मी लॉर्ड! हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार भी नही है क्या ?

जज साहब कह रहे हैं कि 800 साल से पूजा नहीं हुई, अभी भी मत करो।

Source: Law Beat

न्याय की प्रतिमूर्ति देश के लिए सबसे पहले न्यायालय होते हैं। इसके बिना संविधान का अस्तित्व और उसको अमल में लाने की परिकल्पना एकदम निराधार समझी जाती है। न्याय के लिए सबसे पहले संविधान के अंतर्गत चलने वाले कोर्ट और संविधान को आगे पाया जाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उसके होने से ही तो नागरिक अपने अधिकारों को संरक्षित समझता है। इसी क्रम में इन दिनों मंदिर ध्वस्त कर उसके ऊपर मस्जिद या अन्य स्थल बनाने का मुद्दा चरम पर है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत में कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदू और जैन देवताओं की बहाली की मांग वाली एक याचिका का विरोध किया। एएसआई ने इस दौरान कहा कि यह पूजा स्थल नहीं है और स्मारक की मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता है। सुनवाई के दौरान जज ने कहा, ‘अगर वहां देवता पिछले 800 साल से बिना पूजा के मौजूद हैं तो उन्हें ऐसे ही रहने दीजिए।’

दरअसल, कुतुब मीनार में पूजा के अधिकार की याचिका पर दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है। जस्टिस निखिल चोपड़ा की बेंच ने हिंदू पक्ष की पूजा के अधिकार वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में फैसला 9 जून को आएगा। कोर्ट ने दोनों पक्षों को एक हफ्ते के अंदर ब्रीफ रिपोर्ट जमा करने को कहा है।

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एएसआई ने यह भी कहा कि इस “केंद्र संरक्षित” स्मारक में पूजा करने के मौलिक अधिकार का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति के तर्क से सहमत होना कानून के विपरीत होगा। हालांकि एएसआई ने कहा कि कुतुब परिसर के निर्माण में हिंदू और जैन देवताओं की स्थापत्य सामग्री और छवियों का पुन: उपयोग किया गया था।

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश निखिल चोपड़ा ने नौ जून के लिए याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। एएसआई ने कहा, “भूमि की किसी भी स्थिति के उल्लंघन में मौलिक अधिकार का लाभ नहीं उठाया जा सकता है। संरक्षण का मूल सिद्धांत अधिनियम के तहत संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित और अधिसूचित स्मारक में किसी भी नए अभ्यास को शुरू करने की अनुमति नहीं देना है।”

इसमें कहा गया है कि “स्मारक की सुरक्षा के समय जहां कहीं भी पूजा नहीं की गई, वहां पूजा के पुनरुद्धार की अनुमति नहीं दी गई। कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है और केंद्र सरकार द्वारा इसकी सुरक्षा के समय से कुतुब मीनार या कुतुब मीनार का कोई भी हिस्सा किसी भी समुदाय द्वारा पूजा के अधीन नहीं था।”

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वहीं इस याचिका पर ASI ने अपना जवाब साकेत कोर्ट में दाखिल करते हुए कहा कि कुतुब मीनार को 1914 से संरक्षित स्मारक का दर्जा मिला है। ASI ने कहा, कुतुब मीनार की पहचान बदली नहीं जा सकती, न ही अब स्मारक में पूजा की अनुमति दी जा सकती है।

दरअसल, संरक्षित होने के समय से यहां कभी पूजा नहीं हुई है। ASI ने कहा हिंदू पक्ष की याचिकाएं कानूनी तौर पर वैध नहीं है, साथ ही पुराने मंदिर को तोड़कर कुतुब मीनार परिसर बनाना ऐतिहासिक तथ्य का मामला है। अभी कुतुब मीनार में किसी को पूजा का अधिकार नहीं है, जब से कुतुब मीनार को संरक्षण में लिया गया, यहां कोई पूजा नहीं हुई, ऐसे में यहां पूजा की अनुमति नहीं दी जा सकती।

ऐसे में अभी हमें साकेत कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए. हमें देखना पड़ेगा कि कोर्ट का फैसला क्या रहता है, लेकिन सुनवाई के दौरान जज ने जो टिप्पणी की उस पर सवाल जरूर खड़े होते हैं। जज ने कहा कि 800 साल से पूजा नहीं हो रही है तो अभी भी देवताओं को ऐसा ही रहने दीजिए। जज साहब से पूछा जाए कि अगर वहां हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं, तो क्यों पूजा नहीं करनी चाहिए ? हिंदुओं को पूजा से रोकना क्या उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है ? संविधान का आर्टिकल 25 सभी को उनके धर्म का पालन करने का अधिकार देता है, तो फिर हिंदुओं को पूजा करने से क्यों रोका जा रहा है ?

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