क्या ‘खेल का अधिकार’ मौलिक अधिकार होने वाला है?

खेलकूद नीति में भारत को महत्वपूर्ण बदलाव की जरूरत है !

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Source- TFI POST

हम सभी ने बचपन में अपने मां और पिता से तथा घर के बड़े लोगों से यह सुना होगा कि ‘पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब’, भारत में हर बच्चे को पढ़ाई का महत्व समझाने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। हालांकि यह बात बोलते समय हम में से अधिकांश लोग खेल और शारीरिक स्वास्थ्य के महत्व को नहीं समझ पाते। किन्तु अब भारत की स्वास्थ्य समस्याओं और कमजोर होती जनसंख्या में देश की सर्वोच्च संस्थाओं में खेल को मूल अधिकार घोषित करने को लेकर विमर्श शुरू कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से खेलों को मौलिक अधिकार घोषित करने पर अपना विचार रखने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट में एक खेल में शोधकर्ता कनिष्क पांडे ने इस संदर्भ में जनहित याचिका दायर की थी जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन को एमिकसक्यूरी के रूप में नियुक्त किया गया था, इस याचिका पर कार्रवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकारों से सुझाव मांगे हैं

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रिपोर्ट के अनुसार

खेल के बजाय, शंकरनारायणन ने “शारीरिक साक्षरता” शब्द का इस्तेमाल किया जिसमें योग और अन्य गतिविधियाँ भी शामिल हैं। अपनी रिपोर्ट में, एमिकसक्यूरी ने यह भी सुझाव दिया कि सीबीएसई और आईसीएसई जैसे बोर्डों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक स्कूल के दिन का 90 मिनट केवल खेलकूद के लिए समर्पित होना चाहिए।

यह सिफारिश कि शारीरिक गतिविधि में शामिल होना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार बन जाना चाहिए, अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करेगा कि एक नागरिक को यदि नामित प्राधिकारी द्वारा खेल सुविधा का लाभ नहीं मिला है तो वह न्यायालय की शरण और सहयोग ले सकता है।  वास्तव में, यदि यह मूल अधिकार बन जाता है और इस अधिकार का उल्लंघन होता है तो व्यक्ति सीधे उच्च और सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।

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स्वास्थ्य और खेलकूद

यह सही समय है कि भारत में स्वास्थ्य और खेलकूद पर जोर दिया जाए। देश का फिटनेस स्तर गिर रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 64 प्रतिशत भारतीय बिल्कुल भी व्यायाम नहीं करते हैं। यहां तक ​​​​कि उन लोगों में से, जिन्होंने कहा कि वे नियमित रूप से व्यायाम करते हैं, उनमें से अधिकांश (67 प्रतिशत) ने कहा कि तेज चलना, इनके व्यायाम का हिस्सा है जो संभवतः सबसे आसान और आलसपूर्ण व्यायाम है।  केवल 26 प्रतिशत लोग की योग तथा ऐसे अन्य अभ्यासों में संलग्न पाए गए।

भारतीयों में योग खेलकूद आदि के लिए कम रुचि का कारण बचपन से इस ओर व्यक्त की गई उदासीनता की है। संभवत हम सब में अधिकांश लोग ऐसे होंगे जिन्हें बचपन में खेलकूद की गतिविधियों में संलिप्त होने के लिए नकारात्मक टिप्पणियों और शारीरिक दंड आदि का सामना करना पड़ा होगा। खेलकूद में रहने वाले बच्चों को लेकर विद्यालय और समाज में एक नकारात्मक सोच है। विद्यालय के स्तर पर भी उन विद्यार्थियों को अधिक महत्व मिलता है जो पढ़ने में अच्छे हैं जबकि ऐसे विद्यार्थियों को कम मिलता है जो खेलकूद के कार्य में लगे हैं। क्रिकेट के अतिरिक्त किसी अन्य खेल में उपलब्धियों को लंबे समय तक महत्व नहीं मिलता था। हालांकि अब यह रुझान बदल रहा है और यही कारण है कि अब समय आ गया है कि खेल को मूल अधिकार घोषित कर दिया जाए।

भारत की शिक्षा नीतियां और अब तक का शैक्षणिक ढांचा इस सन्देश को लोगों तक पहुंचाने में असमर्थ रहा की खेल कूद और शारीरिक व्यायाम से शरीर स्वस्थ होता है और स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास हो सकता है। जबकि स्वास्थ्य हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण रहा है। यही कारण है कि जहां विश्व की अन्य संस्कृतियों लौकिक पारलौकिक दर्शन तक सीमित है भारत का दर्शन योग को एक अभिन्न अंग मानता है। योग को परम् सत्य तक पहुंचने का एक साधन माना गया है। वेद के संदर्भ में टिप्पणी करते हुए महर्षि अरविंद ने कहा था कि वेद के रहस्य को समझने के लिए ध्यान और योग आवश्यक है। वेदांत दर्शन को वैश्विक पटल पर पुनः स्थापित करने वाले स्वामी विवेकानंद खेलों के महत्त्व को बार बार रेखांकित करते थे।

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आज इंटरनेट ने मनोरंजन के साधन के रूप में खेलों का स्थान ले लिया है, जो एक नकारात्मक चलन है। आवश्यकता है कि विद्यालयी स्तर पर खेलकूद और व्यायाम को बढ़ावा दिया जाए, खेलकूद में अच्छे प्रदर्शन को परीक्षा का भाग बनाया जाए, गणित, सामाजिक विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों की तरह खेल के विषय में अंकन की प्रक्रिया शुरू हो। अच्छा प्रदर्शन करने वालों को अच्छे अंक मिले, और आगे की शिक्षा में खेलों के प्रदर्शन को भी चयन का भाग बनाया जाए। भारत को अपनी खेलकूद नीति में व्यापक बदलाव करना चाहिए।

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