नेवले पर डोरे डाल रहा है सांप: पेश है पाकिस्तान के इजराइल की ओर बढ़ते कदम

आर्थिक तौर पर बर्बाद हो चुके पाक के सामने नहीं है कोई और विकल्प !

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Source- TFIPOST.in

अपने देश की बिगड़ती आर्थिक हालत देखकर पाकिस्तान के नेतृत्व को सम्भवतः यह समझ आ गया है कि उन्हें अपनी कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा पर आधारित विदेश नीति का परित्याग करना पड़ेगा। यही कारण है कि पूर्ववर्ती इमरान खान सरकार ने चुपचाप एक दूत मंडल इजराइल भेज दिया था। हालांकि इस खबर के मीडिया में आने से पहले ही पाकिस्तान में तख्तापलट हो चुका है किंतु यह खबर बताती है कि पाकिस्तान प्रशासन को अपने देश की बिगड़ती हालत का अंदाजा बहुत अच्छी तरह है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस यात्रा को इजरायल समर्थक नागरिक समूह शारका (अरबी में “साझेदारी”) द्वारा प्रायोजित किया गया था, जिसे 2020 में अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और बहरीन द्वारा इजरायल की मान्यता के बाद स्थापित किया गया था।

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रिश्ते बढ़ाने मे लगा पाक

शाकरा ने इस बारे में जानकारी देते हुए ट्विटर पर लिखा ‛सिक्खों व मुसलमानों के एक दूतमण्डल जिसमें, पाकिस्तान के ऐसे पहले यहूदी नागरिक भी शामिल हैं जिन्हें इनकी यात्रा करने और राष्ट्रपति इसाक हर्ज़ोग से मिलने की अनुमति भी प्राप्त थी। दूतमण्डल ने राष्ट्रपति से इजराइल के साथ अपने ( पाकिस्तान के) रिश्ते बढ़ाने के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों की चर्चा भी की।’

पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अमेरिका में एक पाकिस्तानी-अमेरिकी लॉबिस्ट अनीला अली कर रही थी। प्रतिनिधिमंडल में पाकिस्तानियों के साथ-साथ अन्य देशों के मुसलमान भी शामिल थे। एक विदेशी मीडिया आउटलेट ने कहा, “प्रतिनिधिमंडल ने इजरायल के राष्ट्रपति सहित शीर्ष इजरायली नेतृत्व से मुलाकात की। पाकिस्तानी मीडिया बिरादरी के कुछ ‘प्रसिद्ध’ चेहरे भी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं। कुछ राज्य मीडिया के लिए भी काम करते हैं।” पाकिस्तान सरकार जानती है कि वह आधिकारिक रूप से इजराइल के साथ संबंध बढ़ाने का प्रयास शुरू करेगी तो पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर बवाल शुरू होगा। इसलिए इस कार्य के लिए उसने विदेशों में बसे पाकिस्तानी लोगों का प्रयोग शुरू किया है।

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इजरायल के आगे बेबस पाक

पाकिस्तान के अंदर कट्टरपंथी मानसिकता के लोगों का इतना अधिक प्रभाव है कि पाकिस्तान सरकार चाहकर भी इजराइल के साथ अपने संबंध सुधारने का प्रयास नहीं कर सकती। पाकिस्तान और इजराइल एक मंच पर नहीं आ सकते इसलिए जब संयुक्त अरब अमीरात में इजराइल के साथ अब्राहम अकाउंट पर हस्ताक्षर किए थे तब पाकिस्तान द्वारा इसकी आलोचना की गई थी। यहां तक की जब ओआईसी में इजराइल व सऊदी अरब के धड़े के विरुद्ध उनके समानांतर एक नया तथा अधिक इस्लामिक कलेवर वाला समूह बनाने के लिए तुर्की ने प्रयास शुरू किया तब पाकिस्तान ने बढ़ चढ़कर उसका साथ दिया था। इस कारण उस समय पाकिस्तान और सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात के बीच मनमुटाव हो गया था।

इसी बीच सऊदी अरब व UAE ने धारा 370 हटाने के लिए भारत की आलोचना नहीं की। इन सब कारणों से पाकिस्तान सऊदी UAE के विपरीत विदेश नीति अपनाने लगा। अपने आप को अधिक समर्पित मुस्लिम राष्ट्र प्रदर्शित करने के लिए पाकिस्तान ने जमकर इजराइल का विरोध भी किया। किंतु पाकिस्तान को भी पता है कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था को चलाना है तो अपनी विदेश नीति को संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के अनुसार चलाना पड़ेगा। अब क्योंकि इन देशों के विदेश नीति में इजराइल महत्वपूर्ण स्थान रखता है तथा यह देश इजराइल के साथ मित्रवत संबंध बनाना चाहते हैं इसलिए पाकिस्तान की मजबूरी है कि वह धीरे-धीरे इजराइल के साथ अपने संबंध ठीक करे।

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