आत्ममुग्धता में जवाहरलाल नेहरू को नया प्रतिद्वंदी मिला है – ममता बनर्जी

सत्ता के नशे में अंधी हो गई हैं ममता !

mamta jawahar

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“आज से मैं तुम सब का सर्वशक्तिशाली इकलौता भगवान हूँ!”

सेक्रेड गेम्स का यह संवाद केवल एक संवाद नहीं, कुछ लोगों की मानसिकता का भी परिचायक है, जिनके लिए एक ही वाक्य सार्थक है – हम ही हम है, बाकी सब पानी कम है। अब तक ये उपाधि निर्विरोध रूप से भारत में केवल जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त थी, लेकिन अब लगता है कि उन्हे एक व्यक्ति से जबरदस्त टक्कर मिलने वाली है। ममता बनर्जी अपनी प्रशंसा करने और कराने में जवाहरलाल नेहरू तक को टक्कर दे रही हैं, और आवश्यकता पड़ने पर उन्हे भी पीछे छोड़ सकती है।

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बंगाल की वर्तमान सरकार अपने शासन के लिए कम, और अपने कुशासन के लिए अधिक चर्चा में रहती है। ऐसे में बांग्ला साहित्य अकादमी कैसे इस असर से बचा रहता? रबीन्द्र जयंती यानि रबीन्द्र नाथ टैगोर के जन्मदिन के अवसर पर ममता बनर्जी को बांग्ला साहित्य अकादमी ने ‘साहित्यिक प्रतिभा’ के लिए बांग्ला साहित्य अकादमी पुरस्कार ममता बनर्जी को उनकी कविता संग्रह ‘कोबिता बिटान’ के लिए दिया, जिसमें लगभग 950 कविताएँ संकलित हैं–

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नेहरू जी को पीछे छोड़ा

ममता बनर्जी को ममता बनर्जी की कविता संकलन के लिए ममता बनर्जी की सरकार ने पुरस्कृत किया है। परंतु ममता दीदी में ये ऐसा प्रथम अवसर नहीं है, जब इन्होंने अपने गुणगान का ऐसा ढिंढोरा पिटवाया। अपने आप को चाचा नेहरू के रूप में चित्रित करने को आतुर ममता बनर्जी ने एक विशेष हेल्पलाइन चलाई, जिसका नाम था ‘दीदी के होलो’ यानि ‘दीदी को बोलो’, क्योंकि जैसे बच्चों के लिए जैसे कभी चाचा नेहरू थे, वैसे ही ममता अपने आप को बंगाल में ममता दीदी बनवाना चाहती है, भले कोई या नहीं। ये और बात है कि इस पर वास्तविक शिकायतें करने वालों को ही मार पिटाई का सामना करना पड़ा, जिसे ममता की मित्र मीडिया तक नहीं छुपा पाई।

ममता बनर्जी तो कुछ मामलों में जवाहरलाल नेहरू से भी आगे निकल चुकी हैं। माना कि जवाहरलाल नेहरू सत्ता के लिए लालायित थे, माना कि उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए इसका खूब दुरुपयोग किया, और स्वयं को भारत रत्न तक दिलवाया, परंतु कम से कम अपने आप को कम से कम देवता का दर्जा तो बिल्कुल नहीं दिया। लेकिन ममता बनर्जी न केवल बंगाल में दुर्गा पूजा पंडालों में देवी माँ के स्थान पर अपनी ही मूर्तियाँ बनवा रही है, अपितु उसका लेशमात्र भी विरोध नहीं कर रही है, ‘अहम ब्रह्मास्मि’ को इतना सीरियसली तो स्वयं नेहरू ने भी नहीं लिया होगा।

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सच बोलें तो ममता बनर्जी ने अपने आप को पुरस्कृत करवाकर एक बार फिर सिद्ध किया कि वह अपने घमंड की पूर्ति के लिए किस हद तक तक जा सकती है। एक समय यह उपाधि केवल जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त थी, और कुछ हद तक इंदिरा गांधी को, परंतु अब दोनों को ही ममता मीलों पीछे छोड़ने की होड़ में है, क्योंकि सत्ता का नशा ही ऐसा होता है बंधु, अच्छे से अच्छे राजनेता को भी बिगाड़ के रख देता है।

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