सीएम योगी ने सावरकर की ‘Two Nation Theory’ पर वाम उदारवादी एजेंडे को तोड़कर रख दिया

लिब्रान्डुओं भूलना मत- सावरकर माने त्याग!

CM Yogi

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सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तर्क, सावरकर माने तारुण्य, सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को सभी विपक्षियों को यह बात पुनः स्मरण करा दी जिसे वो भूलना पसंद करते आए हैं। सीएम योगी ने विपक्षियों को विनायक दामोदर सावरकर पर आधारित ‘वीर सावरकर-जो भारत का विभाजन रोक सकते थे और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टि’के लोकार्पण समारोह पर जमकर धोया क्योंकि विभाजन कराने वाले आज भी सावरकर को कोसते आए हैं कि सावरकर कितने बड़े देशद्रोही थे पर असल में सावरकर जैसा देशभक्त बनना कितना मुश्किल है यह योगी ने बताते हुए पूरे विपक्ष को आड़े हाथों लिया और सीएम योगी ने सावरकर के टू नेशन थ्योरी पर वाम उदारवादी एजेंडे को पल में ध्वस्त कर दिया।

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पुस्तक के हिंदी संस्करण का हुआ विमोचन

दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि अगर कांग्रेस ने विनायक दामोदर सावरकर की बात सुनी होती तो देश विभाजन की त्रासदी से बच जाता। मुख्यमंत्री ने सावरकर के जीवन पर आधारित एक पुस्तक के हिंदी संस्करण का विमोचन करते हुए यह टिप्पणी की। पुस्तक का शीर्षक था, ‘वीर सावरकर-जो भारत का विभाजन रोक सकते थे और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टि’जिसे मूलतः भारत के सूचना आयुक्त उदय माहुरकर ने लिखा है तो वहीं इसका हिंदी संपादन चिरायु पंडित ने किया है जिसका लोकार्पण बीते रविवार को लखनऊ में किया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की आजादी के बाद, कई दलों ने सावरकर की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना से करने की कोशिश की थी। सावरकर ने कहा था कि, उनकी दृष्टि “संपूर्ण भारत” (पूर्ण भारत) के लिए थी, जिन्ना के विचार “संकुचित” और “राष्ट्र तोड़ने वाले” थे। सावरकर ने कहा था कि जिन्ना केवल मुसलमान की बात करते हैं।” सीएम ने आगे कहा कि “सावरकर ने कहा था कि वह हिंदुओं पर लागू कानूनों को मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों पर भी लागू करने के पक्ष में हैं। सावरकर की प्रतिभा और कौशल को छिपाने के प्रयास पहले अंग्रेजों द्वारा और फिर स्वतंत्रता के बाद सीधे सत्ता पाने वालों द्वारा किए गए।”

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि, सावरकर को आजादी के बाद वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। उन्होंने सावरकर को “हिंदुत्व” शब्द का श्रेय दिया। सावरकर 20वीं सदी के महान नायक थे और उनकी तुलना में उस सदी में दुनिया में किसी का जन्म नहीं हुआ था। सावरकर से बड़ा “क्रांतिकारी, लेखक, कवि और दार्शनिक” कोई नहीं था, एक व्यक्ति के लिए इन सभी गुणों का होना असाधारण था और सावरकर में यह सभी एक साथ विद्यमान थे।

ज्ञात हो कि कांग्रेसियों द्वारा हमेशा सावरकर को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति रही है। विनायक दामोदर सावरकर ब्रिटिश साम्राज्य विरुद्ध मोर्चा संभालने वाले क्रांतिकारियों में शामिल थे। 1897 के बाद महाराष्ट्र में अंग्रेजों के विरुद्ध उत्पन्न हुए विद्रोह से वे भी काफी प्रभावित हुए, और इंग्लैंड में बैरिस्टर बनने के बाद भी उन्होंने भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र कराने के लिए अपना सर्वस्व अर्पण किया।

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झूठे केस के आधार पर आजीवन कारावास

वीर सावरकर को अंग्रेजों ने एक झूठे केस के आधार पर आजीवन कारावास के लिए अंडमान के कुख्यात सेल्यूलर जेल भेज दिया। उनके साथ  दस वर्षों तक काफी यातनाएं हुईं और अंत में एक एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत उन्हें और उनके बड़े भ्राता गणेश बाबाराव सावरकर को भारत भूमि में रत्नागिरी के जेल में स्थानांतरित किया गया।

परंतु इस एमनेस्टी ऑर्डर को नेहरू और गांधी समर्थकों ने हमेशा दया याचिका के नाम से संबोधित कर वीर सावरकर के विरुद्ध भ्रम का पहाड़ खड़ा कर दिया। चूंकि वीर सावरकर कई क्रांतिकारियों की भांति वामपंथी नहीं हुए, इसलिए उन्हें आजीवन गद्दार, चापलूस जैसे कई उपाधियों से अपमानित किया गया।

परंतु आज के समय की बात करें तो वीर सावरकर को भारत में उस दृष्टि से नहीं देखा जाता, जैसे वामपंथी चाहते थे। आज वीर सावरकर कई लोगों के लिए एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके साथ अन्याय हुआ था, तो वहीं कुछ लोगों के लिए वीर सावरकर किसी आदर्श से कम नहीं हैं। जैसे-जैसे भारत की स्वतंत्रता में उनकी भूमिका उभर रही है, वीर सावरकर भारत में एक आदर्श का रूप लेते जा रहे हैं, और यही बात वामपंथियों और कांग्रेसियों के हृदय में शूल की भांति चुभ रही है। ऐसे में  ‘वीर सावरकर-जो भारत का विभाजन रोक सकते थे और उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा दृष्टि’जैसी पुस्तकों का लोकार्पण जब स्वयं देश के सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री करें तो सावरकर के विरोधियों की हालत तंग होने के साथ ही कैसे वाम उदारवादी एजेंडा क्षणभर में टूट गया किसी को पता भी नहीं चला।

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