खामियों से भरा हुआ है Places of Worship Act और यह स्पष्ट तौर पर हिंदू विरोधी है

यह 'कानून' सिर्फ और सिर्फ बकवास है!

Place of worship act

Source- Google

भारत विश्व का ऐसा देश है जिसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। प्राचीन समय से देश संस्कृति और सभ्यता के लिए विश्वप्रसिद्ध रहा है लेकिन इतना महान और समृद्ध होने कारण यह आक्रांताओं की आंखों का नासूर बन गया था। फलस्वरूप मुगलों ने यहां जमकर कहर बरपाया, इसे लूटा, इसके संस्कृति को छिन्न भिन्न किया, यहां तक कि हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त कर उस पर मस्जिद का निर्माण तक करा दिया, जिसके कारण आज तक अपने अधिकारों को लेकर हिन्दू समाज लड़ रहा है। जब 1947 में देश स्वतंत्र हुआ तो ऐसा लगा कि हिन्दू समाज अपनी सभ्यता और संस्कृति का पुनरुद्धार कर लेगा पर तत्कालीन सरकार द्वारा हिन्दुओं के मुद्दों को अनदेखा कर दिया गया, जिसे लेकर हिन्दू समाज आज भी ठगा हुआ महसूस करता है। इसी बीच अब ज्ञानवापी परिसर को लेकर भी बवाल मचा हुआ है। सर्वे के बाद मस्जिद के भीतर से हिंदुत्व की कड़ियां जुड़ने लगी है, जिसे लेकर कथित शांतिदूत और लिबरल 30 साल पुराने अधिनियम की दुहाई देने लगे हैं।

दरअसल, 1990 के दौरान अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन आगे बढ़ रहा था। तत्कालीन सरकार को आशंका हुई कि विभिन्न धार्मिक स्थलों को लेकर देश में विवाद उत्पन्न हो सकता है, इसलिए पूजा स्थलों पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए 1991 में पी वी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा Place of Worship Act कानून लाया गया था। यह अधिनियम घोषित करता है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा जैसा उस दिन अस्तित्व में था। इस एक्ट में कहा गया कि अगस्त 1947 में जो भी धार्मिक स्थल जिस भी समुदाय का था वो वैसा ही रहेगा। इस अधिनियम का उद्देश्य किसी भी पूजा स्थल के परिवर्तन पर रोक लगाना और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए सुरक्षा प्रदान करना है।

ध्यान देने वाली बात है कि Place of Worship Act, 1991 अब तक का सबसे फर्जी, भेदभावपूर्ण और अन्यायपूर्ण कानून है। यह वह अधिनियम है जो हिंदुओं को उनकी विरासत को पुनः प्राप्त करने के उनके अधिकार से वंचित करता है जिसे इस्लामी आक्रांताओं ने पूरे भारत में खड़ा किया था। हालांकि, राम जन्मभूमि विवाद को इस अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई थी, लेकिन इस अधिनियम ने अवैध मस्जिदों के नीचे पड़े हिंदू मंदिरों के लिए न्याय का रास्ता बंद कर दिया गया था।

और पढ़ें: ज्ञानवापी के बाद शाही ईदगाह मस्जिद के पीछे का सच सामने आने का समय आ गया है

हिंदू विरोधी है यह अधिनियम

आइये आपको बताते हैं कि यह अधिनियम हिन्दू विरोधी क्यों है? ज्ञात हो कि यह अधिनियम स्पष्ट रूप से सभी धार्मिक समुदायों को समान दर्जा देता है, तथ्य यह है कि इस अधिनियम का हिंदुओं के पूजा स्थलों पर सबसे प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस अधिनियम के दायरे में आने वाले अधिकांश “पूजा स्थल” हिंदू मंदिर हैं। इस्लामी आक्रमणकारियों ने कई प्रमुख हिन्दू मंदिरों को नष्ट कर दिया और उसे उसी जगह मस्जिदों में परिवर्तित कर दिया, जैसे वाराणसी में काशी विश्वनाथ जिसे ज्ञानवापी मस्जिद में परिवर्तित किया गया था, मथुरा में कृष्ण मंदिर जिसे ईदगाह मस्जिद में परिवर्तित किया गया था। यह अधिनियम न केवल हिन्दू आस्था के लिए अनुचित है, बल्कि असंवैधानिक भी है।

अब सवाल उठता है कि आखिर देश के बहुसंख्यक हिन्दू ही क्यों धार्मिक प्रताड़ना झेलता रहें। क्या भारत में कोई अन्य समुदाय अपने पूजा स्थल का इस्लामी संरचनाओं द्वारा उल्लंघन किया जाना बर्दाश्त करेगा? क्या सिख किसी मस्जिद को गुरुद्वारे के ऊपर खड़ा होने देंगे? क्या ईसाई एक चर्च के ऊपर किसी मस्जिद को बर्दाश्त करेंगे। इन सब का जवाब होगा -नहीं! लेकिन अधिनियम ने 125 करोड़ से अधिक हिन्दुओं के मौलिक और धार्मिक अधिकारों की बलि चढ़ा दी है। इस अधिनियम में दैनिक आधार पर हिन्दुओं का अपमान किया जाता है, जैसे ज्ञानवापी मस्जिद वाले प्रकरण में हो रहा है।

अधिनियम में खामियां

वर्ष 1991 में जब यह विधेयक संसद में लाया गया था, तब इस पर तीखी बहस हुई थी क्योंकि भाजपा ने इसका कड़ा विरोध किया था। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा नेता उमा भारती ने प्रस्तावित कानून पर बोलते समय ज्ञानवापी मस्जिद का जिक्र किया था। भारती ने कहा था कि वह वाराणसी गई थी और उन्होंने दावा किया था कि गाइड ने उन्हें उस मंदिर के अवशेष दिखाए, जहां औरंगजेब ने मस्जिद का निर्माण किया था। भारती ने पूछा कि मुगल सम्राट ने मस्जिद के नीचे मंदिर की संरचना क्यों होने दी। उन्होंने दावा किया था कि मंदिर में पूजा करने वालों को अपमानित करने के लिए ऐसा किया गया होगा। भारती ने मांग की थी कि सभी विवादित धार्मिक स्थलों, चाहे वे मंदिर हो या मस्जिद, उन्हें उनके मूल गौरव पर बहाल किया जाए। पर उस समय कांग्रेस ने भारती और भाजपा का विरोध किया था।

परंतु क्या इसका कोई तोड़ नहीं? बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं, परंतु अगर सरकार विवादित ढांचे को Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958 के अंतर्गत ले आए, और ASI यानी Archaeological Survey of India सिद्ध कर दे कि ये ढांचा या भवन राष्ट्रीय महत्व का है, तो वह इस विवादित Places of Worship Act के श्रेणी से मुक्त हो जाएगा।

अब ज्ञानवापी मस्जिद में  शिवलिंग की खोज ने फिर से तीन दशक पुराने कानून पर लोगों का ध्यान केंद्रित किया है। इस मामले को लेकर AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी उन दावों का विरोध करने वालों में सबसे आगे थे, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि इस तरह के प्रयास पूजा स्थल अधिनियम के उल्लंघन में थे। आज के परिदृश्य की बात करें तो इस खोखले अधिनियम को निरस्त कर मोदी सरकार को कम से कम प्रमुख हिंदू मंदिरों और संरचनाओं को घोषित करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, जिन पर इस्लामिक संरचनाओं द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है। Place of Worship Act कानून दशकों से चली आ रही राजनीतिक नफरत की उपज है, जिसका शिकार हिन्दू हुआ है। अब समय आ गया है कि इसे खत्म किया जाए या कम से कम इस अधिनियम को सही ढंग से दोबारा बनाया जाए।

और पढ़ें: ज्ञानवापी मस्जिद विवाद: एक एक झूठ की खुलने लगी है पोल

Exit mobile version