आपने जरूर सुना ही होगा कि हर श्रीराम के पीछे एक वशिष्ठ महाराज होते हैं, हर अर्जुन के पीछे द्रोणाचार्य होते हैं, हर चन्द्रगुप्त मौर्य के पीछे एक आचार्य चाणक्य होते हैं। ऐसे ही एक आचार्य थे, जिन्होंने न केवल एक युवा विद्यार्थी को धर्म का सन्मार्ग दिखाया, अपितु उन्हे भारतीय राजनीति का सबसे प्रभावशाली, और धर्मनिष्ठ शासकों में से एक बनाकर ही दम लिया। ये कथा है महंत अवैद्यनाथ की, जिनके कारण अजय मोहन बिष्ट आज गोरक्षनाथ पीठ के मठाधीश एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध हैं।
28 मई 1921 को कृपाल सिंह बिष्ट के नाम से महंत अवैद्यनाथ का जन्म हुआ था। इनका जन्म ग्राम काण्डी, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड में श्री राय सिंह बिष्ट के घर में हुआ था। हिमालय और कैलाश मानसरोवर की यात्रा और साधना से शैव धर्म से गहरे प्रभावित श्री महंत जी प्रथमत्या १९४० में अपनी बंगाल यात्रा के दौरान मेंमन सिंह (तत्कालीन बंगाल) में श्री निवृति नाथ जी के माध्यम से श्री दिग्विजय नाथ जी से मिले | ८ फ़रवरी १९४२ को आप गोरखपुर स्थित गोरक्षनाथपीठ के उत्तराधिकारी बन गए, एवं इस तरह मात्र २३ साल की अवस्था में श्री कृपाल सिंह बिष्ट से उन्होंने महंत अवैद्यनाथ का नाम धारण कर लिया।
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धर्मांतरण के प्रयास को रोका
परंतु एक सन्यासी का राजनीति से क्या लेना देना? मोह माया से विरक्ति तो एक सन्यासी का प्रथम कर्तव्य होता था। परंतु भारत के बदलते राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से महंत अवैद्यनाथ और उनके गुरु, महंत दिग्विजयनाथ अनभिज्ञ नहीं थे। वे जानते थे कि यदि उन्हे भारत भूमि को पुनः धर्म के मार्ग पर लाना है, तो उन्हे ऐसे युवा तैयार करने होंगे, जो शस्त्र और शास्त्र, दोनों से परिचित हों। रामनाथपुरम और मीनाक्षीपुरम में अनुसूचित जाति के लोगों के सामूहिक धर्मातरण की घटना से खासे आहत होते हुए महाराज जी ने राजनीति में पदार्पण किया। इस घटना का विस्तार उत्तर भारत में न हो, इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए और राजनीति में रहकर धर्मांतरण के कुटिल प्रयासों को असफल किया |
महंत अवैद्यनाथ ने 1962, 1967, 1974 व 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में मानीराम सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर से लोकसभा सदस्य रहे। ३४ वर्षों तक पहले हिन्दू महासभा और फिर भारतीय जनता पार्टी को अपना प्रचंड समर्थन देते हुए इन्होंने हिन्दुत्व की एक मजबूत नींव तैयार की।
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आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
इतना ही नहीं, श्री राम मंदिर आंदोलन को गति देने में इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। हिन्दू धर्म में ऊंच-नीच दूर करने के लिए उन्होंने लगातार सहभोज के आयोजन किए। परंतु महंत अवेद्यनाथ का सबसे बड़ा योगदान अजय मोहन बिष्ट जैसे वामपंथी व्यक्ति को धर्म के सन्मार्ग पर लाना। यदि आपको स्मरण न हो, तो योगी आदित्यनाथ का वास्तविक नाम अजय मोहन बिष्ट है, और अध्ययन के दिनों में उनका झुकाव वामपंथ की ओर था। परंतु वे जल्द ही महंत अवैद्यनाथ की शरण में आए, जिन्होंने न केवल उन्हें गोरक्षपीठ का न सिर्फ उत्तराधिकारी बनाया, अपितु उन्हे एक प्रभावशाली राजनेता के रूप में भी तैयार किया, जिसे अपनी संस्कृति पर तनिक भी लज्जा न हो।
1998 में मात्र 26 वर्ष की आयु में योगी आदित्यनाथ को 1998 में सबसे कम उम्र का सांसद बनने का गौरव प्रदान किया। बाद में योगी आदित्यनाथ ने हिन्दू युवा वाहिनी का गठन किया जो हिन्दू युवाओं को धार्मिक बनाने के लिए प्रेरणा देती है। 7 सितंबर 2008 को सांसद योगी आदित्यनाथ पर आजमगढ़ में जानलेवा हिंसक हमला हुआ था। इस हमले में वे बाल-बाल बच गए थे। यदि आज योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को धार्मिक पुनरुत्थान के मार्ग पर ले जा रहे हैं, यदि आज योगी आदित्यनाथ को भारत के सबसे प्रभावशाली धार्मिक राजनीतिज्ञों में से एक के रूप में देखा जाता है, तो उसके पीछे केवल एक व्यक्ति की देन है – महंत अवैद्यनाथ।
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