पतन की पराकाष्ठा देखिए। राहुल बाबा पहले प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। पर उनकी प्रशासनिक अक्षमता, राजनीतिक अबोधता तथा भारतीयता के अभाव के कारण इस जन्म में उनका यह स्वप्न पूर्ण होने से रहा। जब कांग्रेसियों को लग गया कि उनका मालिक भारत का शहजादा नहीं बन सकता तब उन्होंने रागा को कांग्रेस का राजकुमार बनाया। उन्होंने बहुत सारे राज्यों में कांग्रेस की चुनावी कमान संभाली। चुनाव में उनके असफलता का आलम यह था कि खुद कांग्रेस के मजबूत क्षत्रप कांग्रेस के राजकुमार को अपने राज्य के विधानसभा चुनाव से दूर रखने लगे। असफलताओं के बावजूद राहुल बाबा का उत्थान यहीं नहीं रुका और कुछ समय बाद एक दिन रात में जब सोनिया ने उनके कमरे में आकर शक्ति के भ्रष्ट होने की कहानी सुनाइ तब उन्हें राजकुमार से राजा घोषित कर दिया गया। राजा का उत्थान बना रहा और कांग्रेस गर्त में गिरती गई।
राहुल को कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट वायनाड भेज दिया गया था
2014 के लोकसभा चुनाव में अमेठी जैसे तैसे बच गई पर 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के राज कुमार को अपने गढ़ से भागकर वायनाड में शरण लेनी पड़ी ताकि राजकुमार कम से कम संसद में बैठने के काबिल तो रहे। राजनीतिक कहावत है कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर के गुजरता है पर कांग्रेस नेअपनी सत्ता सिद्धांत और राजनीति बचाने से ज्यादा अपने राजकुमार की सांसदी बचाने पर जोर लगाया और उन्हें कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट केरल के वायनाड भेज दिया।
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भला हो भाग्य का जो राहुल गांधी ने अपने सबसे करीबी प्रतिद्वंदी वामपंथी दल के पीपी सुनीर को 4.30 लाख मतों से हरा दिया। स्मृति ईरानी ने 2019 में अमेठी जीती थी। पिछले हफ्ते एक दिलचस्प घटना घटी। ईरानी ने ट्वीट किया कि वह 3 मई 2022 को वायनाड में रहने की उम्मीद कर रही थीं। इससे यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ की क्या वह वायनाड में राहुल गांधी को चुनौती देने जा रही हैं? हम आपको बताते हैं. दरअसल, यह ट्वीट भाजपा के सबसे बड़े कांग्रेस और वामपंथी गढ़ केरल को जीतने की योजना है.
सबसे पहले वायनाड की बात करते हैं. हिंदू पारंपरिक रूप से भाजपा को वोट देते हैं पर वायनाड निर्वाचन क्षेत्र में वे अल्पमत में हैं। शायद इसीलिए, पीएम मोदी ने टिप्पणी की थी कि गांधी ने एक सुरक्षित उपलब्धि खोजने के लिए एक माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया, जहां “बहुमत अल्पमत में है”।
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केरल में बीजेपी का वोट शेयर कितना रहा?
दरअसल, केरल में बीजेपी का वोट शेयर 2014 में 10.45 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 12.93 प्रतिशत हो गया। कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने काफी वोट हासिल किए। उदाहरण के लिए, तिरुवनंतपुरम ने भले शशि थरूर को चुना पर भाजपा उम्मीदवार भी 3 लाख 15,000 से अधिक वोट हासिल करके दूसरे स्थान पर रहे। उन्हें मिले वोटों और थरूर के जीते हुए वोटों का अंतर 1लाख था। संयोग से 2014 में अमेठी में वोट का अंतर भी यही था जब राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी के खिलाफ जीत हासिल की थी।
त्रिशूर में अभिनेता सुरेश गोपी तीसरे स्थान पर रहे। उन्हें करीब 3 लाख वोट मिले। गोपी ने 2021 के केरल विधानसभा चुनाव में भी चुनाव लड़ा था। उन्हें 31.3 फीसदी वोट मिले, जबकि जीतने वाले उम्मीदवार को 34.25 प्रतिशत वोट मिले। 2019 के चुनावों में पथानामथिट्टा में भी यही पैटर्न था। काफी संभावना है कि 2024 में, भाजपा अपने स्टार प्रचारकों के सक्रिय समर्थन के साथ कुछ और सीटों पर जीत की रेखा को पार कर सकती है।
हालांकि, वायनाड जीतने के लिए भाजपा को काफी संघर्ष करना पड़ेगा। 2019 के चुनावों में, राहुल गांधी ने 7,06,367 वोटों से जीत हासिल की जबकि सीपीआई उम्मीदवार जो दूसरे स्थान पर रहे, केवल 2,74,597 वोट ही जीत सके। भाजपा ने वायनाड में सीधे चुनाव नहीं लड़ा लेकिन जिस पार्टी के साथ उसका गठबंधन था उसका उम्मीदवार केवल 78,590 वोट ही जीत सका। इसके अलावा, 2021 के विधानसभा चुनावों में वायनाड के संसदीय क्षेत्र के भीतर आने वाले सभी सात विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन कुछ भी उल्लेखनीय नहीं था। यह उन सभी सीटों में तीसरे स्थान पर रहा जिनमें से तीन सीटों में इसका वोट शेयर पांच प्रतिशत से भी कम था।
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ईरानी का वायनाड दौरा केरल में धमाकेदार शुरुआत
उस संदर्भ में, ईरानी का वायनाड दौरा केरल में धमाकेदार शुरुआत करने की भाजपा का एक प्रयास है। इस ‘नई भाजपा’ के इस घोषणा से प्रतीत होता है कि वह अपने सबसे लोकप्रिय प्रचारकों में से एक को सीधे शेर की मांद में भेज देगी ताकि एक चुनौती पेश की जा सके।
उनकी यात्रा का उद्देश्य मुख्य रूप से स्थानीय भाजपा कैडर को अगले दो वर्षों के लिए अपनी पूरी ताकत लगाने के लिए उत्साहित करना है। भले ही 2024 में वायनाड जीतने योग्य न हो पर एक वामपंथी गढ़ और उम्मीदवार के खिलाफ ताल ठोककर भाजपा उनकी राह तो मुश्किल कर ही सकती है। दरअसल, अमेठी में ईरानी का राहुल के विरुद्ध विजयी अभियान एक उदहारण बन चुका है। ऐसा लगता है कि पार्टी ने उन्हें एक और मौका दिया है वायनाड में भाजपा के उत्थान का नेतृत्व करने के लिए।
जिस दिन स्मृति ईरानी ने अमेठी जीता, उसी दिन एक पंक्ति ट्वीट की थी कि- कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता..’। जिसके आगे की पंक्ति है कि एक पत्थर तो तबीयत से उछाले यारों। सच ही तो है स्मृति ने पत्थर उठाया और अमेठी के आसमान में छेद कर दिया। वायनाड की उनकी यात्रा से वायनाड और केरल भाजपा टीम को यह समझने में मदद मिलेगी कि आखिर उन्होंने यह किया कैसे?