दिल्ली सूख के कांटा हो रही है और दोषी हैं केवल अरविन्द केजरीवाल

दिल्ली का सत्यानाश किए बिना नहीं मानेंगे केजरीवाल!

Arvind Kejriwal

Source- TFI

दिल्ली में जल संकट की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। एक ओर दिल्ली में जलाशय एवं जल स्त्रोत दिन प्रतिदिन सूखते जा रहे हैं, तो दूसरी ओर हरियाणा के साथ-साथ अब उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य भी अपने जल संसाधन साझा करने से मना कर रहे हैं। न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, “राजधानी दिल्ली पिछले कुछ समय से पानी के संकट से जूझ रही है। मौजूदा संकट की प्रमुख वजह वजीराबाद बैराज में घटता जलस्तर है, लेकिन दिल्ली ने कभी उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के साथ मिलकर राजधानी को पानी सप्लाई की योजना बनाई थी, जिससे वो पीछे हट गए हैं। हरियाणा भी पानी के बदले पानी देने की योजना को आगे बढ़ाने का इच्छुक नहीं है।” समाचार एजेंसी पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से कहा है कि हिमाचल और यूपी से जुड़े प्रस्तावों पर 2019 से विचार किया जा रहा था, लेकिन छह-आठ महीने पहले दोनों राज्यों ने हाथ खींच लिए।

और पढ़ें: केसीआर और केजरीवाल ‘तीसरे मोर्चे’ के हसीन सपने देख रहे हैं

परंतु ऐसा क्या हो गया जिसके पीछे दिल्ली में इतना भीषण जल संकट उत्पन्न हो गया? इसके दो प्रमुख कारण हैं – भारत में इस वर्ष की प्रचंड गर्मी और अरविन्द केजरीवाल की कुत्सित राजनीति। वो कैसे? आपको याद तो होगा ही कि कैसे केजरीवाल ने सत्ता में आने के बदले मुफ़्त की बिजली एवं पानी का वादा किया था। इसके अंतर्गत पानी की आपूर्ति कुछ क्षेत्रों में तो मुफ़्त सुनिश्चित करने का वादा किया गया था। परंतु केजरीवाल की मुफ्तखोरी वाली राजनीति के कारण दिल्ली में पर्याप्त बिजली तो छोड़िए, पानी तक का अकाल पड़ गया है।

TFI Post की एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, “दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार इस संकट के लिए अन्य राज्यों और विशेषकर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर निशाना साध रही है कि पडोसी राज्य के मुख्यमंत्री उनके साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जबकि वास्तविकता इसके कोसों दूर है। दिल्ली जल बोर्ड के एक बयान में कहा गया है कि वजीराबाद तालाब का जल स्तर लगभग 674.50 फीट के सामान्य स्तर के मुकाबले गिरकर 669.40 फीट हो गया है। तालाब का स्तर 12 मई को 671.80 फीट से और गिर गया है। मंगलवार सुबह से तालाब के जलस्तर में सुधार होने तक जलापूर्ति प्रभावित रहने की संभावना है। वहीं, यमुना में जलस्तर को लेकर दिल्ली और हरियाणा की सरकारें जमकर एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं।”

तो इसका उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश द्वारा जल संसाधन साझा करने के बहिष्कार से क्या नाता है? असल में अपनी कुत्सित राजनीति के पीछे जिस प्रकार दिल्ली ने हरियाणा को बलि का बकरा बनाने का प्रयास किया, उससे अब उत्तर प्रदेश और हिमाचल भी असहज हो गए हैं। वे भी सोच रहे हैं कि कहीं उन्हें लेने के देने न पड़ जाएं। इसलिए हरियाणा की तरह केजरीवाल द्वारा राजनैतिक दलदल में घसीटे जाने से बेहतर ये राज्य अपने संसाधनों की रक्षा करना उचित समझ रहे हैं।

यदि आज दिल्ली पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहा है, तो उसके लिए एक ही व्यक्ति दोषी है – अरविन्द केजरीवाल। जिस प्रकार से मुफ़्त बिजली, पानी की राजनीति के चक्कर में यह जनता को इन दोनों ही मुद्दों से कोसों दूर ले जा चुके हैं, उससे स्पष्ट पता चलता है कि वह तब तक नहीं रुकेंगे जब तक अपनी राजनीति के चक्कर में वो दिल्ली का सत्यानाश नहीं कर देते।

और पढ़ें: केजरीवाल सरकार को चाहिए भारी वेतन वृद्धि लेकिन कर्मचारियों को मिलती हैं लाठियां

Exit mobile version