पंचायत वेब सीरीज़ में ‘शुक्ला’, ‘दुबे’, ‘त्रिपाठी’ हैं, इससे लिबरल गैंग को मिर्ची क्यों लग रही है?

मेरे लिब्रांडुओं, कुछ तो शर्म करो- कब तक जाति-जाति करते रहोगे?

panchayt

Source- TFIPOST.in

आपको द्वेष दृष्टि से काम करने वाले तत्व समाज में अक्सर दिख जाते हैं। इन्हीं में सबसे बड़े विद्रोही वो बन जाते हैं जिनके निशाने पर एक ही जाति होती है। अब सामाजिक जीवन में प्रासंगिक रूप से कोई मुद्दा नहीं मिल रहा तो ये तत्व अब काल्पनिक तथ्यों पर ब्राह्मणवाद का आरोप मढ़ अपना एजेंडा चलाना चाह रहे हैं। हालिया उदाहरण है वेब सीरीज़ पंचायत के दूसरे संस्करण की जिसमें पात्रों के नाम को लेकर एक नई भिड़ंत छिड़ गई है। इसका जिम्मा इस लिबरल गुट ने लिया है जो ब्राह्मणों को देश के विनाशक तत्व के रूप में संदर्भित करते आए हैं।

दरअसल, पंचायत की दोनों सीरीज़ में प्रत्येक एपिसोड की शुरुआत में, आप स्थानीय सरकारी कार्यालय के बाहर अधिकारियों के नाम बताते हुए एक बोर्ड दिखाई देता है जिसमें उपनाम दुबे, त्रिपाठी और शुक्ला प्रदर्शित होते हैं, अर्थात सभी ब्राह्मण। हर एपिसोड में ब्राह्मण उपनाम से जुड़े किरदार विद्यमान है। इसलिए, अब लिबरल और ब्राह्मण विरोधी गुट का समूह एक्टिव हो गया है कि कैसे भी करके पंचायत की आड़ में ब्राह्मणों को खरी-खोटी सुना सके। इस संबंध में, सीरीज़ काफी विविध है। पर लिबरल गुट को बस हर स्तर पर ब्राह्मणों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करने की छूट दी है यही दिखाई दे रहा हो।

और पढ़ें- अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने इस्लामोफोबिया के फर्जी आरोप में ‘ब्राह्मण छात्र’ को सस्पेंड किया

सनातन धर्म को पचा नही पा रहे है

यूँ यो सनातन धर्म में ब्राह्मण की पूजा करने का विधान है और कई प्रसंगों में ब्राह्मण भोज, पूजा आदि का आयोजन किया जाता है, लेकिन इसके शास्त्रीय कारणों को यही लिबरल समूह सवालों के घेरे में खड़ा कर देते हैं। शास्त्रो में इन्हे सबसे श्रेष्ठ बतलाया गया है और लिबरलों के समूह यही पचाने में असहज महसूस करते हैं। शास्त्रों में बताई गयी विधि से ही धर्म, अर्थ, कर्म, मोक्ष चारों की सिद्धी मानी गयी है। इनका महत्व बतलाते हुए शास्त्र में कहा गया है:

ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य: क्रतः।

ऊरु तदस्य यद्वैश्य पदाभ्यां शूद्रो अजायत ।। (यजुर्वेद ३१ । ११)

‘श्री भगवान के मुख से ब्राह्मण की, बाहू से क्षत्रिय की, उरु से वैश्य की और चरणों से शुद्र की उत्पति हुई है ।’

‘उत्तम अंग से (अर्थात भगवान के श्री मुख से) उत्पन्न होने तथा सबसे पहले उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से ब्राह्मण इस जगत का धर्म स्वामी होता है। ब्रह्मा ने तप करके हव्य-कव्य पहुँचाने के लिए और सम्पूर्ण जगत की रक्षा के लिए अपने मुख से सबसे पहले इन्हे उत्पन्न किया।’

और पढ़ें- ब्राह्मण कौन है? और सनातन धर्म में ब्राह्मण का क्या महत्त्व है

शास्त्रों में कहा गया है कि ‘जाति की श्रेष्ठता से, उत्पत्ति स्थान की श्रेष्ठता से, वेद के पढ़ने-पढ़ाने आदि नियमों को धारण करने से तथा संस्कार की विशेषता से ये सब वर्णों का प्रभु है। इन सभी बातों को मानना एक समूह के लिए बड़ा मुश्किल है और वो है दिलीप मंडल जैसे तथाकथित समाज के सुधारक और चिंतक।

Exit mobile version