बिग टेक की एक पुरानी बीमारी है– दुनिया की कोई भी वस्तु को वह अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती आई है। इसके लिए वह किसी की भी संप्रभुता, चाहे वह किसी भी प्रकार की हो, उससे खिलवाड़ करने में उसे कोई समस्या नहीं है। परंतु जब बात वित्तीय अखंडता की हो, तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बी लाइक है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत वित्तीय तकनीक में एक अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर कर आया है। फिनटेक अडॉप्शन रेट भारत का विश्व में सर्वाधिक है, और यहाँ पर विश्व में कोने कोने से निवेश हो रहा है। स्टार्टअप की तो बात ही मत करिए। यहाँ पर तो भारत विश्व में वित्तीय परिप्रेक्ष्य से तीसरा सबसे बड़ा उद्योग बनके सामने आया है, और एशिया में चीन को मीलों पीछे छोड़ चुका है।
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परंतु ये संभव कैसे है?
असल में भारत में अभी भी सरकारी बैंकों का वित्तीय तकनीक पर वर्चस्व है, जिसके कारण भारतीय ग्राहक अब इनकी सेवाओं से तंग आने है। ऐसे में बिग टेक को अपने लिए यहाँ पर एक सुनहरा अवसर दिख रहा है, और आरबीआई को एक महासंकट।
महासंकट कैसे?
जब किसी भी क्षेत्र में बिग टेक घुस जाता है, तो आप भी जानते हैं कि वह उस क्षेत्र पर सम्पूर्ण नियंत्रण करके ही मानता है, और इस बात से आरबीआई अनभिज्ञ नहीं है। अब बिग टेक जैसे गूगल, एमेजॉन, वॉट्सएप इत्यादि चाहते हैं कि वे वित्तीय उपक्रम के मूल संस्थान जैसे लेनदेन, बीमा एवं निवेश में भी हाथ आजमाएँ।
ये बात कुछ लोगों को मज़ाक प्रतीत हो रही है, परंतु ये वास्तव में भारत की वित्तीय अखंडता एवं अक्षुण्णता के लिए बेहद चिंताजनक है। इसी की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए आरबीआई ने प्रस्ताव रखा है कि उन्हे एक ऐसा रेगुलेटरी फ्रेमवर्क तैयार करने की आवश्यकता है, जो न केवल फिनटेक में निरंतर इनोवेशन को बढ़ावा दे रहा है, परंतु बिग टेक की हेकड़ी को नियंत्रण में भी रखे।
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विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार
आरबीआई ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 में इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए बताया है कि फिनटेक क्षेत्र के बढ़ते प्रभाव के कारण ‘अब ये आवश्यक है कि हमें निरंतर नवीनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए, परंतु साथ ही में उन शक्तियों [बिग टेक] को भी नियंत्रण में रखना चाहिए जो वित्तीय सेवा को बाधा पहुंचा रहे हों’।
परंतु ये आज की बात नहीं है। आरबीआई बिग टेक की गतिविधियों पर पिछले काफी लंबे समय से नजर रखी हुई है। अप्रैल में ही आरबीआई ने भारत के वित्तीय क्षेत्र में कार्यरत बड़े टेक कंपनियों के दायित्व से संबंधित आवश्यक रेगुलेटर की बात पर जोर दिया। इसका मूल उद्देश्य यही है कि क्षेत्र बराबरी का रहे, जहां बिग टेक का भारतीय फिनटेक फर्म्स पर अनावश्यक लाभ के लिए कोई स्कोप न रहे। बिग टेक सोची थी कि दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत के संसाधनों पर भी वह नियंत्रण जमा लेगी। पर पहले इन्फॉर्मैशन तकनीक, और अब वित्तीय तकनीक के क्षेत्र जो पटखनी भारत दे रहा है, जल्द ही बिग टेक की हालत कुछ ऐसी हो जाएगी।
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