महाराष्ट्र में किसान ऐसे आत्महत्या कर रहे हैं जैसे कोई उम्मीद ही न बची हो

राज्य की तुच्छ राजनीति की बलि चढ़ रहे हैं किसान!

Maharashtra

Source- TFI

महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या का मुद्दा राज्य की पहचान के साथ जुड़ गया है और इसे सुलझाने के लिए हो रहे प्रयास अपर्याप्त हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में 1 जनवरी से 30 नवंबर, 2021 तक 2,489 किसान आत्महत्याएं और 2020 में 2,547 किसान आत्महत्याएं दर्ज की गई, दोनों वर्षों के दौरान राज्य के विदर्भ क्षेत्र से 50 फीसदी से अधिक मौतें हुई। RTI कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, राज्य ने वर्ष 2020 में 2,547 किसान आत्महत्याएं दर्ज की। इसमें से 1,206 मौतें सहायता के लिए पात्र थी। इन लोगों को तो राज्य सरकार ने सहायता प्रदान की, किंतु 799 को अपात्र घोषित किया गया। अर्थात् लगभग 800 किसानों ने आत्महत्या भी कर ली और उनके परिवार को सरकार द्वारा कोई सहयोग भी प्रदान नहीं किया गया।

रिपोर्ट के अनुसार राज्य के पूरे मराठवाड़ा क्षेत्र को कवर करने वाले औरंगाबाद डिवीजन ने वर्ष 2021 में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या में वृद्धि देखी है, यहां किसानों की आत्महत्या के आंकड़े 2020 में 773 से बढ़कर 804 हो गए। पूर्वी विदर्भ को भी कवर करने वाले नागपुर डिवीजन में भी वृद्धि देखी गई है। यहां वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वालों की संख्या 309 रही, जो 2020 में 269 थी। पश्चिमी विदर्भ क्षेत्र को कवर करने वाले अमरावती डिवीजन ने दोनों वर्षों में सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं दर्ज की है। वर्ष 2020 में यहां कुल 1128 मौतें दर्ज की गई, जबकि नवंबर 2021 में यह संख्या 1,056 रही। यहां किसानों की मृत्य में नाममात्र का अंतर आया है। दोनों वर्षों के दौरान कोंकण संभाग में शून्य मृत्यु दर्ज की गई है। पुणे और नासिक डिवीजनों में, जो क्रमशः पश्चिमी और उत्तरी महाराष्ट्र क्षेत्रों को कवर करते हैं, यह आंकड़ा वर्ष 2020 में क्रमश: 26 और 351 रहें, जबकि वर्ष 2021 में 13 और 307 रहें।

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फडणवीस सरकार ने किए थे युद्ध स्तर पर प्रयास

Kermanshah University of Medical Sciences द्वारा जारी एक शोधपत्र के अनुसार, “किसानों ने कर्ज, व्यसन, पर्यावरणीय समस्याओं, कृषि उपज की खराब कीमतों, तनाव और पारिवारिक जिम्मेदारियों, सरकारी उदासीनता, खराब सिंचाई व्यवस्था, खेती की बढ़ी हुई लागत, निजी साहूकारों, रासायनिक उर्वरकों के उपयोग और फसल की विफलता को किसानों की आत्महत्या के कारणों के रूप में माना।” पूर्ववर्ती फड़णवीस सरकार में भी किसानों की आत्महत्या कम नहीं हो पाई थी किन्तु सरकार ने इस संदर्भ में रचनात्मक बदलाव करने शुरू कर दिए थे। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या सूखा की है। सिंचाई व्यवस्था के विकास हेतु फड़णवीस सरकार में स्टेट इरीगेशन कॉरपोरेशन को केंद्र की ओर से सीधे फंड आवंटन के लिए नए नियम बनाए गए।

नए सुधारों के बाद प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना द्वारा सीधे डिविजनल इरिगेशन कॉरपोरेशन को फंडिंग की सुविधा प्राप्त हुई। गोसेखुर्द, बेमब्ला और लोअर वर्धा में लंबे समय से अटके 3 बड़े प्रोजेक्ट पूरे हुए। गोसेखुर्द प्रोजेक्ट राजीव गांधी द्वारा सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) में शुरू किया गया था और यह तब से अटका हुआ था। बेमब्ला प्रोजेक्ट 1992 और लोअर वर्धा प्रोजेक्ट 1981 से अटका हुआ था। फडणवीस सरकार ने वार रूम स्थापित करके इन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए। अकेले गोसेखुर्द प्रोजेक्ट के कारण ही 2,50,800 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई व्यवस्था से जोड़ा गया। इसके अतिरिक्त एक्सप्रेस-वे तथा अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू हुए। किसानों की कर्जमाफी हुई।

उद्धव ने स्थगित कर दी फडणवीस की सारी योजनाएं

लेकिन इसके इतर उद्धव सरकार ने अपने कार्यकाल के शुरूआत में ही फडणवीस सरकार पर यह आरोप लगाते हुए उनकी सारी योजनाएं स्थगित कर दी कि उनके कार्यकाल में किसानों की आत्महत्या नहीं रूकी। उद्धव सरकार ने नए सिरे से कार्य शुरू किया किन्तु वह अभी तक असफल रहे हैं। वस्तुतः देखा जाए तो उद्धव सरकार का उद्देश्य किसानों की कर्ज माफी को लागू करना था जबकि कई रिपोर्ट यह बता चुकी है कि केवल कर्जमाफी विदर्भ की समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि कृषि में ढांचागत बदलाव ही एकमात्र रास्ता है। अच्छा होता यदि उन्होंने फड़णवीस सरकार में शुरू हुए ढांचागत बदलावों को आगे बढ़ाया होता। किन्तु ऐसा हुआ नहीं। तुच्छ राजनीति हावी रही और विदर्भ में किसानों की आत्महत्या रोकने में उद्धव ठाकरे अभी भी असफल ही हैं।

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