ज्ञानवापी ‘मस्जिद’ में शिवलिंग मिलने के बाद इस बात पर पूरी तरह से मुहर लग गई है कि वो कोई मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर ही है। ज्ञानवापी का शाब्दिक अर्थ होता है- ज्ञान का कुआं। कथित मस्जिद और नए बाबा विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपने त्रिशुल से स्वयं लिंग अभिषेक करने के लिए इस कुएं को बनाया था। मान्यता है कि इस कुएं का जल बहुत ही पवित्र है। ज्ञानवापी का जल ही काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता है।
‘मस्जिद’ की मंदिर जैसी दीवारें कैसे ?
यह तो हो गया ज्ञानवापी का अर्थ। जो तरह से सनातन है। पूरी तरह से हिंदू धार्मिक मान्यताओं से लिया गया है। संस्कृत से लिया गया है। वैसे भी इस्लाम में ‘ज्ञान’ या फिर ‘वापी’ जैसी कोई अवधारणा नहीं है। ऐसे में किसी मस्जिद का नाम ज्ञानवापी कैसे हो सकता है ?
नाम के बाद अब हम ज्ञानवापी ‘मस्जिद’ के ढांचे का विश्लेषण करते हैं. ज्ञानवापी ‘मस्जिद’ की दीवारें किसी मस्जिद की तरह नहीं बल्कि मंदिर की तरह हैं। भारत में जैसी दूसरे मंदिरों की दीवारें होती हैं बिल्कुल वैसी ही दीवारें ज्ञानवापी ‘मस्जिद’ की हैं। ऐसे में यह साफ होता है कि मंदिर के ऊपरी हिस्से को तोड़कर ही मस्जिद बना दी गई है।
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इसके साथ ही पश्चिमी दीवार पर घंटी की आकृतियां बनी हैं। तमाम देवी-देवताओं की आकृतियां बनी हैं। इसके साथ ही इस बात पर भी गौर करना बहुत जरुरी है कि किसी भी शिवालय में नंदी महाराज का मुख शिवलिंग की तरफ होता है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में नंदी महाराज का मुख मस्जिद की तरफ है, इसका अर्थ साफ है कि वो मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर ही था।
ऐसे में एक बात तो बिल्कुल साफ है कि जब उसका नाम ‘हिंदुओं’ जैसा है, जब उसका ढांचा ‘हिंदुओं’ जैसा है, जब उसका पूरा परिसर ‘हिंदू’ प्रतीकों से भरा है तो निश्चित तौर पर वो हिंदू मंदिर ही है, मस्जिद नहीं।
विवाद क्या है ?
ज्ञानवापी विवाद 1991 में शुरू हुआ जब स्थानीय पुजारियों के एक समूह ने ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी। पुजारियों ने दावा किया कि मस्जिद का निर्माण 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में काशी विश्वनाथ मंदिर के एक ध्वस्त हिस्से पर किया गया था। 2019 में याचिकाकर्ताओं द्वारा ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग के बाद मामले ने एक बार फिर तुल पकड़ा।
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ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलने के बाद अब वहां इस्लामी प्रक्रिया से नमाज़ पढ़ने पर भी सवाल उठ रहे हैं। सर्वेक्षकों द्वारा शिवलिंग पाए जाने के रहस्योद्घाटन का मतलब है कि जिस तरह से मुसलमान अपनी नमाज़ करते हैं, उस पर फिर से गौर करने की ज़रूरत है। यह आसानी से कहा जा सकता है कि मूर्तियों की पूजा न करना इस्लाम का एक मूलभूत पहलू है। इस्लाम में मूर्ति पू जा को बुरा माना जाता है। इसे नरसंहार से भी बदतर कहा गया है। ऐसे में जिस मस्जिद में शिवलिंग मौजूद हो और जो वास्तव में मंदिर को तोड़कर बनाई गई हो, उसमें नमाज़ पढ़ना कहीं से भी उचित नहीं है।
ज्ञानवापी में नमाज उचित नहीं!
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने हाल ही में एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया। उन्होंने कहा कि इस्लामी रीति-रिवाजों में कहा गया है कि उस संरचना को मस्जिद कहा जाना चाहिए, जिसकी पहली ईंट मस्जिद के नाम पर रखी जाए। यही बात मुस्लिम समाज को समझना चाहिए।
इसलिए, यदि कोई मुसलमान ज्ञानवापी जैसी जगह पर नमाज के लिए जा रहा है, तो वह प्रभावी रूप से अपने धर्म को धोखा दे रहा है।
अब चूंकि शिवलिंग मस्जिद के अंदर मौजूद है, इसलिए उस क्षेत्र में इबादत की पेशकश करना धोखा है। नमाज़ी पूरी तरह से अल्लाह के प्रति समर्पित नहीं हैं। उनका अवचेतन ध्यान मूर्ति संरचना के अन्य रूपों की ओर आकर्षित होता होगा, जिसे इस्लाम में स्वीकार नहीं किया जाता है। ऐसे स्थान पर अल्लाह से प्रार्थना करना जो हर मायने में हिंदू धर्म का प्रतीक है वास्तव में इस्लाम का अपमान है।
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