भारत की नई पीढ़ीं आंखें बंद करके कोरियन संस्कृति क्यों अपना रही है ?

'गंगनम स्टाइल' से लेकर ‘बीटीएस’ तक कोरियन संस्कृति का नशा भारतीय युवाओं को बर्बाद कर देगा!

Source: TOI

अपनी संस्कृति को हीन समझने और दूसरों की संस्कृति को अपनाने में हम भारतीयों का कोई सानी नहीं है। अंग्रेज़ तो चले गए लेकिन ‘अंग्रेज़’ छोड़ गए। इसके बाद गंगा-जमुनी तहजीब के नाम पर हिंदुत्व का एकतरफा मखौल उड़ाया गया। खान-पान की संस्कृति में ‘चीन’ और शिक्षा में हम ‘अंग्रेज़’ हो गए। और अब, 21वीं सदी की पीढ़ी में कोरियाई संस्कृति को अपनाने की होड़ मची है। ‘के-पॉप’, ‘के-ड्रामा’ या यहां तक ​​कि कोरियाई सौंदर्य उत्पाद स्वदेशी भारत पर भारी पड़ रहें हैं।

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कोरियाई सौंदर्य उत्पादों के प्रति भारतीयों का जुनून

हम भारतीय सांस्कृतिक रूप से कृष्ण वर्ण के हैं। इसके बावजूद हमने कोरियाई सौंदर्य उत्पादन को अपना रूटीन बना लिया है। प्राकृतिक सामग्री जैसे कि सीका, एवोकैडो, जिनसेंग, चिया सीड्स, बांस, चावल का पानी और ज्वालामुखी राख को रेटिनॉल, नियासिनमाइड, हाइलूरोनिक एसिड, एएचए और बीएचए जैसे सक्रिय पदार्थों के मिश्रण से तैयार किया जाता है। जिससे कि आपका गोरा दिखने का बेतुका शौक पूरा हो सके।

यह ध्यान रखना उचित है कि कोरियाई ब्रांड पारंपरिक आयुर्वेदिक सामग्री जैसे नीम, तुलसी, नींबू और शहद का उपयोग करके ही उत्पाद तैयार करते हैं, इसके बाद भी हमने आयुर्वेद के महत्व को पहचानना बंद कर दिया है।

‘के-पॉप’ की डार्क रियलिटी

समकालीन समय में बीटीएस बिलबोर्ड चार्ट पर राज कर रहा है। बीटीएस ने हाल ही में कई बड़े रिकॉर्ड तोड़े हैं। EXO और BLACKPINK जैसे बैंड इन्ही के नक़्शे कदम पर चलकर अपनी पहचान बना रहें है। हालांकि इस प्रसिद्धि का एक स्याह पक्ष भी है। बीटीएस के निर्माण के लिए पर्दे के पीछे एक सुनियोजित उद्योग काम कर रहा है।

नृत्य के अलावा कलाकारों के खान-पान पर भी कड़ी नजर रखी जाती है। इन कलाकारों को कम खाने दिया जाता है, ताकि वजन न बढ़े। उन्हें किसी को डेट करने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही उन्हें अपनी यौन पहचान का खुलासा करने से भी रोक दिया गया है।

दिल्ली की एक अवंतिका श्रृंगी ने कहा, “मैंने बीटीएस को पिछले साल ही सुनना शुरू किया था। जब मैंने उन्हें पूरे इंटरनेट पर देखा था। मैं तब उत्सुक थी और अब न केवल मैं, बल्कि मेरे बेटे भी बीटीएस के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। हम उनके गाने जोर से गाते हैं। वे सभी बहुत आकर्षक हैं।”

हालांकि बीटीएस ही एकमात्र कारण नहीं है जिससे भारतीय के-पॉप के प्रति जुनूनी हैं। 2012 में कोरियाई गायक पीएसवाई की वायरल हिट ‘गंगनम स्टाइल’ ने भारत में हल्ली वेव (कोरियाई संस्कृति के विकास का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द) के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम किया।

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भारत में के-ड्रामा की वायरल लोकप्रियता

नेटफ्लिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 और 2020 के बीच भारत में कोरियाई नाटकों की दर्शकों की संख्या में 370% की वृद्धि हुई। मार्च 2020 और मार्च 2021 के बीच छह के-ड्रामा जैसे किंगडम, इट्स ओके टू नॉट बी ओके, और क्रैश लैंडिंग ऑन यू, ने नेटफ्लिक्स की “टॉप 10 ट्रेंडिंग” सूची में स्थान पाया।

रिपोर्टों के अनुसार, “25 वर्ष से कम आयु के भारत की 50% से अधिक आबादी के साथ भारत ने खुद को कोरियाई संस्कृति के लिए एक मांग उत्पादक मशीन के रूप में पेश किया है।” कोरियाई नाटक के लिए यह दीवानगी 2000 के दशक के अंत में उत्तर-पूर्व में शुरू हुई जब के-नाटक, मिज़ो में डब कर केबल टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित किया जा रहा था। इसके अलावा मणिपुर में स्थानीय लोगों ने मनोरंजन के लिए के-ड्रामा पर स्विच किया क्योंकि मणिपुरी अलगाववादियों द्वारा बॉलीवुड और हिंदी चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

फेसबुक एनालिटिक्स के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 50 लाख युवा कोरियाई संस्कृति के प्रभाव में आ चुके हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है। आपकी संस्कृति आपकी पहचान है। दूसरों की संस्कृति के बारे में ज्ञान होना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन अगर वो अपनी संकृति की कीमत पर हो तो यह शर्मनाक है।

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