वामपंथी, छद्म बुद्धिजीवी तथाकथित उदारवादी सोंच किसी को भी खोखला कर सकती है, चाहे वो कोई व्यक्ति हो या फिर संस्थान. लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया में ऐसे लोगो की संख्या बहुतायत है. इन शब्दों के आगे लगे विशेषण इनके द्विचित प्रवृति और मानसिक दिवालियापन को दर्शाते हैं. मीडिया संस्थानों और राजनीतिक रणक्षेत्रों में व्याप्त इस सोंच का एक उदहारण अभी हाल में हैदराबाद में देखने को मिला.
कहानी एकदम फ़िल्मी है. बिल्कुल एक परम्परागत बॉलीवुड चलचित्र की तरह. पर, हमेशा की तरह इस जघन्य अपराध में भी समाज और सिस्टम ने मुर्दों का अभिनय किया है. दो प्रेमी युगल विवाह बंधन में बंधन चाहते थे. उनका प्रेम कक्षा 10 से निरंतर चला आ रहा था. लड़के का नाम था नागराजू. वो एक कार एजेंसी में सेल्समैन का काम करता था और ‘श्रीमती सैयद अश्रीन सुल्ताना जी’ से अत्यंत प्रेम करता था.
पर, जात से दलित था और लड़की ठहरी उच्च जाति की मुस्लिम. अतः परिवारवाले नहीं माने. लड़का क्या करता बेचारा? धर्म परिवर्तन को भी राजी हो गया. पर, लड़की के परिवारवालों के अनुसार रहता तो नीची जाति का मुसलमान ही. दोनों बालिग थे इसलिए भागकर शादी कर ली. समाज और धर्म की गन्दगी तो देख ली अब देखिये व्यवस्था की सडन. समाज और धर्म की स्वीकृति न मिलने के बाद उन्हें लगा कि व्यवस्था से उन्हें सुरक्षा अवश्य मिलेगी. पर, ऐसा भी नहीं हुआ. लड़की के भाइयों और परिवारवालों से जान बचाकर वो विशाखापत्तनम भाग गए. 4-5 दिन पहले उन्हें लगा कि क्या पता समय ने प्रतिशोध की अग्नि को शांत कर दिया होगा लेकिन ऐसा नहीं था.
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नागराजू की हत्या
नागराजू पर उस समय बेरहमी से हमला किया गया जब वह अपनी पत्नी सैयद अश्रीन सुल्ताना उर्फ पल्लवी के साथ यात्रा कर रहे थे. सुल्ताना ने कहा, “मेरी भाभी की तबीयत खराब थी, इसलिए उन्होंने मुझे हमले के दिन अपने साथ रहने के लिए कहा. वह सुबह करीब 8 बजे काम पर निकला और मुझे अपने घर छोड़ गया. दोपहर में वह दोपहर के भोजन के लिए लौटा और फिर से काम पर चला गया और मुझे अपनी भाभी के घर छोड़ दिया. वह रात करीब साढ़े आठ बजे काम से लौटा और मुझे उठा लिया. हमारे स्थान पर लौटते समय हम पर हमला किया गया.”
उनके घर आते ही लड़की के भाई ने उनका पीछा किया. दिन-दहाड़े बीच चौराहे पर नागराजू के सर पर लोहे के रॉड से वार किया. बहन उसके सामने अपने पति की जान की भीख मांगती रही. वहां सड़क पर खड़े भीरु लोगों के भीड़ से भी गुहार लगाई. उसने कहा, “शुरू में मैं हमलावरों को पहचान नहीं पाई और पूछती रही कि ‘तुम मेरे पति पर हमला क्यों कर रहे हो’. बाद में जब मैं अपने पति को धक्का देकर छुड़ाने की कोशिश कर रही थी तो मैंने अपने भाई को पहचान लिया. मेरे रिश्तेदार शामिल नहीं थे, मेरे भाई और उनके दोस्तों ने ऐसा किया.”
सुल्ताना ने यह भी खुलासा किया कि सार्वजनिक रूप से निर्दयतापूर्वक मारे जाने के दौरान किसी ने भी नागराजू की मदद करने की कोशिश नहीं की. उसने कहा, “हमला 15-20 मिनट तक चलता रहा, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।” पूरी भीड़ एक चाकू के डर से स्तब्ध खड़ी रही. कोई बचाने नहीं आया. उसी चाकू से लड़की के भाई ने बीच चौराहे पर नागराजू को चीर दिया. इस पूरे घटना में दलित उत्पीडन, महिला शोषण, ऑनर किलिंग, क्रूर इस्लामिक पितृसत्ता और जाति व्यवस्था, हिन्दू हत्या और धर्मान्तरण, सब है, ये सब के सब संवेदनशील मुद्दे है और अत्यंत ज्वलंत हैं.
वामपंथी मीडिया की चुप्पी
पर, कोई कुछ नहीं बोला. पूरी की पूरी मीडिया चुप रही बिल्कुल उस कायर भीड़ की तरह जो वहां भय से स्तब्ध हो एक दलित हिन्दू को एक सनकी इस्लामिक जिहादी के हाथों मरता हुआ देख रही थी. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ”आरोपी इस बात से खुश नहीं थे कि वह हिंदू है. वे खुश नहीं थे कि वह दलित था.“ पर मीडिया ने कहा है नहीं. ऊपर से कुछ मीडिया संस्थानों ने इसे सांप्रदायिक रंग न देने की अपील की है. वर्ष 2014 से वामपंथी मीडिया और पूरा तंत्र भारत को “लिंचिस्तान” के रूप में चित्रित कर रहा है. हिंसा के हर कृत्य, यहां तक कि आपसी हाथापाई को भी देश के अल्पसंख्यकों और दलितों पर एक व्यवस्थित हमले के रूप में दिखाया गया. पर, यहां एक दलित की हत्या पर अपील का ढोंग पुनः प्रारंभ कर दिया गया.
यह स्पष्ट है कि नागराजू की हत्या एक विशेष धर्म और एक विशेष जाति से संबंधित होने के कारण की गई. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें उनकी पसंद के अनुसार शादी करने के अधिकार से और केवल उनकी धार्मिक और जातिगत पहचान के कारण शांति से रहने के अधिकार से वंचित कर दिया गया. लेकिन जो बात शर्मनाक है, वह है वाम-उदारवादियों की मूक-बधिर चुप्पी. उनका कहना है कि वे मॉब लिंचिंग की घटनाओं से चिंतित हैं. उनका कहना है कि उन्हें ऑनर किलिंग की चिंता है. हालांकि, जब हिंदू दलित होने के कारण नागराजू की बेरहमी से हत्या कर दी जाती है, तो उनकी ऐसी सारी चिंताएं हवा में उड़ जाती है. जो बचता है वह है घोर सन्नाटा.
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