वैसे बोले तो सरदार भगत सिंह पर कम्युनिस्ट लोगन का कॉपीराइट होने का परंतु वे हैं तो पूरे भारत के। उन्होंने जेल में रहते हुए अपनी माता जी विद्यावती को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था, “मां मुझे पूरा विश्वास है कि यह देश आजाद हो जाएगा पर मुझे भय है कि गोरे साहब चले जाएंगे और उनकी जगह भूरे साहब ले लेंगे”।
इस लेख में हम तमिलनाडु में सत्ताधारी डीएमके के इसी स्वरूप से परिचित होंगे और ये भी जानेंगे कि कैसे भगत सिंह के शब्दों को कुछ लोग आज भी अपनी तुच्छ मानसिकता से शत प्रतिशत सत्य सिद्ध करते हैं।
हाल ही में कोयंबटूर में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सत्ताधारी डीएमके सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री के पॉनमुडी ने बताया कि वर्तमान सरकार [डीएमके सरकार] तमिल और अंग्रेजी की दोहरी भाषा को बढ़ावा देने की नीति पर कार्यरत रहेगी।
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तो इसका ‘भूरे साहब’ के विचार से क्या वास्ता?
अपने बयान में पॉनमुडी ने ये तक कह दिया, “हो सकता है कि हिंदी अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाती होगी, तो हमारे राज्य में हिंदी भाषी लोग पानी पूरी बेचने का काम क्यों करते हैं? हमारे यहां सरकारी नौकरी किसको मिलती है?”
इसी को कहते हैं, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। परंतु उलटी गंगा बहाने की यह नीति डीएमके सरकार में कोई नई बात नहीं है। जब केंद्र सरकार ने बोर्ड परीक्षा के नंबरों के ऊपर वास्तविक योग्यता को वरीयता देने के लिए CUET इग्जाम को बढ़ावा देने के लिए पैरवी की तो तमिलनाडु ने इसी के विरुद्ध सदन में प्रस्ताव पारित करवा दिया, ताकि सत्ता और विद्यार्थियों पर उनका एकाधिकार छूटने न पाए।
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पर इससे ये ‘भूरे साहब’ कैसे बने?
भूरे साहब माने वो, जो केवल तन से भारतीय है, मन से नहीं। मन में अब भी वे वही औपनिवेशिक मानसिकता वाले विचारों को बढ़ावा देते हैं, जिसके लिए ब्रिटिश साम्राज्यवाद युगों युगों तक कुख्यात रहेगा। अगर क्षेत्रीय भाषा का गौरव बढ़ाना हो तो भला किसे आपत्ति होगी, अधिकार तो गुजराती, तेलुगु, मराठी, कन्नड़, उड़िया, असामी, इत्यादि सभी को समान रूप से फलने फूलने का है।
समस्या तब आती है जब आप बात करें क्षेत्र के दमन और विकल्प के रूप में चुने उस भाषा को जो आपकी अपनी भी नहीं है और तमिलनाडु में यही कटु सत्य है। सरकार चाहे किसी की भी हो, यदि वास्तव में तमिल भाषा के उत्थान की बात होती तो हिन्दी को और राष्ट्रवाद को इतना अपमानित न किया जाता।
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डीएमके सरकार को भारतीयता से है घृणा!
ये तो कुछ भी नहीं है, तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके सरकार को भारतीयता से कितनी घृणा है, इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि कुछ ही हफ्तों पूर्व तमिलनाडु के राजकीय मदुरै मेडिकल कॉलेज (Madurai Medical College) के एमबीबीएस (MBBS) प्रथम वर्ष के छात्रों ने अपने दीक्षा सत्रारंभ समारोह यानी इंडक्शन ओरिएंटेशन सेरेमनी (Induction Ceremony) के दौरान हिप्पोक्रेटिक शपथ की जगह ‘महर्षि चरक शपथ‘ ली। ऐसा देश में पहली बार हुआ है, जब मेडिकल छात्रों ने हिप्पोक्रेटिक की बजाय महर्षि चरक शपथ ली हो –
Madurai | First-year MBBS students of Government Madurai Medical College took 'Maharishi Charak Shapath' instead of the Hippocratic oath during the induction ceremony yesterday
Tamil Nadu govt has moved to 'Waiting List' the Dean of Government Madurai Medical College. pic.twitter.com/xnnh5YhEzz
— ANI (@ANI) May 1, 2022
अब ये शपथ वैकल्पिक थी परंतु इस बात से सत्ताधारी स्टालिन सरकार को इतना क्रोध आया कि उन्होंने त्वरित कार्रवाई करते हुए कॉलेज के डीन डॉ. ए रथिनवेल (Dr A Rathinavel) को वेटिंग लिस्ट में डलवा दिया यानी उन्हें निलंबित नहीं किया, परंतु आधिकारिक रूप से स्थानांतरित भी नहीं किया। फिलहाल के पॉनमुडी पार्टी के स्वभावअनुसार दावा कर रहे हैं कि उनके बयान को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है। परंतु जिस प्रकार से डीएमके का रिकॉर्ड रहा है उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि अंग्रेज़ चले गए, इन्हें छोड़ गए।