुक्रवार को कोझीकोड में एक जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने केरल में जनसांख्यिकीय परिवर्तन और लव और नारकोटिक्स जिहाद की वजह से ईसाइयों के बीच बेचैनी का मुद्दा उठाया और देवताओं के इस राजधानी में भगवा खिलाने का संकल्प किया।

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ईसाइयों की समस्याओं और असुरक्षा का समाधान कैसे हो?

इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे केरल में भगवा खिलेगा या नहीं यह बात पूर्ण रूप से इस बात पर निर्भर करती है कि कौन सी पार्टी ईसाइयों की समस्याओं और असुरक्षा का समाधान करती है। दरअसल, धार्मिक समुदाय 2011 की जनगणना के अनुसार, केरल में हिंदु कुल जनसंख्या का 54.72 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें मुसलमानों की संख्या 26.56 प्रतिशत और ईसाइयों की संख्या 18.38 प्रतिशत है। देखने वाली बात है कि केरल के अभी तक के राजनीतिक इतिहास में सभी पार्टियों ने ईसाई समुदाय के मतों का बंदरबाट किया और उनके हितों को नकार दिया है चाहे वो वामपंथी दल हो या फिर कांग्रेसी खेमा।

केरल का इसाई समुदाय तीन बातों से काफी चिंतित है-

प्रथम मुद्दा है,

जनसांख्यिकी परिवर्तन- केरल सरकार की महत्वपूर्ण सांख्यिकी रिपोर्ट 2019 के अनुसार, केरल की इसाई जन्म दर 2019 में मामूली रूप से घटकर 13.79 हो गई जो 2018 में 14.10 थी। इसके साथ साथ मुसलमानों की जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। बलात धर्मान्तरण और इसके लिए खाड़ी देशों से होने वाले वित्तपोषण ने मामले को और जटिल बना दिया है। पहले ये देश खाड़ी देशों से पैसे ले गरीब इसाई और हिन्दू धर्म के नवयुवकों को बलात मुसलमान बनाते हैं और फिर भेज देते हैं सुदूर इस्लामिक देशों में जिहादी बनने के लिए जिसमें असफल होने पर भी हूरों की व्यवस्था तो  मिलेगी ही।

दूसरा मुद्दा है,

नारकोटिक्स जिहाद का- इस्लामिक चरमपंथियों के अनुसार जिन काफिरों ने इस्लाम की दावत कुबूल नहीं की उनका भी तो कुछ करना पड़ेगा। अतः, उन्हें बर्बाद करने के लिए वो नारकोटिक्स जिहाद ले कर आए जिससे इसाई समाज भी ध्वस्त हो रहा है।

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‘नारकोटिक जिहाद’ का मुद्दा सबसे पहले कैथोलिक बिशप जोसेफ कल्लारंगट ने पिछले साल सितंबर में उठाया था। उन्होंने कहा है कि राज्य में “लव जिहाद” और “नारकोटिक जिहाद” के माध्यम से ईसाई समुदाय और अन्य गैर-मुस्लिम धर्मों के युवा पुरुषों और महिलाओं को बहकाया और निशाना बनाया जा रहा है। फिर, कांग्रेस और सीपीआई (एम) के विपरीत भाजपा ने तब बिशप का समर्थन किया था।

और तीसरा मुद्दा है,

लव जिहाद का- कट्टरपंथियों का ये मॉडल राष्ट्रव्यापी रूप से निरंतर जारी रहता है। इसका सबसे बड़ा भुक्तभोगी हिन्दू और सिख समाज है। पर जब केरल के ईसाईयों के साथ यह सब हुआ तब उनकी निद्रा टूटी। इस्लामिक कट्टरपंथ ने पहले नवयुवकों को धर्मान्तरण के जाल में फंसाया जो नहीं बदले उन्हें नशे के चक्रव्यूह में फंसाया गया बाकी बची लड़कियां तो लड़कियों को जिहाद उत्पादन की मशीन समझ उन्हें कट्टरपंथियों द्वारा प्यार के जाल में फंसाया गया और फिर जब उत्पादन क्षमता ख़तम हो गयी तब सूटकेस में पैक कर दिया गया। पिछले हफ्ते भाजपा ने वरिष्ठ राजनेता पीसी जॉर्ज को भी समर्थन दिया जब उन्होंने लव जिहाद को लेकर मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषण दिया था।

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ये समस्याएं हिन्दू और इसाई दोनों की हैं

ये तीनों समस्याएं हिन्दू और इसाई दोनों की हैं। दोनों समुदाय ये भी जानते हैं इन चुनौतियों से निपटने का माद्दा भाजपा में ही है और नड्डा ने इसी बहाने चुनावी बिगुल भी फूंक दी है। नड्डा ने सत्तारूढ़ माकपा सरकार पर “इस्लामिक आतंकवाद को संरक्षण प्रदान करने” का आरोप लगाया।

हाल ही में, बीजेपी ने एसोसिएशन ऑफ क्रिश्चियन ट्रस्ट सर्विसेज (ACTS) की स्थापना की जो ईसाई चिंताओं को केंद्र सरकार तक ले जाने के लिए एक शिकायत निवारण मंच है जिसके अध्यक्ष के रूप में भाजपा केरल के प्रभारी सी पी राधाकृष्णन हैं।

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हाल ही में भजपा की एक बैठक में विभिन्न चर्चों के बिशप और वरिष्ठ पादरियों ने कई मुद्दे उठाए थे, जिन पर वे चाहते थे कि केंद्र सरकार ध्यान दे। वे जानते हैं की यह काम करने का साहस सिर्फ भाजपा ही रखती है अतः, अगर इस बार वो भाजपा के अलावा किसी और दल के बहकावे में आते हैं तो यह खुद पर कुल्हाड़ी मरने जैसा होगा।

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