‘रोडीज के रघुराम’ से पंचायत के निर्देशक तक, दीपक मिश्रा ने गाड़ दिए हैं झंडे

दीपक मिश्रा ने OTT प्लेटफॉर्म पर एक अलग ही छाप छोड़ी हैं !

dipak mishra

Source-TFIPOST.in

“चुप! बिल्कुल चुप!’

“आई एम नॉट इंटेरेस्टेड यार! मुझे सुनना ही नहीं है!”

“अरे पढ़ाई कर लो थोड़ा!”

“नमस्ते जी, हम पुरषोत्तम बोल रहे हैं!”

इन संवादों को सुनके कुछ स्मरण हुआ? क्या जोड़ता है इन्हें? ये सब बड़े चर्चित संवाद हैं, जो अब सोशल मीडिया पर मीम्स के रूप में यदा कदा शेयर भी किए जाते हैं। परंतु क्या आपको ज्ञात हैं कि इन सबके पीछे एक ही व्यक्ति है, और इसी व्यक्ति ने उस सीरीज़ को हम सबके समक्ष प्रस्तुत किया है, जिसकी प्रशंसा के पुल बांधे बिना हम नहीं रह पाते? जी हाँ, ये कोई और नहीं, TVF के चर्चित नाम, दीपक कुमार मिश्रा, और कई लोगों को जानकर अचंभा होगा कि इन्होंने ही ‘पंचायत’ जैसे प्रसिद्ध सीरीज़ का निर्देशन किया है।

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दीपक कुमार मिश्रा, आप क्या निर्देशक हैं!

कोई माने न माने, पर भारत में इंजीनियर्स के पास मानो हर समस्या का समाधान मिल ही जाता है। इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण ‘द वायरल फीवर’ नामक OTT प्लेटफ़ॉर्म ही दे रहा है, जिसे हम TVF के नाम से बेहतर जानते हैं, और जो प्रारंभ आईआईटी खड़गपुर और आईआईटी मुंबई के प्रांगण से हुआ था। अरुणाभ कुमार, अमित गोलानी, जितेंद्र कुमार और विपुल गोयल जैसे बावले पर मंझे हुए कलाकारों ने मिलकर इस मंच को जन्म दिया, जो 2010 में यूट्यूब पर लॉन्च हुआ, जो इंजीनियरिंग के हंसी मजाक और आम जीवन की एक झलक दिखाता था।

परंतु इसे आधिकारिक प्रसिद्धि मिली 2012 में, जब MTVRoadies पर बनी इसकी पैरोडी वीडियो ने खूब सुर्खियां बटोरी। दीपक कुमार मिश्रा ने इसी वीडियो में Roadies के विवादित होस्ट रघु राम की नकल उतारी, और लोग उससे इतना प्रभावित हुए, कि उसके मीम्स और विभिन्न प्रकार के क्लिप वायरल हो गए।

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किसको पता था कि यही व्यक्ति TVF के सबसे चर्चित सीरीज़ के रीढ़ की हड्डी बनेगा। आप माने या नहीं, लेकिन हर प्रसिद्ध सीरीज़ में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से TVF की सफलता के लिए जितनी भूमिका अरुणाभ कुमार या जितेंद्र कुमार की थी, उतनी ही दीपक कुमार मिश्रा की भी थी। ‘Sacred Games’ से पूर्व जब OTT के स्पेस पर पहली ब्लॉकबस्टर सीरीज़ ‘Pitchers’ तहलका मचा रही थी, उसी समय ये आधुनिक रिश्तों पर आधारित ‘Permanent Roommates’ लेकर आए थे, जहां बिना इन्होंने किसी प्रकार की सीमा लांघे, और बिना कोई ढिंढोरा पीटे इन्होंने बड़ी सरलता से आधुनिकता और संस्कृति का सामंजस्य बिठाया। ये सीरीज़ इतनी प्रसिद्ध हुई कि TVF को जल्द ही इसका दूसरा संस्करण लेकर भी सामने आना पड़ा, और दोनों में ही दीपक ने निर्देशक के साथ अभिनय में भी एक अमिट छाप छोड़ी।

पंचायत 2 ग्राम जीवन की पहचान है

परंतु ‘पंचायत’ से जो उन्होंने ग्रामीण भारत का वास्तविक स्वरूप भारतीयों को दिखाया, वह अपने आप में देखने योग्य है। हर गली में एक ‘बनराकस’ भूषण तो अवश्य होगा, जो न खुद चैन से रहे, न दूसरे को चैन से रहने दे। ऐसे ही सचिव जी हो, या प्रह्लाद चा, ‘पंचायत’ सीरीज  के किरदार ही असली भारत का परिचायक है – न कोई एजेंडा, न कोई नौटंकी, बस शुद्धता से परिपूर्ण, यथार्थ का प्रतीक। स्वयं दीपक कुमार मिश्रा भी मानते हैं कि वे ऐसे ही परिवेश अधिक प्रिय मानते हैं, और वे ‘मालगुड़ी डेज’ जैसे धारावाहिकों से काफी प्रेरित थे।

हम चाहे अपने ग्राम, कस्बे, शहर से अलग कहीं भी रह रहे हों, परंतु ये गांव और कस्बा उनसे अलग नहीं रह पाया है और आज भी उनके अंदर उपस्थित है। फुलेरा गांव के वासी, उसकी मासूमियत, उनकी नोक झोंक, खट्टे-मीठे अनुभव सब कुछ देख कर लगता है जैसे ये हमारे अपने गांव की बात हो रही है।

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हम असली इंडिया, असल भारत को दिखाने के दावे तो बहुत करते हैं परंतु बहुत कम लोग होते हैं जो इस दावे को वास्तव में आत्मसात करते हैं। ‘पंचायत’ का द्वितीय संस्करण वामपंथी एजेंडे के विषैले वातावरण में किसी अमृत वर्षा से कम नहीं है। लेकिन जितनी महत्वपूर्ण भूमिका इसके अभिनेताओं जैसे रघुवीर यादव, जितेंद्र कुमार, फैसल मालिक, नीना गुप्ता इत्यादि एवं लेखक चंदन कुमार की है, उतनी ही निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा की भी है, जिनके कारण हमें ऐसे अभूतपूर्व सीरियलों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

 

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