भारत ने बनाया अपना पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत

दुश्मनो के लिए यह एक बड़ी मुसीबत!

IANS VIKRANT

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कोच्चि शिपयार्ड लिमिटेड भारत को उसके प्रथम स्वदेशी एयर क्राफ्ट कैरियर का हस्तांतरण अगले महीने करेगा। इस इंडिजिनियस एयर क्राफ्ट कैरियर ‛IAC’ को अगले महीने भारतीय नौसेना को सौंप दिया जाएगा और इसका नामकरण ‛आई एन एस विक्रांत’ के रूप में होगा। समुद्र में इसके अंतिम कुछ ट्रायल अगले एक-दो सप्ताह में पूरे हो जाएंगे। कोच्चि शिपयार्ड के तकनीकी निदेशक बेजोय भास्कर ने मीडिया से बताया “अंतिम समुद्री परीक्षण इस महीने के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन इसमें थोड़ी देरी हुई। हम अगले महीने आईएसी को भारतीय नौसेना को सौंप देंगे जिसके बाद जहाज आईएनएस विक्रांत का नाम लेगा। भारत का पहला विमानवाहक पोत इस साल अगस्त में स्वतंत्रता दिवस पर चालू किया जाएगा।”

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IAC विक्रांत एक तैरता द्वीप

इस एयर क्राफ्ट कैरियर का विमान और क्रू सहित वजन 45000 टन है और यह 262 मीटर लंबा है। इस पर 36 से 40 एयर क्राफ्ट रखे जा सकते है। इस पर एक बार में दो फाइटर प्लेन टेकऑफ कर सकते हैं। वाजपेयी सरकार में तत्कालिक रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस ने INS विक्रांत नाम के एयर डिफेंस शिप के निर्माण के लिए डिजाइन बनाने का आदेश दिया था। इसके बाद एक ऐसे एयर डिफेंस शिप को बनाने का कार्य शुरू हुआ जो अधिक संख्या में आधुनिक लड़ाकू विमानों को ले जा सके। 2001 में कोच्चिशिपयार्ड इसके मॉडल डिजाइन के साथ सामने आया।

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आत्मनिर्भर की ओर एक और कदम

2004 में इसे बनाने का अधिकारिक आदेश दिया गया था और 18 वर्ष में यह बनकर तैयार हो गया है। किसी देश द्वारा अपने बल पर एक एयर क्राफ्ट कैरियर बनाने के संदर्भ में यह समयांतराल ठीक ही है। एयर क्राफ्ट कैरियर को बनाने में कुल 23000 करोड़ रुपए का खर्च आया है। इन 18 वर्षों के कार्य ने कोच्चिशिपयार्ड को नए और आधुनिक एयर प्राप्त कैरियर बनाने का अनुभव दिया है। बेजोय भास्कर ने कहा है “हमने आईएसी परियोजना में अनुभव प्राप्त किया है। अगर भारतीय नौसेना हमें आईएनएस विक्रांत की तरह 45,000 टन श्रेणी का एक और विमानवाहक पोत लाने के लिए कहती है, तो हम इसे पांच साल में कर सकते हैं। IAC वाहक से विमान को लॉन्च करने के लिए स्की-जंप तकनीक का उपयोग करता है। हम ऐसे एयर क्राफ्ट कैरियर भी बना सकते हैं जो यूएसनेवी के एयर क्राफ्ट कैरियर्स में अपनाए गए इलेक्ट्रो मैग्नेटिक एयर क्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (EMALS) का इस्तेमाल करते हैं। इसी तरह हम यहां अपने ड्राईडॉक की क्षमता का विस्तार कर रहे हैं और अभी हम 70,000 टन तक का एयर क्राफ्ट कैरियर बना सकते हैं। हम यहां जैक-अपरिग और एलएनजी जहाजों का निर्माण भी कर सकते हैं।”

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वर्तमान समय में भारत संपूर्ण हिंद महासागर से लेकर प्रशांत महासागर के क्षेत्र में विशेष रूप से दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र में ‛नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर’ की भूमिका निभाने के लिए प्रयास कर रहा है। इस क्षेत्र में दबदबे के लिए चीन और भारत आपस में संघर्षरत हैं। चीन के पास वर्तमान में 2 एयर क्राफ्ट कैरियर है और तीसरा एयर क्राफ्ट कैरियर जल्द ही चीनी नौसेना का हिस्सा होगा। इसका ‛डिस्प्लेसमेंट वेट’ 85 हजार से 1 लाख टन होगा। ऐसे में भारत को जल्द ही तीसरे एयर क्राफ्ट कैरियर के निर्माण पर कार्य शुरू करना चाहिए और प्रयास करना चाहिए कि भारत ही सुपर एयर क्राफ्ट कैरियर श्रेणी का विमानवाहक पोत बनाए।

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