कश्मीर घाटी के हिंदुओं, जिनमें से अधिकांश कश्मीरी पंडित थे, जिनको 1989 के अंत और 1990 की शुरुआत में जेकेएलएफ और इस्लामी विद्रोहियों द्वारा लक्षित किए जाने के परिणामस्वरूप कश्मीर घाटी से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीरी पंडितों को कश्मीरी मुसलमानों ने निशाना बनाया। विभिन्न क्षेत्रों में कई घटनाएं हुईं जहां कश्मीरी हिंदू मारे गए और उनकी संपत्तियों और मंदिरों को क्षतिग्रस्त या नष्ट कर दिया गया। आपको बतादें की भारत सरकार के अनुसार, कुछ सिख परिवारों सहित 62,000 से अधिक परिवार कश्मीरी शरणार्थियों के रूप में पंजीकृत हैं। अधिकांश परिवार जम्मू, दिल्ली के आसपास के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और अन्य पड़ोसी राज्यों में बस गए थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है की अपने देश के रहने वाले हिन्दुओं को अपने ही देश में शरणार्थी बन कर रहना पड़ा।
जब देश में मोदी सरकार ने सत्ता संभाला था तो उसके बाद सबसे बड़ा कार्य आर्टिकल 370 को निरस्त कर कश्मीरी पंडितों को बहुत बड़ा तोहफा दिया था। लेकिन यह दुख की बात है की आज भी कश्मीरी पंडितों पर जुल्म किया जा रहा है। दरअसल एक बार फिर कश्मीर में कश्मीरी पंडित की हत्या की खबर ने पूरे देश में बवाल मचा दिया। दरअसल जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने बडगाम के चदूरा में राहुल भट्ट नाम के एक युवा कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी है।
12 मई गुरुवार को हुई इस घटना में दो इस्लामिक आतंकियों ने राहुल भट्ट पर गोलियां चलाईं, जो तहसीलदार के कार्यालय में क्लर्क थे। कथित तौर पर, युवक चदूरा इलाके में अपने कार्यालय में काम कर रहा था, तभी आतंकवादियों ने घुसकर उस पर पॉइंट-ब्लैंक रेंज पर गोलियां चला दीं। भट्ट गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें श्रीनगर के एक अस्पताल ले जाया गया, जहां थोड़ी देर बाद उनकी मृत्यु हो गई।
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राहुल भट्ट की मौत के खिलाफ सड़को पर उतरे कश्मीरी पंडित
बडगाम के चदूरा में इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या के एक दिन बाद घाटी में रोष फैल गया। जहां सैकड़ों कश्मीरी हिंदू भट्ट की निर्मम हत्या के विरोध में सड़कों पर उतरे हैं, वहीं रिपोर्टों से पता चलता है कि कश्मीर में प्रधानमंत्री के रोजगार पैकेज के तहत काम करने वाले लगभग 350 सरकारी कर्मचारियों ने सामूहिक रूप से अपना इस्तीफा सौंप दिया है। जम्मू-कश्मीर में शुक्रवार को सड़कों पर फैल गए एक साथी सहयोगी की हत्या पर आक्रोश, कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित नहीं करने पर सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी।
जम्मू के घंटा घर, लाल चौक (श्रीनगर), वेसु, अनंतनाग (दक्षिण कश्मीर), शेखपोरा बडगाम (मध्य कश्मीर) और रूप नगर, बंटलाब और कुछ अन्य क्षेत्रों से विरोध प्रदर्शन की सूचना मिली। इन सरकारी कर्मचारियों ने कथित तौर पर अपना इस्तीफा उप राज्यपाल मनोज सिन्हा को भेज दिया है। इसकी एक प्रति गृह मंत्रालय (एमएचए) को भी भेजी गई है। पत्र में कर्मचारियों ने कहा कि वे केपी सरकार के कर्मचारी राहुल भट्ट की इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा हत्या के बाद खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मिलने में असमर्थ होने के बाद श्रीनगर हवाई अड्डे की ओर मार्च कर रहे आंदोलनकारी सरकारी कर्मचारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। उपराज्यपाल के कार्यालय ने ट्वीट किया कि सिन्हा ने केपी के दिवंगत सरकारी कर्मचारी राहुल भट्ट के परिजनों से मुलाकात की और उनके परिवार को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया.
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पुलिस ने अपनी कार्रवाई का बचाव करते हुए
ऐसे इनपुट थे कि आतंकवादी सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए प्रदर्शनकारियों पर हमला कर सकते हैं। सरकार विरोधी नारे लगाते हुए शेखपोरा बडगाम में प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वे पिछले एक साल से कश्मीर पंडितों पर चल रहे लक्षित हमलों को देखते हुए सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। इस घटना के बाद विरोध प्रदर्शन करने वाले कश्मीरी पंडित ने कहा “सरकार हमारे युवाओं को PM’s job package के तहत घाटी में सेवा करने के लिए मजबूर किया। उन्होंने आगे कहा, अगर केंद्र सरकार गंभीर होती तो केंद्र सरकार में नौकरी आवंटित कर सकती थी।
आपको बतादें कि संबंधित घटनाक्रम में, Office of LG J&K ने कश्मीरी पंडित की हत्या के सभी पहलुओं की जांच के लिए एक एसआईटी गठित करने की घोषणा की।इसके बाद जम्मू -कश्मीर प्रशासन ने भट्ट की विधवा पत्नी को सरकारी नौकरी देने और वित्तीय सहायता देने के साथ-साथ भट्ट की बेटी की पढ़ाई का खर्च उठाने का फैसला किया।
अब इस तरह की अप्रिय घटना को लेकर भारत सरकार को चुप नहीं बैठना चाहिए। आखिर कब तक कश्मीरी पंडितों की हत्या देश में होती रहेगी। जब देश में मोदी सरकार आई थी तो कश्मीरी पंडितों को लगा था की अब उनके दिन बहुरेंगे पर जिस तरह से अभी भी राहुल भट्ट जैसे कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई है उससे कश्मीरी पंडितों को बहुत बड़ा धक्का लगा है और उनका विश्वास मोदी सरकार को लेकर डगमगा गया है।केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करनी चाहिए की सिर्फ आर्टिकल 370 को हटाने से कुछ नहीं हो पाएगा सबसे पहले कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा जरुरी है और उस तरफ सरकार को कदम उठाना चाहिए वरना कश्मीर और कश्मीरी पंडित फिर से 90 के दशक की हालत में चले जाएंगे।
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