आर्थिक मोर्चे पर केरल की वामपंथी सरकार हो गयी है फुस्स

केरल दिवालिया घोषित!

PinarayiVijayan

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देश में वामपंथियों का गढ़ अगर किसी राज्य को कहा जाए तो वह है केरल। केरल देश का वो भाग है जहां वामपंथियों की अनैतिक मानसिकता ने वहां के आमजनमानस को बहुत हानि पहुंचाया है। शिक्षित प्रदेश होने का एकतरफा प्रचार दिखाकर केरल की वामपंथी सरकारों ने केरल को दिवालिया कर दिया है। केरल की वामपंथी सरकार हमेशा से अपनी उन्मादी सोच और तानाशाही रवैये के लिए बदनाम रही है और इस बार तो केरल अपने आर्थिक संकट से जूझने को लेकर चर्चाओं में हैं।

केरल गंभीर आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है

इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे हर मामले में बेहतर होने की डिंगें हाकने वाली केरल सरकार की हवाइयां उड़ गयी है और कैसे आर्थिक मोर्चे पर यहां की वामपंथी सरकार फुस हो गयी है। दरअसल, केरल राज्य की आर्थिक स्थिति पर मातृभूमि में छपे एक लेख में कहा गया है कि केरल एक गंभीर आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है और इससे राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन में भी कमी आ सकती है। इस रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि कर्मचारियों के वेतन में 10 फीसदी की कटौती हो सकती है जिस पर वित्त विभाग विचार कर रहा है। हालांकि, वित्त मंत्री केएन बालगोपाल ने कहा कि वेतन टालने का ऐसा कोई प्रस्ताव फिलहाल विचाराधीन नहीं है। वहीं कुछ प्रतिबंधात्मक उपायों की घोषणा की गई है।

आपको बता दें कि पिछले साल ही, 25 लाख रुपये से अधिक के ट्रेजरी बिलों को वापस लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अब राज्य सरकार चल रहे आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए और अधिक प्रतिबंध लगाने पर विचार कर सकती है।

केरल सरकार की लोकलुभावन नीतियों और मुफ्त उपहारों के साथ-साथ व्यवसायों और उद्यमियों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण वातावरण के कारण केरल को आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ रही है। केरल की वामपंथी सरकार केंद्र से उधार चाहती है परंतु उधार की गणना को लेकर केरल सरकार को केंद्र के साथ एक विवादास्पद असहमति का भी सामना करना पड़ रहा है।

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प्रश्न उठता है कि समस्या क्या है?

केंद्र ने चालू वित्त वर्ष के लिए केरल के लिए अधिकतम उधार सीमा 32,425 करोड़ रुपये निर्धारित की थी। आमतौर पर राज्य सरकार केंद्रीय वित्त मंत्रालय से औपचारिक अनुरोध करने के बाद अपनी जरूरतों के अनुसार स्टॉक बिक्री के माध्यम से पैसा उधार लेती है। हालांकि, केंद्र ने अभी तक इस साल के ऋण के लिए अनुमति नहीं दी थी और इस तथ्य का हवाला दिया कि केरल ने पिछले साल किफबी सहित संस्थानों के माध्यम से जितना उधार मिलना चाहिए था, उससे अधिक उधार ले लिया था। पहली बार, केंद्रीय मंत्रालय ने राज्यों द्वारा साझा किए गए उधार विवरण और उनके वास्तविक उधार में बेमेल होने के कारण केरल सहित कई राज्यों के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। केंद्र ने अप्रैल और मई में राज्य की उधारी योजनाओं को पलट दिया। सूत्रों ने कहा कि केंद्र ने हाल के दिनों में केरल को कम से कम तीन पत्र लिखकर अपने खातों में बेमेल के लिए स्पष्टीकरण मांगा था।

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केरल में आर्थिक परेशानी झेलते KSRTC के कर्मचारी

दरअसल, KSRTC यानी केरल राज्य सड़क परिवहन निगम के कर्मचारी पहले से ही वित्तीय परेशानी का सामना कर रहे हैं। वे पिनाराई विजयन सरकार के समय पर वेतन नहीं देने का विरोध कर रहे हैं। राज्य ट्रांसपोर्टर गहरे वित्तीय संकट में है और इसलिए ट्रेड यूनियनों ने वेतन वितरण में देरी के लिए सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है। KSRTC ने अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए राज्य सरकार से धन की मांग की है। हालांकि, राज्य सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार करने के खिलाफ एक स्टैंड अपनाया है। KSRTC के कर्मचारी द्वारा विरोध राज्य में गंभीर वित्तीय संकट को दर्शाता है क्योंकि केरल सरकार ने KSRTC के कर्मचारियों को पैसे देने को लेकर हांथ खड़े कर लिए हैं।

बहरहाल, केरल में चल रहा वित्तीय संकट कम्युनिस्ट सरकार की विफल आर्थिक नीतियों का प्रतीक है। यह इस बात का भी संकेत है कि हर बार कम्युनिस्टों के प्रभावशाली होने पर आर्थिक संकट कैसे हावी हो जाता है। अब तो यह साफ हो गया है कि केरल की वामपंथी सरकार को अपने राज्य के लोगों की कोई चिंता नहीं है। पहले राज्य के लोगों पर आर्थिक बोझ बढ़ा देना फिर केंद्र सरकार से भीख मांगना केरल सरकार की लाचारी दिखाता है।

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