कुछ लोगों को देखकर एक ही कहावत स्मरण होती है– चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। जहांगीरपुरी की हिंसा और तद्पश्चात अतिक्रमण पर हुई कार्रवाई को अभी एक माह भी पूर्ण नहीं हुआ कि शाहीन बाग में भी अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई प्रारंभ की गई। ये और बात थी कि भारी विरोध और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण बुलडोज़र को बैरंग लौटना पड़ा, परंतु इस बार वामपंथियों को सुप्रीम कोर्ट से जोरदार दुलत्ती पड़ी है।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे बिन बुलाए बाराती की भांति वामपंथी एक बार फिर वामपंथी सुप्रीम कोर्ट में धमक पड़े और कैसे सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाया कि वे फिर कहीं मुंह दिखाने योग्य नहीं रह पाएंगे।
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मोहल्ले के नकचढ़े लोगों की भांति वामपंथी कर रहे हैं बर्ताव
दरअसल, वामपंथी मोहल्ले के उन नकचढ़े लोगों की भांति हैं जिनके खुद के घर में आग लगी हो पर दूसरों के जीवन में तांक झांक करने में और हस्तक्षेप करने में बड़ा आनंद मिलता हो, शाहीन बाग कांड भी इसी का प्रत्यक्ष प्रमाण है। हाल ही में अवैध अतिक्रमण को हटाने हेतु दक्षिणी दिल्ली नगरपालिका ने एक अभियान चलाया जिसके विरोध में कांग्रेस समेत कई पार्टियां सामने आई।
लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी [मार्क्सवादी] का तेवर तो सातवें आसमान पर था। जहांगीरपुरी पर जिस प्रकार से इस पार्टी ने अपना पक्ष रखा था उससे इन्होंने अपने को सुपर पुलिस से कम नहीं समझा था। इसी तेवर को आत्मसात करते हुए इस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में अतिक्रमण रोधी अभियान के विरुद्ध याचिका दायर की, परंतु बार बार वामपंथियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट को अपना पिकनिक स्पॉट बनाने के कारण सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने भी सबक दे दिया।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ के अनुसार, “आखिर राजनीतिक दल इस याचिका को लेकर क्यों आए हैं? हम केवल पीड़ित पक्ष की बात सुनेंगे। आपको जाना है तो हाईकोर्ट जाइए”।
इस पर सीपीआई ने आरोप लगाया कि गरीबों की बस्ती पर आक्रमण हो रहा है तो प्रत्युत्तर में कोर्ट ने पूछा कि जब पीड़ित पक्ष की ओर से कोई अपील नहीं आई है तो वे क्यों इतना परेशान हो रहे हैं। हम कोर्ट को राजनीति करने की जगह नहीं बना सकते”।
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सीपीआई को विवश होकर याचिका वापस लेनी पड़ी
फलस्वरूप सीपीआई को विवश होकर याचिका वापस लेनी पड़ी लेकिन इससे पूर्व भी वामपंथियों ने बात बात पर बाधा डालने का प्रयास किया है, चाहे वह जहांगीरपुरी हिंसा की बात हो या फिर कोई और असामाजिक घटना हो। सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने में इन्हें विशेष सिद्धि प्राप्त है। और तो और कोर्ट को अपना राजनीतिक अड्डा बनाने में तो इन्हें कुछ अलग ही आनंद आता है। इससे न केवल कोर्ट का समय बर्बाद होता है, अपितु कई आमजन वास्तविक न्याय से वंचित रहते हैं।
परंतु जहांगीरपुरी प्रकरण के बाद से सुप्रीम कोर्ट भी अब वामपंथियों की दादागिरी से तंग आता हुआ प्रतीत होता है। यदि ऐसा नहीं होता, तो आधी रात को आतंकियों और दुर्दांत अपराधियों तक के लिए सर्वोच्च न्यायालय खुलवाने वाले इन वामपंथियों को ऐसे न लात मारकर भगाया जाता। स्पष्ट शब्दों में सुप्रीम कोर्ट ने वामपंथियों को कहा है – बच्चे, यह सुप्रीम कोर्ट है, आपका खान मार्केट का अड्डा नहीं।