फॉरेस्ट गम्प एक ‘राजनीतिक फ़िल्म’ थी, ‘लाल सिंह चड्ढा’ भी होगी?

आमिर खान की 'लाल सिंह चड्ढा' भी फैलाएगी वामपंथी एजेंडा?

लाल सिंह चड्ढा फिल्म poster

Source- TFIPOST.in

आप तो जानते ही होंगे कि बात कुछ भी हो, परंतु चाहे आलोचना के कारण, या फिर निरंतर चर्चा के पीछे ही सही, लेकिन आमिर खान की आने वाली फिल्म “लाल सिंह चड्ढा” ने अपना ध्यान तो अवश्य सबकी ओर खींच लिया है। लेकिन कई लोग इसलिए उत्सुक है क्योंकि लंबे समय के बाद आमिर खान बड़े परदे पर दिखेंगे, तो कई लोग इस बात से निराश हैं कि मूल फिल्म ‘फॉरेस्ट गम्प’ के साथ न्याय नहीं हुआ, जिस पर ये फिल्म आधारित है।

लेकिन इस फिल्म से अगर लोग निराश हैं, तो कुछ दृश्य देख तनिक चिंतित भी होना चाहिए। अद्वैत चंदन द्वारा निर्देशित ‘लाल सिंह चड्ढा’ प्रसिद्ध ऑस्कर विजेता फिल्म ‘फॉरेस्ट गम्प’ पर आधारित है, जो स्वयं विंस्टन ग्रूम द्वारा रचित इसी नाम के पुस्तक पर आधारित है। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में आमिर खान हें जो लाल सिंह चड्ढा की भूमिका निभाएंगे, एक अनोखा लड़का जो अपने दृष्टिकोण से संसार को देखता है। ये फिल्म 11 अगस्त को प्रदर्शित होगी और काफी विलंब के बाद इसका ट्रेलर कल जाकर आईपीएल के फाइनल के समय लॉन्च हुआ।

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चिंता बस इसी बात की है

‘फॉरेस्ट गम्प’ राजनीतिक रूप से एक सक्रिय फिल्म थी, जिसमें एक नादान व्यक्ति के दृष्टिकोण से अमेरिका की राजनीति को दिखाया, और चाहे वामपंथी हो या दक्षिणपंथी, किसी के कर्मकांडों को नहीं छोड़ा गया। वॉटरगेट स्कैम हो, नस्लभेद के कांड हो, युद्ध के विरोध के नाम पर वामपंथियों का उपद्रवी स्वरूप हो या फिर अमेरिका का वियतनाम युद्ध में अपमानजनक पराजय हो, फॉरेस्ट गम्प में बिना लाग लपेट सबका उल्लेख हुआ।

परंतु क्या इस बात की गारंटी लाल सिंह चड्ढा फिल्म में हो सकती है? क्या इस बात पर हम निश्चित हो सकते हैं कि इस फिल्म में एजेंडावाद नहीं होगा? इसकी आशा बहुत ही कम होगी, क्योंकि सर्वप्रथम तो इसमें आमिर खान हैं – जो एजेंडावाद की जीती जागती प्रतिमूर्ति हैं।

अब ‘लाल सिंह चड्ढा’ फिल्म जब आयेगी फिर से वो इसके जरिए एजेंडा नहीं परोसेंगे, ये कहना बेवकूफी होगी। ये वही आमिर खान हैं, जिन्होंने ‘फ़ना’ और ‘रंग दे बसंती’ में क्रांति के नाम पर अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इतना ही नहीं, ‘फ़ना’ के कामयाबी के बल पर वे तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने चले थे। तब नरेंद्र मोदी बहु प्रतिष्ठित सरदार सरोवर परियोजना को लागू करवाने के लिए सब कुछ करने को तैयार थे, लेकिन सोशल मीडिया के अभाव के कारण मेधा पाटकर जैसे आंदोलनकारी झूठी अफवाहें फैलाकर स्थानीय लोगों को नर्मदा बचाओ आंदोलन के नाम पर दिग्भ्रमित करने में जुटी हुई थीं।

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एजेंडे के तहत हो सकती है फिल्म

आपको बता दें कि कलाकार के रूप में ये फिल्म अभिनेता अतुल कुलकर्णी का अंतिम प्रोजेक्ट भी है, क्योंकि वे इस फिल्म के पटकथा लेखक हैं। ये वही अतुल कुलकर्णी हैं, जिन्होंने दशकों पहले कमल हासन के ‘हे राम’ में एक धर्मांध और मुस्लिम विरोधी हिन्दू एक्टिविस्ट श्रीराम अभ्यंकर का किरदार निभाया था, लेकिन वह किरदार भी इतने बढ़िया तरह से उन्होंने निभाया था कि उन्हें इसके लिए राष्ट्रीय पुरस्कार तक मिला था।

निजी जीवन में भी अतुल कुलकर्णी काफी सेक्युलर विचार रखते हैं, इतना कि वे CAA के विरोध प्रदर्शन तक में शामिल हो आए थे। अब सोचिए, जब ऐसे लेखक आपके प्रोजेक्ट का हिस्सा हों, तो आपकी फिल्म कैसे बिना किसी एजेंडे के मनोरंजन की गारंटी दे सकती है?

जब ऐसे व्यक्ति कथाकार हों, और फॉरेस्ट गम्प जैसे महत्वपूर्ण फिल्म की पटकथा हाथ में हो, तो दो ही परिणाम हो सकते हैं – या तो फिल्म एक अनोखा मार्ग अपनाएगी, जैसे ‘दंगल’ में हुआ, या फिर ‘शिकारा’ जैसा परिणाम होगा, जहां लोग एजेंडावाद की अधपकी खिचड़ी से इतना तंग आ जाए कि फिल्म कब बॉक्स ऑफिस के समुद्र में डूब जाए, पता ही न चले। अब “लाल सिंह चड्ढा” का क्या परिणाम होगा ये तो प्रभु ही जाने, परंतु जिस परिपाटी पर आमिर खान चल रहे हैं, वह राजनीति से मुक्त रहे, ऐसा शायद ही होगा।

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