श्रीलंका को आर्थिक संकट से बचाना केवल भाईचारा मात्र नहीं है, भारत के पास है ‘long term strategy

इकलौता भारत ही है जो श्रीलंका को संवार सकता है!

modi ji srilanka

source- TFI POST

श्रीलंका इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकटों से गुज़र रहा है। ऐसे में भारत ने जनवरी 2022 से मुद्रा की अदला-बदली, आवश्यक वस्तुओं के लिए क्रेडिट लाइन और ऋण की अदायगी के माध्यम से लगभग 3 बिलियन डॉलर की नकदी संकटग्रस्त श्रीलंका के लिए बढ़ा दी है।भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ $400 मिलियन की मुद्रा अदला-बदली को 18 अप्रैल से तीन महीने के लिए बढ़ा दिया गया। आवश्यक आयात के लिए एक अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन चालू है और इसके तहत अब तक लगभग 16,000 मीट्रिक टन चावल की आपूर्ति की जा चुकी है। भारत ने श्रीलंका को एशियाई समाशोधन संघ के तहत कुल एक अरब डॉलर के ऋण की अदायगी टालने में मदद की है। इसके अलावा, 500 मिलियन डॉलर की क्रेडिट सुविधा के माध्यम से श्रीलंका को 400,000 मीट्रिक टन ईंधन वितरित किया गया है।

और पढ़ें:- राजीव गांधी की हत्या के बाद से ही टूट गया था श्रीलंकाई तमिलों से नाता, अब पीएम मोदी इसे संवार रहे हैं

कोलंबो में भारतीय उच्चायोग ने कहा- “भारत द्वारा प्रदान की जाने वाली बहु-आयामी सहायता इस बात की गवाही देती है कि भारत सरकार श्रीलंका के लोगों के कल्याण से जुड़ी है। यह मदद ‘पड़ोसी पहले’ और S.A.G.A.R (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के जुड़वां सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।” पर, सबसे प्रमुख प्रश्न ये हैं की आखिरकार जब सारे राष्ट्रों ने श्रीलंका को उसी के हाल पर छोड़ दिया तब भारत उसकी इतनी मदद क्यों कर रहा है यह जानते हुए भी की श्रीलंका एक दिवालिया राष्ट्र बनने के करीब है?

वैसे तो इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं लेकिन हम अपने पाठकों का ध्यान कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामरिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक कारणों से अवगत कराएँगे जिसके कारण भारत श्रीलंका की मदद कर रहा है।

सामरिक कारण

श्रीलंका ने भारत को घेरने के लिए स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स नामक सामरिक रणनीति का आरम्भ किया और इस नीति के तहत चीन भारत और हिन्द महासागर से जुड़े सभी राष्ट्रों में अपनी आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य उपस्थिति को मजबूत करते हुए उन देशों को भारत से दूर करना चाहता है। इसी उद्देश्य से उसने श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और मालदीव जैसे राष्ट्रों को अपने करजाल में फंसाया और उनके संप्रभुता को अपने अधीन करने की सोंची। अब अगर भारत श्रीलंका को आर्थिक सहायता मुहैया कराकर इस चक्रयुह से निकाल लेता है या फिर निकालने में मदद करता है तो यह ना सिर्फ चीन के “स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स” नीति को ध्वस्त कर देगी बल्कि भारत के सुरक्षा कारणों के लिए भी उपयुक्त है।

और पढ़ें:- श्रीलंका-चीन प्रकरण से सीख- पड़ोसी देश भारत के साथ रहेंगे तो बचेंगे वरना कुचल दिए जाएंगे

सांस्कृतिक कारण

श्रीलंका और भारत एक दूसरे से सांस्कृतिक पहलू पर इस तरह से गुंथे हुए हैं जैसे एक जिस्म दो जान हो। राम की कहानी लंका के बिना अधूरी है और लंका की जानकी और रावण के बिना इतना ही नहीं तमिल संस्कृति भी श्रीलंका राष्ट्र का अभिन्न अंग है और रही बात बौद्ध धर्म की तो उसका उद्गम स्थल ही भारत है। अतः भारत से प्राप्त आर्थिक मदद ना सिर्फ साम्यवादी संस्कृति से श्रीलंका को दूर रखेगा बल्कि एक दूसरे के सांस्कृतिक जुड़ाव को भी अक्षुण रखेगा।

रणनीतिक कारण

भारत की भौगोलिक और रणनीतिक लिहाज से भी श्रीलंका अत्यंत महत्वपूर्ण देश बन जाता है। भारत की यह आर्थिक मदद श्रीलंका और उसके पोर्ट से चीन को दूर रखेगी। वैसे भी कोई देश नहीं चाहेगा की उसका दुश्मन देश उसके दरवाज़े पर आकर षड्यंत्र करे। इसी के कारण रूस, नाटो और युक्रेन विवाद हुआ और इसी के कारण चीन से हमारा युद्ध है। भारत की श्रीलंका को मदद चीन को हिन्द महासागर से दूर रखेगा और रणनीतिक रूप से भारत को मजबूत करेगा।

वैसे तो इस आर्थिक संकट के लिए श्रीलंका की जनता वहां के राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को दोष दे रही है। पर, हमें यह भी समझना होगा की एक लोकतान्त्रिक पद्दति में नेता ही देश को चलाते हैं। श्रीलंका में राजपक्षे परिवार बहुत ही शक्तिशाली है। चीन के चंगुल में श्रीलंका को इसी राजनीतिक परिवार ने पहुँचाया था। अब जब भारत श्रीलंका को उसके सबसे कठिन समय में मदद कर रहा है तब ये बात निश्चित हो जाती है की भारत का रसूख वहां के राजनीतिक हलकों में बढ़ेगी ही। पहले जो भारत वहां पर राजनीतिक अस्थिरता लाने के लिए दोषी माना जाता था अब वही भारत वहां का तारनहार बनेगा।

और पढ़ें: चीन ने राजपक्षे का उपयोग करके श्रीलंका में पैदा किया आर्थिक संकट, कैसे भारत ने किया इसे बेअसर

भारत ने श्रीलंका की मदद करके ना सिर्फ अपना पडोसी धर्म निभाया है बल्कि सहयोग और अंतररष्ट्रीय समन्वय की मिसाल भी पेश की है। और सबसे बड़ी बात इस मदद से मजबूत होगा भारत का राष्ट्रहित।

 

Exit mobile version