लोकमत कॉन्क्लेव में अपने भाषण से केजरीवाल ने सिद्ध कर दिया उनसे बड़ा फेंकू कोई नहीं

केजरीवाल ने अपनी नैतिकता को नीलाम कर दिया है!

Arvind Kejriwal

Source- Google

‘अहम ब्रह्मास्मि’, यानी मैं ही ब्रह्म हूं! इस भावना को आत्मसात करना कोई बुरी बात नहीं, ये आत्मविश्वास का सूचक है, परंतु इसकी अति बहुत हानिकारक है और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण ‘दिल्ली के मालिक’ यानी अरविन्द केजरीवाल के उदाहरण से स्पष्ट देखने को मिलता है। अपने आप को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने की होड़ में केजरीवाल आवश्यकता पड़ने पर झूठ बोलने से भी नहीं हिचकते हैं और अब तो इतने आगे निकल गए हैं कि अब इन्हें यदि ‘फेंकू’ की उपाधि दी जाए, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी!

हाल ही में अरविन्द केजरीवाल लोकमत के गोल्डन जुबली सेलिब्रेशन के लिए नागपुर में एक आयोजन अटेंड करने गए थे। इस दौरान उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की और ये भी दावा किया कि कैसे दिल्ली की स्वास्थ्य संरचना यानी हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर में आकाश पाताल का अंतर आया है। अरविन्द केजरीवाल का दावा है कि स्थिति तो यह आ चुकी है कि अब “दिल्ली के लोग मैक्स या अपोलो जाना तक छोड़ चुके हैं” –

एक होता है झूठ बोलना, दूसरा होता है डींगें हांकना और फिर केजरीवाल की भांति लंबी लंबी फेंकना! पीएम नरेंद्र मोदी को तो वामपंथियों ने फालतू में बदनाम कर रखा है, असली ‘फेंकू’ का मतलब क्या होता है यह अरविन्द केजरीवाल को देखकर समझ में आता है। स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर जिस तरह से इन्होंने डींगें हांकी है, उसकी पोल खोलने के लिए एक नहीं, अनेक साक्ष्य उपलब्ध हैं, जिन्हें पढ़कर और समझकर आप भी सोचेंगे – कोई व्यक्ति इतना नीचे कैसे गिर सकता है?

और पढ़ें: अमित शाह ने केजरीवाल को दिखायी उनकी औकात

केजरीवाल के दावे पर उठे सवाल

अरविन्द केजरीवाल दावा करते हैं कि दिल्ली के लोग निजी अस्पतालों में इलाज कराने को प्राथमिकता नहीं देते, लेकिन उनके खुद के मंत्री कोविड काल तक में सरकारी अस्पताल में इलाज कराने से हिचकते हैं। इस विषय पर स्वयं पश्चिमी दिल्ली से भाजपा सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने आक्रामक रुख अपनाते हुए कहा, “अरविन्द केजरीवाल जी अपनों का इलाज प्राइवेट अस्पताल में करवाते हैं। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अपने परिवार का इलाज प्राइवेट अस्पताल में करवाते हैं और पैसा दिल्ली सरकार देती हैं, तो अरविन्द जी जिस वर्ल्ड क्लास हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का आप ढिंढोरा पीटते हो उसमें कौन इलाज करा रहा है?” –

परंतु बात यहीं पर नहीं रुकती। जब कोविड पिछले वर्ष डेल्टा वेव के कारण अपने चरम पर था और लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तड़प रहे थे, तो उस समय केजरीवाल अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर केंद्र सरकार पर पल्ला झाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बात केवल यहीं तक सीमित नहीं थी, केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन स्वयं कोविड से संक्रमित होने पर मैक्स अस्पताल में भर्ती हुए और जहां तक हमें स्मरण है, मैक्स अस्पताल सरकारी अस्पताल की श्रेणी में तो कतई नहीं आता। तो जिस सरकार का स्वास्थ्य मंत्री तक बीमार होने पर निजी अस्पताल की सेवाएं ले, वो भला दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था का कितना ख्याल रखेगा आप समझ सकते हैं।

झूठ का मतलब केजरीवाल!

इसके अलावा कोविड की द्वितीय और सबसे घातक लहर के दौरान केजरीवाल सरकार ने क्या रायता फैलाया था, इसके बारे में हम जितना भी लिखे, सब कम पड़ेगा। तब 2021 में केजरीवाल की सरकार ने मई में दिल्ली हाई कोर्ट में हलफनामा दायर किया था, जिसमें लिखा था कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है। चार सदस्यों की कमिटी की रिपोर्ट को कोर्ट में पेश करते हुए दिल्ली की सरकार ने कहा था कि जिन अस्पतालों से पूछताछ की गयी उसने ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौत की बात नहीं कही थी, लेकिन जल्द ही उनकी पोल पहले केंद्र सरकार ने और फिर सुप्रीम कोर्ट ने खोली।

सुप्रीम कोर्ट की ऑक्सीजन ऑडिट समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दिल्ली की सरकार ने आवश्यकता से चार गुना ज्यादा ऑक्सीजन की मांग की थी। ऑक्सीजन ऑडिट रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दिल्ली की अत्यधिक मांग के कारण 12 अन्य राज्यों को जीवन रक्षक ऑक्सीजन की भारी कमी का सामना करना पड़ा। यदि वो 900 मिट्रिक टन बर्बाद हुई ऑक्सीजन सही समय पर देश के अलग-अलग 12 राज्यों के अस्पतालों में पहुंचती, तो शायद ऑक्सीजन से हुई मौतों का आंकड़ा बेहद कम रह जाता। दिल्ली में भी वही हालात बने रहे और हजारों टन ऑक्सीजन और ventilators केंद्र और अन्य राज्यों द्वारा आवंटित किये जाने के बाद भी दिल्ली में लोग ऑक्सीजन की कमी से मरते रहे। यही नहीं केजरीवाल ने ये आंकडे भी केंद्र को नहीं दिये और अभी तो हमने केजरीवाल के वर्ल्ड क्लास ‘मोहल्ला क्लीनिक्स’ की चर्चा भी नहीं की है।

इससे पूर्व में केजरीवाल ने दावा किया कि पांच वर्ष में दिल्ली सरकार ने 12 लाख लोगों को रोजगार दिया था, जबकि वास्तविकता में 4000 से भी कम लोगों को ग्रेड 3 की सरकारी नौकरियां प्रदान की गई। ऐसे में यदि केजरीवाल दावा करते हैं कि उनके राज्य में दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा निजी अस्पतालों को भी पीछे छोड़ सकती हैं, तो सच में इनसे बड़ा ‘फेंकू’ संसार में कोई नहीं मिलेगा!

और पढ़े: मनीष सिसोदिया ने Delhi Oxygen scandal को छिपाने की कोशिश की, खुद ही expose हो गए

Exit mobile version